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डीजीपी और एडीजीपी के खिलाफ रिट याचिका

शीलू और दिव्या को न्याय नहीं मिला

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लखनऊ। स्वयंसेवी संगठन इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च एंड डोक्युमेंटेशन इन सोशल साइंसेज (आईआरडीएस) ने शीलू और दिव्या मामलों में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में एक रिट याचिका दायर की है जिसमें भारत सरकार के गृह सचिव, उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख सचिव गृह और प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री, सीबीआई, सीबी-सीआईडी, करमवीर सिंह डीजी उत्तर प्रदेश और बृज लाल एडीजी (ला-ऑर्डर तथा अपराध) प्रतिवादी बनाए गए हैं। आईआरडीएस का कहना है कि इस मामले में वास्तविक न्याय नहीं हुआ है, इन दोनों मामलों में यह साबित हो चुका है कि डीजी उत्तर प्रदेश और एडीजी ने अन्य पुलिस अधिकारियों के साथ मिलकर असली अपराधियों की पूरी तरह से मदद की। इन दोनों अधिकारियों ने जान-बूझ कर कर्तव्यहीनता की और संभवतः अधीनस्थों को गलत निर्देश भी दिए और अब दोनों मामलों में अधीनस्थ अधिकारियों को दण्डित कर अपनी जान बचाने का प्रयास कर रहे हैं।

आईआरडीएस ने याचिका में कहा है कि करमवीर सिंह और बृजलाल ने अपनी सोची-समझी सक्रियता और निष्क्रियता के जरिये गलत साक्ष्य बनाने, एफआईआर दर्ज नहीं होने देने और असली अपराधियों को बचाने का कार्य किया है। याचिका में इनकी पुष्टि के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 36, जो वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की शक्ति और कर्तव्य के विषय में है और पुलिस एक्ट की धारा 4 एवं धारा 23, जो डीजीपी को प्रदेश पुलिस के सक्षम नियंत्रण और प्रशासन के लिए उत्तरदायी बनाते हैं, के उल्लेख किये गए हैं। याचिकाकर्ता डॉ नूतन ठाकुर ने साथ ही अपने कर्तव्यों में लोप सम्बन्धी पुलिस एक्ट की धारा 29 और अपने कर्तव्य में अवहेलना एवं जान-बूझ कर विधि के निर्देशों का पालन नहीं करके किसी व्यक्ति तो क्षति पहुंचाने संबंधित आईपीसी की धारा 166 का भी उल्लेख किया है, आईपीसी की धारा 32, जो अवैध लोप से संबंधित है, को भी इस मामले में सामने लाया गया है।

इन कानूनी तथ्यों के आधार पर डॉ नूतन ठाकुर ने याचिका में कहा है कि यह करमवीर सिंह और बृजलाल की सीधी जिम्मेदारी थी कि वे विधि के अनुरूप अपना कर्तव्य निभाते और न्यायोचित कदम उठाते। उनका मानना है कि आज जब इन अधिकारियों को जिले के अधिकारियों से प्रात-कालीन ब्रीफिंग, इंटेलिजेंस विभाग की रिपोर्टें और स्वयं डीजीपी कार्यालय में एक जन सूचना अधिकारी (पीआरओ) उपलब्ध हैं तो यह मानना असंभव है कि इन दोनों अधिकारियों को इन दोनों घटनाओं के बारे में सही सूचनाएं नहीं मिल सकी होंगी। ऐसे में यह उनकी न्यूनतम जिम्मेदारी थी कि वे इन मामलों में सही मार्गदर्शन करते और दिव्या प्रकरण में कानपुर पुलिस पर इतनी सारी उंगलियों के उठने के कारण इसे तत्काल सीबी-सीआईडी के सुपुर्द करते। इसी प्रकार शीलू प्रकरण में कम से कम एफआईआर दर्ज कराना उनका विधिक कर्तव्य बनता था।

आईआरडीएस का मानना है कि उत्तर प्रदेश पुलिस के इन दोनों वरिष्ठ अधिकारियों करमवीर सिंह और बृजलाल पर कर्तव्य की लापरवाही और जानबूझ कर किए गए अवैध कृत्य और विधिक कृत्यों के विलोप के सम्बन्ध में गहराई से जांच कराई जाए। याचिका में यह अनुरोध किया गया है कि सीबी-सीआईडी इस सम्बन्ध में अपने ही वरिष्ठ अधिकारियों के विरुद्ध जांच करने में सक्षम नहीं हो सकेगी, अतः याचिका में यह मांग की गयी है कि इन दोनों प्रकरणों एवं इनसे सम्बंधित पुलिस वालों के खिलाफ दर्ज कराये गए या आगे दर्ज होने वाले सभी प्रकरणों की विवेचना सीबीआई के सुपुर्द की जाए और ऐसा न हो पाने कि दशा में इस हेतु कम से कम एक स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) बनायी जाए जो प्रदेश पुलिस से अवकाश प्राप्त या सक्षम और समर्थ आईपीएस अधिकारी के नेतृत्व में हो। आईआरडीएस ने इसके लिए पूर्व आईपीएस अधिकारी प्रकाश सिंह, ईश्वर चंद्र द्विवेदी, श्रीराम अरुण और एसवीएम त्रिपाठी के नाम सुझाए हैं।

इसके साथ ही याचिका में इन दोनों प्रकरणों के सम्बन्ध में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक अवकाशप्राप्त न्यायाधीश के नेतृत्व में एक न्यायिक जांच समिति बनाने का निवेदन भी किया गया है जो राज्य के वर्तमान डीजीपी और एडीजी (अपराध) सहित पुलिस के वरिष्ठ अफसरों की भूमिका की जांच के साथ-साथ सभी पीड़ितों को दिए जाने वाले क्षतिपूर्ति की रिपोर्ट प्रेषित करेगी। इस मामले में अधिवक्ता अशोक पांडे, वादी के वकील हैं।

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