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मुंबई में आदर्श बिल्डिंग पर चलेगा बुलडोजर

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मुंबई। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने मुंबई की आदर्श कोआपरेटिव सोसाइटी इमारत को गिराने का निर्णय ले ही लिया। यह इमारत तटीय पर्यावरण के लिए बेहद खतरा है और इसे बनाने के लिए पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति भी नहीं ली गई थी। इस इमारत के निर्माण में सेना की बहुत छीछालेदर हुई और इसमें महाराष्ट्र सरकार के कई मंत्रियों, नौकरशाहों और सेना अधिकारियों के नाम सामने आए। इमारत गिराने के तीन बिंदुओं को आधार बनाया गया है जिस पर मंत्रालय ने पूरे निर्माण को ही गिराने का निर्णय लिया है। संक्षेप में कहें तो सरकार के अनुसार यह इमारत अनाधिकृत है और तटीय नियमन क्षेत्र (सीआरजेड) अधिसूचना 1951 का उल्‍लंघन है।

इमारत को लेकर काफी बहस और विवाद का दौर चला। इसे गिराने के कई विकल्पों पर विचार हुआ। विकल्‍पों में एक यह विकल्प था कि एफएसआई के अंतर्गत आने वाले निर्माण से अतिरिक्‍त बनाए गए भवन को ढहा दिया जाए और दूसरा विकल्‍प यह था कि इस अतिरिक्‍त निर्मित भाग को सरकार के अधिकार में दिए जाने की सिफारिश की जाए और सरकार यह फैसला करे कि उस निर्मित भाग का क्‍या उपयोग किया जाएगा। पर्यावरण वन तथा राज्‍यमंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) जयराम रमेश ने इस विषय पर चर्चा करते हुए कहा कि अतिरिक्‍त निर्माण को पूरी तरह खारिज कर दिया गया है क्‍योंकि इससे यह संदेश जाता है कि तटीय नियमन क्षेत्र (सीआरजेड) अधिसूचना 1991 के उल्‍लंघन की अनदेखी की जा रही है या उसे अधिकृत किया जा रहा है।

मामले के दूसरे विकल्‍प को इसलिए निरस्‍त किया गया क्योंकि इस अतिरिक्‍त निर्मित भाग का जनहित में सरकारी उपयोग किए जाने के बावजूद भी यह संदेश जाता है कि तटीय नियमन क्षेत्र (सीआरजेड) अधिसूचना-1991 के उल्‍लंघन को नियमित किया जा रहा है। बात यह है कि इसे सरकारी अधिकार में ले लिए जाने के बाद भी राज्‍य या केन्‍द्रीय सरकार को स्‍वनिर्णय के अतिरिक्‍त अधिकार प्राप्‍त हो जाते हैं। पर्यावरण मंत्री ने कहा कि इसलिए पहले विकल्‍प अर्थात संपूर्ण विवादित निर्माण को ढहाए जाने का ही निर्णय लिया गया है। इसके बाद निर्माण क्षेत्र की इकाईयों में हड़कंप मचा हुआ है क्योंकि मुंबई में इसे आधार बनाकर कुछ और इमारते भी इस श्रेणी में आ गई हैं।

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