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श्रीसतगुरु राम सिंह पर स्मारक सिक्का जारी

'चिरकाल तक राष्ट्र को प्रेरित करते रहेंगे श्रीसतगुरु राम सिंह'

नई दिल्ली के नामधारी गुरुद्वारे में 208वां प्रकाश पर्व मनाया

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Monday 12 February 2024 05:35:14 PM

commemorative coin released on shri satguru ram singh

नई दिल्ली। केंद्रीय संस्कृति और विदेश राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी ने नई दिल्ली में सतगुरु उदय सिंह केसाथ जंगे आजादी के उदयकर्ता, कूका आंदोलन के जनक और महान समाज सुधारक श्रीसतगुरु राम सिंह के 208वें प्रकाश पर्व पर उन्हें समर्पित 200 रुपये का स्मारक सिक्का और 10 रुपये का एक मुद्रा सिक्का जारी किया। मीनाक्षी लेखी ने कहाकि श्रीसतगुरु राम सिंह ने अपने गौरवपूर्ण जीवनकाल में देश की स्वतंत्रता हेतु और समाज की कुरीतियों के विरोध में लोगों को एकजुट किया, उनके विचार चिरकाल तक राष्ट्र को प्रेरित करते रहेंगे। गौरतलब हैकि श्रीसतगुरु राम सिंह नामधारी संप्रदाय के महान गुरु हैं। इस अवसर पर नई दिल्ली के रमेशनगर में नामधारी गुरुद्वारे में हजारों सिखों, राजनेताओं और विद्वानों ने श्रीसतगुरु राम सिंह के सम्मान में शीश नवाया।
संस्कृति राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी ने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में श्रीसतगुरु राम सिंह के योगदान का स्मरण करते हुए कहाकि वे परोपकारी, विचारक, दूरदृष्टा और महान समाज सुधारक थे। मीनाक्षी लेखी ने कहाकि श्रीसतगुरु राम सिंह पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने देश को ब्रिटिश शासकों से आज़ाद कराने केलिए असहयोग और स्वदेशी को एक साधन के रूपमें अपनाया था, उन्होंने लोगों केबीच भारतीय बनने, भारतीय बने रहने और स्‍वदेशी ही खरीदने का निरंतर रूपसे प्रचार किया था। मीनाक्षी लेखी ने कहाकि लोगों को श्रीसतगुरु राम सिंह के त्याग, सहयोग, आत्मनिर्भरता एवं जियो और जीने दो के मार्ग को अपनाना चाहिए। उन्होंने बतायाकि श्रीसतगुरु राम सिंह भारत और फिर विश्व के कई अन्य देशों में पवित्र श्रीगुरु ग्रंथ साहिब को लिथोग्राफी पर मुद्रित करने वाले पहले व्यक्ति थे। श्रीसतगुरु राम सिंह ने लोगों से बालिका शिशु को बचपन में ही समाप्त न करने की अपील करते हुए लड़कियों को शिक्षा का समान अधिकार दिलाने केलिए सती प्रथा के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था।
श्रीसतगुरु राम सिंह ने 1857 में लड़कियों और लड़कों केलिए विवाह की उम्र 18 और 20 वर्ष निर्धारित की थी। उन्हें 18 जनवरी 1872 को भारत की ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने रंगून बर्मा (म्यांमार) में निर्वासित कर दिया था। उन्होंने सभी पवित्र ग्रंथों को अलमारियों से बाहर निकालकर पूजा स्थलों में सम्मान केसाथ रखने का निर्देश दिया और कब्रों और मृतकों की पूजा करने से मना किया था। उन्होंने कीर्तन प्रस्तुतियों में गुरबानी का पाठ करने और गायन करने की एक विशिष्ट विधि की भी शुरुआत की थी। श्रीसतगुरु राम सिंह ने तत्कालीन पंजाब में प्रचलित बाल विवाह, कन्या भ्रूण हत्या, पत्नियों की अदला-बदली और लड़कियों की बिक्री जैसी कुप्रथाओं का पुरजोर विरोध किया था। उनका एक उद्देश्य लोगों की शक्ति को स्वतंत्रता की ओर उन्मुख करना था और इस कार्य को करने केलिए पहला कदम उनके चरित्र में सुधार लाना और हर जगह सिखों के पतन को रोकना था।

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