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भोपाल। ‘दिव्य पुरस्कारों का शुभारंभ एक बूंद से हुआ था, जिसने सरिता का रूप ले लिया है, आज दिव्य पुरस्कारों की साख पूरे देश में हैं। सैकड़ों रचनाकारों की कृतियों का मूल्यांकन कर उन्हें प्रोत्साहन देने का उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं जगदीश किंजल्क। ये विचार हैं अंग्रेजी साहित्य के प्रख्यात विद्वान और त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल पद्मश्री ओएन श्रीवास्तव के, जो उपन्यासकार कवि एवं चित्रकार अम्बिका प्रसाद दिव्य की स्मृति में हिंदी भवन भोपाल में 25 दिसम्बर 2010 को तेरहवें दिव्य पुरस्कार वितरण समारोह के अध्यक्ष पद से बोल रहे थे।
मुख्य अतिथि के रूप में प्रसिद्ध कवि एवं चित्रकार राजेंद्र नागदेव ने इस मौके पर कहा कि दिव्यजी जैसे महान व्यक्तित्व के नाम पर, निष्पक्ष और ईमानदारी के साथ दिये जाने वाले ये पुरस्कार साहित्य जगत में विशिष्ट हैं। दिव्य पुरस्कारों के संचालक एवं चर्चित साहित्यिक पत्रिका दिव्यालोक के संपादक जगदीश किंजल्क ने बताया कि अभी तक 157 विद्वानों को पुरस्कृत किया जा चुका है। सम्मान और पुरस्कार समारोह में शंभूदत्त सती, डॉ नताशा अरोड़ा, किशन तिवारी, डॉ दिनेश कुमार शर्मा, अमृतलाल मदान, अनुज खरे एवं डॉ राज गोस्वामी को पुरस्कृत, प्रसिद्ध कवि डॉ रामवल्लभ आचार्य का सम्मान, पिछले वर्ष की प्रदर्शनी की लोक चित्रकार शकुन्तला खरे, डॉ मुक्ता श्रीवास्तव एवं कुमारी संयुक्ता श्रीवास्तव को ‘दिव्य कला अलंकरण’ और निर्णायक विद्वान प्रभुदयाल मिश्र, नरेन्द्र दीपक, प्रियदर्शी खैरा, माताचरण मिश्र, डॉ जवाहर कर्नावट, कुमार सुरेश, आनंद वर्धन, कैलाश नारायण शर्मा, विजयलक्ष्मी विभा का अभिनंदन किया गया।
इस अवसर पर विजयलक्ष्मी विभा की काव्य पुस्तक ‘जग में मेरे होने पर’ डॉ नताशा अरोड़ा के उपन्यास ‘युगान्तर’ एवं सरस्वती खरे की पुस्तक ‘लालन अब भोर भये’ का लोकार्पण और लोक कलाकार सुधा श्रीवास्तव की पीपल आर्ट प्रदर्शनी का उद्घाटन भी किया गया। समारोह का संचालन युवा लेखक आशीष दशोत्तर ने किया। सुमित दुबे ने वंदना प्रस्तुत की। प्रसिद्ध कहानीकार ममताचरण मिश्र ने आभार प्रदर्शन किया। समारोह में नगर के गणमान्य नागरिक, वरिष्ठ साहित्यकार, पत्रकार एवं अधिकारी उपस्थित थे।