Thursday 11 June 2020 10:46:14 PM
डॉ सत्यवान सौरभ
बालश्रम! जी हां! कल के भविष्य पर इसका ग्रहण चल रहा है और इस ग्रहण का कोई तोड़ भी नहीं दिख रहा है, क्योंकि घर से लेकर बाज़ार तक इसका प्रकोप व्यापक असहनीय पीड़ादायक है, इसलिए 'आज के बच्चे कल का भविष्य हैं' यह आदर्श कथन अब बच्चों पर व्यंग्य सा बन गया है। संयुक्तराष्ट्र बालश्रम को ऐसे काम के रूपमें परिभाषित करता है, जो बच्चों को उनके बचपन, उनकी स्वाभाविक आज़ादी और क्षमता से वंचित करता है, जो उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, जो बच्चों के स्कूली जीवन में हस्तक्षेप करता है। बालश्रम भी आज दुनिया में एक बड़े ख़तरे के रूपमें मौजूद है। वास्तव में यह कथन सत्य है कि आज के बच्चे कल का भविष्य हैं, आगे चलकर देश की प्रगति और विकास उनपर निर्भर है, लेकिन बालक हो या बालिका बालश्रम उनके सारे रास्ते अवरुद्ध करता है। अशिक्षा, कार्य स्थिति और दुर्व्यवहार, कुपोषण, अवसाद, नशीली दवाओं का सेवन, शारीरिक और यौन हिंसा, क्या कुछ नहीं होता है 'कल के भविष्य' के साथ?
बालश्रम जैसे कारणों से बच्चा समाज की मुख्यधारा से भी अलग हो जाता है। यह उनके मौलिक अधिकारों का हनन एवं घोर उल्लंघन है। यह उन्हें उनके अवसरों से वंचित करता है, जिनकी आज के दिन सुप्रीम कोर्ट से लेकर हर सार्वजनिक मंच पर दुहाईयां दी जाती हैं। बालश्रम एक वैश्विक चुनौती मानी गई है। बालश्रम के खिलाफ कुछ देशों ने कुछ क़दम भी उठाए हैं। बालश्रम से निपटने के लिए हर साल 12 जून को 'विश्व बालश्रम निषेध दिवस' मनाया जाता है। इस दिन की शुरुआत 2002 में इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाईजेशन ने की थी। इस दिवस को मनाने का मक़सद बच्चों के बुनियादी अधिकारों की सुरक्षा की ज़रूरत को उजागर करना और बालश्रम एवं अलग-अलग रूपों में बच्चों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघनों को ख़त्म करना है। दुनिया के सामने इस दिन का महत्व प्रकट करने के लिए संयुक्तराष्ट्र एक विषय तय करता है। इस मौके पर अलग-अलग राष्ट्रों के प्रतिनिधि, अधिकारी और बालश्रम पर लगाम लगाने वाले राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय संगठन भाषण कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
बालश्रम पर देश-दुनिया में मौजूद बाल मज़दूरी पर ऐसे चर्चा होती है कि मानों उसी क्षण से इस 'महामारी' का अंत शुरू हो जाएगा। सच तो यह है कि उस दिन भी यह 'बचपन' किसी न किसी मध्यम या आभिजात्य घर में झाड़ू-पोछा, झूठे बर्तन धोने, खाना बनाने, बूट पॉलिश और यहां से फिर दुकान या शोरूम पर एक पैर पर खड़ा काम कर रहा होता है। इस दिन का हश्र भी बाकी दिवसों जैसा होता है और श्रमवीर बालक बालिका अपने श्रम की उसी पटरी पर दौड़ने लगते हैं। दुनियाभर में ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहां मजबूर बच्चों को मज़दूर के रूपमें भारी काम पर लगाया जा रहा है। पहले बच्चे पूरी तरह से खेतों में काम करते थे, लेकिन अब वे गैर-कृषि मज़दूरियों में भी जा रहे हैं जैसे-कपड़ा कारखानों, ईंट भट्टे, लोहा भट्टी, चूना भट्टी, विभिन्न कल कारखाने, तम्बाकू कटाई कुटाई जैसी तमाम जगहों पर बड़ी संख्या में बाल श्रमिकों को देखा जाता है। यह भी देखा जा रहा है कि माता-पिता बालश्रम को प्रोत्साहित करते हैं। ग़रीबी में माता-पिता पारिवारिक आय के लिए अपने बच्चे को स्कूल में दाखिला दिलाने के बजाय उन्हें कोई काम करने के लिए मजबूर करते हैं।
अधिकांश ग़रीब माता-पिता का मानना है कि बच्चों को शिक्षित करने का अर्थ है धन खर्च करना और उनके काम करने का अर्थ है आय अर्जित करना, लेकिन वे यह नहीं समझते कि बालश्रम काम नहीं होता, बल्कि बच्चे का जीवन बर्बाद करता है, ग़रीबी को बढ़ाता है, क्योंकि जो बच्चे काम के लिए शिक्षा का त्याग करने को मजबूर होते हैं, वे जीवनभर मजदूरी में ही बर्बाद होते हैं। दुनियाभर में बालश्रम में शामिल 152 मिलियन बच्चों में से 73 मिलियन बच्चों से ख़तरनाक श्रम करया जाता है जैसे-मैनुअल सफाई, निर्माण, खदानों, कारखानों में काम, घरेलू कार्य इत्यादि। इस तरह के श्रम बच्चों के स्वास्थ्य, सुरक्षा और नैतिक विकास को अवरुद्ध कर डालते हैं। इसके कारण बच्चे सामान्य बचपन जीने और उचित शिक्षा से भी वंचित रह जाते हैं। दुनियाभर में बालश्रम से 45 मिलियन लड़के और 28 मिलियन लड़कियां प्रभावित हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में क़रीब 43 लाख से अधिक बच्चे बाल मज़दूरी करते पाए गए।
दुनिया के कुल बाल मज़दूरों में 12 प्रतिशत की हिस्सेदारी अकेले भारत की है। बालश्रम के ग़ैरसरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ भारत में क़रीब 5 करोड़ बाल मज़दूर हैं। सवाल है कि क्या बालश्रम केवल भारत तक ही सीमित है? जी नहीं, यह एक वैश्विक समस्या है। बालश्रम में बच्चों का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है, ताकि उनको ज्यादा पैसा न देना पड़े। इस प्रकार उनसे अधिक और उनकी क्षमता से ज्यादा कठिन काम भी लिया जाता है। बालश्रम एक और प्रमुख समस्या तस्करी से भी जुड़ा है। एक अनुमान के अनुसार लगभग 1.2 मिलियन बच्चों की यौन शोषण और बालश्रम के लिए सालाना तस्करी होती है। भारत में बाल तस्करी की मात्रा अधिक है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार प्रत्येक आठ मिनट में एक बच्चा गायब हो जाता है। अनेक बच्चे भीख मांगने, यौन शोषण और बालश्रम के लिए तस्करी के शिकार होते हैं।
भारत का संविधान मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धातों की विभिन्न धाराओं के माध्यम से निर्दिष्ट करता है कि 14 साल के कम उम्र के किसी भी बच्चे से किसी फैक्ट्री या खदान में काम नहीं लिया जाएगा और न ही किसी अन्य खतरनाक नियोजन में नियुक्त किया जाएगा। बालश्रम (निषेध व नियमन) कानून-1986 चौदह वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी अवैध पेशे और 57 प्रक्रियाओं में उनके नियोजन को निषिद्ध बनाता है। इन पेशों और प्रक्रियाओं का कानून की अनुसूची में उल्लेख है। फैक्ट्री कानून-1948 के तहत 15 से 18 वर्ष तक के किशोर किसी फैक्ट्री में तभी नियुक्त किए जा सकते हैं, जब उनके पास किसी अधिकृत चिकित्सक का फिटनेस प्रमाण पत्र हो। इस कानून में 14 से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए हर दिन साढ़े चार घंटे की कार्यावधि तय की गई है और उनके रात में काम करने पर प्रतिबंध है।
भारत में बालश्रम के खिलाफ कार्रवाई में महत्वपूर्ण न्यायिक हस्तक्षेप वर्ष 1996 में उच्चतम न्यायालय के उस फैसले से आया, जिसमें संघीय और राज्य सरकारों को ख़तरनाक प्रक्रियाओं और पेशों में काम करने वाले बच्चों की पहचान करने, उन्हें काम से हटाने और गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया गया था। माता-पिता अभिभावक में बाल अधिकारों और शिक्षा के महत्व के प्रति जागरुकता पैदा करना बहुत जरूरी है। अनपढ़ या कम शिक्षित माता-पिता को इस बारे में शिक्षित करना इस संकट से लड़ने में सहायक हो सकता है। माता-पिता को बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करना बालश्रम के खतरे को नियंत्रण में ला सकता है। सामाजिक कार्यकर्ताओं, मीडिया, गैरसरकारी संगठनों के लोगों को बालश्रम के खिलाफ एकजुट होने की जरूरत है। आइए हम 12 जून विश्व बालश्रम दिवस पर बालश्रम के खिलाफ बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास करें, ताकि बचपन बालश्रम की यातना से बाहर निकले। यह हम सभी का नैतिक दायित्व भी है।