स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
कानपुर। साहित्यकार पद्मश्री गिरिराज किशोर ने कहा है कि लेखन के क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं और ऐसी चुनौतियों के बीच ही लेखक का व्यक्तित्व उभर कर सामने आता है। प्रशासनिक पद पर रहकर साहित्य साधना निश्चित ही दुरूह कार्य है पर इसको भी भारतीय डाक सेवा के अधिकारी कृष्ण कुमार यादव ने सफलता पूर्वक कर दिखाया है। यादव की इस बात के लिए विशेष सराहना की जानी चाहिए कि जहाँ पद्य की तुलना में गद्य लिखना कहीं अधिक मुश्किल कार्य है, वहीं अब तक एक काव्य, दो निबंध-संग्रह और क्रांतियज्ञ जैसी पुस्तकें लिखकर वे अपनी सभाक्त रचनाधर्मिता का परिचय दे चुके हैं। उनका लेखन पाठकों के मन को छूता है और यही एक लेखक की वास्तविक सफलता होती है।
गिरिराज किशोर ने प्रशासक एवं साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव के व्यक्तित्व और कृतित्व पर उमेभा प्रकाभान, इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित एवं पं दुर्गा चरण मिश्र द्वारा सम्पादित 'बढ़ते चरण शिखर की ओर कृष्ण कुमार यादव' नामक पुस्तक के ब्रह्मानन्द डिग्री कालेज, कानपुर के प्रेक्षागार में लोकार्पण समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में यह विचार व्यक्त किये। गिरिराज किशोर ने कहा कि अल्पायु में ही कुष्ण कुमार यादव ने उच्च प्रशासनिक पद की तमाम व्यस्तताओं के बीच जिस तरह साहित्य की ऊंचाइयों को भी स्पर्श किया है वह समाज और विशेषकर युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। ऐसे युवा व्यक्तित्व पर इतनी कम उम्र में पुस्तक का प्रकाशन स्वागत योग्य है।
समारोह की अध्यक्षता कर रहे राष्ट्रभाषा प्रचार समिति उप्र के संयोजक एवं मानस संगम के प्रणेता डा बद्री नारायण तिवारी ने अपने कृष्ण कुमार यादव की रचनाधर्मिता को सराहा और कहा कि 'क्लब कल्चर' एवं अपसंस्कृति के इस दौर में जब अधिसंख्य प्रशासनिक अधिकारी प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते तो ऐसे में हिन्दी-साहित्य के प्रति अटूट निष्ठा व समर्पण शुभ एवं स्वागत योग्य है। उन्होंने कहा कि यह साहित्य जगत का सौभाग्य है कि उसे यादव के रूप में एक और हीरा मिल गया है। उसे सहेज कर रखना और आगे बढ़ाना हमारी सबकी जिम्मेदारी है। डा तिवारी ने कहा कि जो लोग अच्छा कार्य कर रहे हैं उन्हें आगे बढ़ाना ही होगा यह चापलूसी नहीं बल्कि हम सबका दायित्व है।
समारोह में उपस्थिति लब्ध प्रतिष्ठित विद्वानों ने कृष्ण कुमार यादव के कृतित्व के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। डा सूर्य प्रसाद शुक्ल ने कहा कि यादव विचार और संवेदना के कवि हैं। उनके भाव बोध में जिन्दगी के सत्य और उनकी पहचान हर पंक्ति और शब्द और अर्थ से भरी हुई है। वरिष्ठ साहित्यकार डा यतीन्द्र तिवारी ने कहा कि आज के संक्रमणशील समाज में जब बाजार हमें नियमित कर रहा हो और वैश्विक बाजार हावी हो रहा हो, ऐसे में कृष्ण कुमार की कहानिया प्रेम, संवेदना, मर्यादा का अहसास करा कर अपनी सांस्कृतिक चेतना के निकट ला देती हैं।
डा राम कृष्ण शर्मा ने कहा कि कृष्ण कुमार यादव की सेवा आत्म ज्ञापन के लिए नहीं बल्कि जन-जन के आत्म स्वरूप के सत्यापन के लिए है। इसी क्रम में भारतीय बाल कल्याण संस्थान के अध्यक्ष रामनाथ महेन्द्र ने यादव को बाल साहित्य का चितेरा बताया। प्रसिद्ध बाल साहित्यकार डा राष्ट्रबन्धु ने इस बात पर प्रसन्नता जाहिर की कि यादव ने साहित्य के आदिस्रोत और प्राथमिक महत्व के बाल साहित्य के प्रति लेखन निष्ठा दिखाई है। उन्होंने कहा कि अब से 20-25 साल पहले पुस्तक पूर्ण कर लेना ही बड़ी बात होती थी, तब विमोचन या लोकार्पण जैसे समारोह यदा-कदा ही होते थे, आज यादव की पुस्तक का लोकार्पण समारोह इस बात का प्रतीक है कि टीवी व इंटरनेट के युग में भी हिन्दी साहित्य को एक बार फिर से सम्मान और समाज की स्वीकार्यता मिल रही है।
गाजीपुर से पधारे समाजसेवी राजेन्द्र प्रसाद ने कहा कि कृष्ण कुमार यादव में असीम उत्साह, ऊर्जा, सक्रियता और आकर्षक व्यक्तित्व का चुम्बकत्व गुण है उसे देखकर मन उल्लसित हो उठता है। बीएनडी कालेज के प्राचार्य डा विवेक द्विवेदी ने यादव के कृतित्व को अनुकरणीय बताते हुए युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत माना। पूर्व उपसूचना निदेशक शम्भू नाथ टण्डन ने एक युवा प्रशासक और साहित्यकार पर जारी इस पुस्तक में व्यक्त विचारों के प्रसार की बात कही। इस अवसर पर संस्कृत के विद्वान पं पीयूष ने यादव को उनकी साहित्यिक सफलता पर बधाई देते हुए कहा कि जब किसी कृतिकार की कृति को विद्वानों का आशीर्वाद मिल जाए तो समझो वो निःसंदेह सफल कृतिकार है। आज यादव उसी कोटि में आ खड़े हुये हैं।
समारोह के अन्त में अपने कृतित्व पर जारी पुस्तक व लब्ध प्रतिष्ठित महानुभावों के आशीर्वचनों से अभिभूत कृष्ण कुमार यादव ने आज के दिन को अपने जीवन का स्वर्णिम दिन बताया। उन्होंने कहा कि साहित्य साधक की भूमिका इसलिए भी बढ़ जाती है कि संगीत, नृत्य, शिल्प, चित्रकला, स्थापत्य इत्यादि रचनात्मक व्यापारों का संयोजन भी साहित्य में उसे करना होता है। उन्होने कहा कि पद तो जीवन में आते जाते हैं, मनुष्य का व्यक्तित्व ही उसकी विराटता का परिचायक है। समारोह के दौरान कृष्ण कुमार यादव की साहित्यिक सेवाओं का सम्मान करते हुए विभिन्न संस्थाओं ने उनका अभिनंदन किया। इन संस्थाओं में भारतीय बाल कल्याण संस्थान, मानस संगम, साहित्य संगम, उत्कर्ष अकादमी, मानस मण्डल, वीरांगना, मेधाश्रम, सेवा स्तम्भ, पं प्रताप नारायण मिश्र स्मारक समिति एवं एकेडमिक रिसर्च सोसाइटी प्रमुख हैं।
समारोह का शुभारम्भ मुख्य अतिथियों के माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन से हुआ। तत्पश्चात पुस्तक के सम्पादक दुर्गा चरण मिश्र ने सभी का स्वागत किया। इस अवसर पर कृष्ण कुमार यादव की कविता 'माँ ' को संगीत में ढालकर प्रवीण सिंह द्वारा अनुपम प्रस्तुति की गई तो 6 सगी अनवरी बहनों ने प्रस्तुत 'वन्दे मातरम्' में सद्भाव की मिसाल पेश की। कार्यक्रम का संचालन उत्कर्ष अकादमी के निदेशक डा प्रदीप दीक्षित ने किया। दुर्गा चरण मिश्र ने उमेश प्रकाशन, इलाहाबाद की ओर से सभी को स्मृति चिन्ह भेंट कियें। कार्यक्रम में आकांक्षा यादव, डा गीता चौहान, डा प्रेम कुमारी, डा हरीतिमा कुमार, सत्यकाम पहारिया, कमलेभा द्विवेदी, आजाद कानपुरी, डा ओमेन्द्र कुमार, सुरेन्द्र प्रताप सिंह, अनिल खेतान, एसएस त्रिपाठी, सहित तमाम साहित्यकार, बुद्धिजीवी, पत्रकार एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।