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नई दिल्ली। पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए भारत के संविधान में पर्याप्त लचीलापन और लोच मौजूद है। केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने अपने मंत्रालय की परामर्शदाता समिति की बैठक में कहा कि इस क्षेत्र में 200 से भी ज्यादा नक्सली समूह हैं, जिनकी भाषाएं, बोलियां और सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान अलग-अलग है। ये समूह अपनी पहचान को मान्यता दिलाना और प्रशासन में भागीदारी चाहते हैं और यह आकांक्षा भारतीय संविधान के प्रावधानों के तहत पूरी की जा सकती है। बैठक का विषय था 'पूर्वोत्तर में उग्रवाद से संबंधित मामले, शांति प्रक्रिया।' चिदंबरम ने और स्पष्ट किया कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में आवश्यक शक्ति और धन के साथ स्वायत्त जिला परिषदों का गठन आगे बढ़ने का रास्ता है। इन परिषदों को अल्पसंख्यक नस्ली समूहों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देना होगा। इन्हें संरचनात्मक रूप से बहुलवादी होना चाहिए और सम्मिलित प्रशासन के सिद्धांत पर काम करना होगा। पूर्वोत्तर में स्वायत्त जिला परिषदों के असाधारण उदाहरण हैं और सरकार इन संस्थानों को मजबूत करना चाहती है।
गृहमंत्री ने कहा कि 2009 की तुलना में 2010 में पूर्वोत्तर क्षेत्र में काफी सुधार हुआ है। हिंसा की घटनाओं, आम लोगों एवं सुरक्षाबल कर्मियों के मारे जाने की घटनाओं की संख्या भी कम हो गई है। सरकार पूर्वोत्तर के 9 उग्रवादी संगठनों के साथ बातचीत कर रही है और उम्मीद करती है कि इस वर्ष के दौरान कुछ संगठनों के साथ समझौता हो जाएगा। सरकार ने उन संगठनों के लिए बातचीत का विकल्प खुला रखा है, जो हिंसा को छोड़कर बातचीत के लिए तैयार हैं। इस विचार-विमर्श में भाग लेने वाले सदस्यों ने पूर्वोत्तर क्षेत्र में शांति को फिर से बहाल करने के लिए सरकार के कदमों का स्वागत किया है। उन्होंने उल्फा के साथ प्रस्तावित बातचीत को लेकर प्रसन्नता व्यक्त की। सदस्यों ने रोजगार के अवसरों पर खास जोर देने के साथ पूर्वोत्तर के विकास को तेज करने की आवश्यकता पर भी बल दिया।
बैठक में भाग लेने वालों में राज्यसभा से थॉमस संगमा, रिशांग कीशिंग, एचके दुआ, मोहम्मद अली खान और डॉ के केशव राव और लोकसभा से के सुधाकरन, खगेन दास, कल्याण बनर्जी, एम वेणुगोपाल रेड्डी, जेपी अग्रवाल, महाबल मिश्रा, डॉ थॉकचॉम मेनिया, डॉ रतन सिंह अजनाला और डॉ मोनजीर हसन शामिल थे। गृह राज्यमंत्री मुल्लापल्ली रामचंद्रन और गुरूदास कामत भी इस बैठक में मौजूद थे।