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लखनऊ। मायावती शिविर में आने-जाने वाले 'बसपाई अधिकारियों' में एक उत्तर प्रदेश कॉडर के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी जेएन चैंबर की पुत्री दिशा चैंबर ने मायावती की सत्ता छोड़ दी और बसपा से भी त्याग पत्र दे दिया। स्वभाव से कांग्रेसी, दिशा चैंबर को दरअसल मायावती और बसपा की कार्यशैली कभी रास नहीं आई। अपने नौकरशाह पिता की 'मजबूरियों' और 'परिस्थितियों' के दबाव में दिशा चैंबर कांग्रेस छोड़कर बसपा में आई थी। वह एक क्वालिटी लीडरशिप पसंद है और बसपा में इसकी कोई गुंजाईश नहीं है। वह लोकतांत्रिक वातावरण में कार्य करना चाहती है लेकिन इसके लिए भी बसपा में कोई जगह नहीं है। जबरिया अनुशासन में रहने वाले बसपाइयों की कार्यसंस्कृति में वह घुट रही थी। बसपा में मायावती के अलावा कोई भी अपने को नेता कहलाने की जुर्रत नहीं कर सकता। जिसे बसपा में रहना है वह गुलाम बनकर रहे और आदेशों का अक्षरश: पालन करे। बसपा में रहकर और यह जान समझ कर कि यहां कोई भी दलित गुलाम की जिंदगी से आगे सोच भी नहीं सकता, इसलिए दिशा चैंबर ने बसपा को अपने तेज तर्रार अंदाज में नमस्कार कर लिया।
कांग्रेस से अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाली दिशा चैंबर कभी बसपा में नहीं जाना चाहती थी। उत्तर प्रदेश में मायावती के शासन और उनके असहनीय व्यवहार से डरे अपने नौकरशाह पिता की सलाह और चिंता ने दिशा को 2008 में बसपा का दामन थामने को मजबूर किया। दिशा के पिता जेएन चैंबर, मायावती की निकटता के कारण ही उत्तर प्रदेश में उनके शासन में कभी अच्छे पदों पर तो नाराजगी के कारण कभी खराब समझी जाने वाली जगहों पर भेजे जाते रहे। पिता बसपा की नीतियों और उसकी नेता मायावती के साथ हो एवं पुत्री दिशा चैंबर कांग्रेस में रहे इसका मायावती को कारण समझाना बेमानी कहलाएगा। खासतौर से तब जब दिशा चैंबर कांग्रेस में युवक कांग्रेस की प्रवक्ता जैसे महत्वपूर्ण पद पर हो। दिशा चैंबर के नेतृत्व में एक कांग्रेसी कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री मायावती का पुतला तक फूंका गया था।
दिशा के पिता जेएन चैंबर मुख्यमंत्री मायावती के करीबी अधिकारियों में माने जाते हैं। जेएन चैंबर के विरोधी नौकरशाहों ने इसे मुद्दा बनाकर मायावती के सामने चैंबर की पेशी कराई और नाराज मायावती ने उन्हें अपने प्रमुख सचिव समेत अन्य पदों से हटा दिया। इससे अपना भारी नुकसान समझ जेएन चैंबर ने दिशा चैंबर को कांग्रेस छुडवाकर बसपा में शामिल करवा दिया। चैंबर के एक दलित अधिकारी होने और माफी मांगने के कारण मायावती ने उन्हें फिर से महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती दे दी। मायावती ने अपने स्वभाव के अनुसार दिशा चैंबर को तुरंत अनुसूचित जाति वित्त विकास निगम का उपाध्यक्ष बनाकर राज्य मंत्री का दर्जा भी दे दिया। दिशा चैंबर ने यह सब स्वीकार तो कर लिया लेकिन कांग्रेस के मुकाबले उसे बसपा बिल्कुल पसंद नहीं आई। दिशा चैंबर ने कई अवसरों पर अपनी भावना को प्रकट भी किया। वह बसपा नेताओं की भी कार्यप्रणाली से आहत हुई और उसने अनुसूचित जाति वित्त विकास निगम के उपाध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा ही मुख्यमंत्री मायावती को सौंप दिया। दिशा चैंबर ने साथ ही फिर से कांग्रेस में शामिल होने की घोषणा कर दी। इस्तीफे के बाद ही दिशा चैंबर को बसपा से निकालने के साथ ही अनुसूचित जाति वित्त विकास निगम का उपाध्यक्ष पद से हटाने की घोषणा कर दी।
गुंडा टैक्स की तरह से अधिकारियों और व्यवसाइयों से धन वसूलने वाली और ऐसे अवैध कृत्य लिए देश भर में बदनाम बहुजन समाज पार्टी अब दावा कर रही है कि उसने दिशा चैंबर को पार्टी में रहकर अधिकारियों पर नाजायज दबाव डालने के चलते बीएसपी से निष्कासित किया है और उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम के उपाध्यक्ष पद से भी हटा दिया है। बसपा ने लखनऊ जोन के बीएसपी कोआर्डिनेटर जुगुल किशोर की ओर से मीडिया को जारी एक बयान में कहा है कि दिशा चैंबर को पार्टी से निष्कासित करने का निर्णय इसलिए लेना पड़ा क्योंकि उनके बारे में लगातार इस प्रकार की रिपोर्टे प्राप्त हो रही थीं कि वह पार्टी में अपनी स्थिति का लाभ उठाकर अधिकारियों पर गलत काम करने के लिये नाजायज दबाव डाल रही हैं।
बयान के अनुसार दिशा चैंबर ने कुछ समय पहले ही बसपा के प्रदेश अध्यक्ष से पार्टी के लिये काम करने की इच्छा जताई थी और बीएसपी की नीतियों में आस्था व्यक्त करते हुए कहा था कि वह आम कार्यकर्ता की तरह काम करना चाहती है। यह देखते हुए कि वह वरिष्ठ आईएएस अधिकारी की पुत्री भी है, बीएसपी में शामिल करके उनकी सुरक्षा आदि की व्यवस्था की गयी और उन्हें अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम का राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त उपाध्यक्ष का पद भी दिया गया। दिशा चैंबर को हरदोई जनपद में पार्टी के लिये काम करने का अवसर दिया गया था लेकिन कुछ ही समय बाद हरदोई जनपद के बीएसपी कार्यकर्ताओं और अन्य स्रोतों से लगातार यह शिकायत मिलने लगी कि वह आईएएस अधिकारी की बेटी होने का रोब दिखाकर अधिकारियों पर दबाव डालकर नाजायज काम करने को कहती है और बसपा कार्यकर्ताओं के साथ भी कोई तालमेल नहीं है। तब इन्हें जनपद हरदोई से हटाकर रायबरेली जनपद में लगाया गया, परन्तु वहां से भी उनके आचरण के बारे में लगातार शिकायतें मिलती रहीं। जुगुल किशोर ने कहा कि नाजायज दबाव बनाने की शिकायतों की पुष्टि हुई तो बीएसपी के प्रदेश अध्यक्ष के सामने सारी बातें रखी गईं और रात में ही दिशा चैंबर को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। इसके साथ ही उन्हें उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम के उपाध्यक्ष पद से भी हटा दिया गया है।
इस पूरे घटनाक्रम के बाद दलित नौकरशाहों और राजनीतिक क्षेत्रों में जो संदेश गया है वह बिल्कुल साफ है। दिशा चैंबर बसपा में मजबूरी में गई थी और कांग्रेस उसने अपने पिता के दबाव में छोड़ी थी। जेएन चैंबर इस समय यूपी में ही हैं और उन पर यह दबाव बढ़ गया है कि वे या तो अपनी कांग्रेसी पुत्री को हैसियत में रखे या फिर अपनी हैसियत समझने के लिए तैयार रहें। दिशा चैंबर के राजनीतिक कदमों का पिता को पहले भी नुकसान उठाना पड़ा था और अब तो यह निश्चित ही समझा जा रहा है। जेएन चैंबर हों या दूसरे दलित नौकरशाह, मायावती की कार्यशैली से सभी परेशान हैं। उनके सामने समस्या है कि वे जाएं भी तो कहां? उन पर मायावती का ठप्पा लग चुका है और वे गैर-दलित नौकरशाहों की आंखों में भी खटक रहे हैं। उनका यह तर्क किसी के गले नहीं उतर रहा है कि वे मजबूर हैं। हाल ही में राज्य के एक और दलित नौकरशाह नेतराम को मायावती ने पहले राज्य का अपर कैबिनेट सचिव बनाया और फिर उनसे यह ओहदा छीन लिया। गनीमत है कि उन्हें अपना प्रमुख सचिव बनाए रखा है। इस प्रकार के बर्ताव से मायावती के प्रति दलित नौकरशाहों में एक असहजता है। राज्य के कुछ दलित नौकरशाहों के परिवार के लोग राजनीति में आना चाहते हैं लेकिन उनके सामने सबसे बड़ा संकट यह है कि उनकी स्थिति भी जेएन चैंबर से बदतर हो जाएगी। दिशा चैंबर का मामला इन दलित नौकरशाहों को काफी सतर्क करता है।