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स्वच्छ ऊर्जा की खोज जरूरी-प्रधानमंत्री

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Wednesday 17 April 2013 11:28:50 PM

manmohan singh addressing the 4th clean energy ministerial, in new delhi

नई दिल्ली। स्वच्छ ऊर्जा संबंधी चौथी मंत्रिस्तरीय बैठक में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि स्वच्छ ऊर्जा की खोज दो कारणों से बेहद महत्वपूर्ण है, पहला यह कि ऊर्जा की काफी कमी है और यह महंगी होने के साथ ही विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, अगर विकासशील देशों को अपने विकासात्मक लक्ष्यों को पूरा करना है, तो उन्हें परंपरागत और गैर परंपरागत ऊर्जा सहित ऊर्जा आपूर्ति के सभी स्रोतों का विस्तार करना होगा। दूसरे यह कि, स्वच्छ ऊर्जा बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह कार्बन डॉइ-ऑक्साइड तथा अन्य ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाली जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा के विकल्प के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है।
स्वच्छ ऊर्जा के अधिक इस्तेमाल से जाहिर तौर पर विकास प्रक्रिया टिकाऊ होती है और आने वाले वर्षों में यह मुद्दा और अधिक महत्वपूर्ण हो जाएगा। विकासशील देशों में विश्व जनसंख्या का 82 प्रतिशत भाग निवास करता है और वे ऊर्जा की उपलब्ध वैश्विक आपूर्ति का 55 प्रतिशत इस्तेमाल करते हैं। अपने नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार के लिए उन्हें अपने सकल घरेलू उत्पाद में तीव्र वृद्धि की ओर ध्यान देना होगा, जिससे ऊर्जा की मांग में और तेजी आएगी। अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए यदि वे औद्योगिक देशों की तरह जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा का इस्तेमाल करेंगे तो इससे वैश्विक जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव पडेगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि यह वैश्विक चुनौती को दर्शाता है, हम केवल दो प्रकार से इस चुनौती से निपट सकते हैं-पहला ऊर्जा दक्षता में सुधार कर हमें सकल घरेलू उत्पाद संबंधी ऊर्जा को सीमित करना होगा, दूसरा हम परंपरागत से गैर-परंपरागत अथवा स्वच्छ ऊर्जा की ओर रूख कर सकते हैं। दोनों ही उत्सर्जन को कम करने में मददगार हैं और दोनों के लिए धन की आवश्यकता है। स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में कदम उठाने वाले देश द्वारा इसका खर्च वहन किया जाता है, जबकि लाभ पूरे विश्व को मिलता है, केवल वैश्विक रूप से समन्वय वाले कदम से ही सभी देशों द्वारा ऊर्जा ज़रूरतों के स्तर को कम किया जा सकता है। ऊर्जा इस्तेमाल में कमी और सहयोग की साझा बराबरी पर स्वीकार्य वैश्विक ऊर्जा नीति आधारित होनी चाहिए।
उन्‍होंने कहा कि समानता के किसी भी सिद्धांत के अनुसार, औद्योगिक देशों को इस बोझ का बड़ा हिस्सा उठाना होगा। उनके विशाल उत्तरदायित्व को इस बात से ही समझा जा सकता है कि जीएचजी उत्सर्जन के फैलाव की भारी मात्रा के लिए वे ऐतिहासिक रूप से जिम्मेदार हैं। इसके अलावा उनकी प्रति व्यक्ति आय भी अधिक है, जिससे वे इस बोझ को उठाने में ज्यादा सक्षम हैं। तकनीकी रूप से वे सर्वाधिक उन्नत हैं और इस लिहाज से वे न केवल स्वयं के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए अनुकूल समाधान प्रस्तुत कर सकते हैं। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र रुपरेखा संबंधी सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन चर्चाओं के मुद्दों पर गहन चर्चा हुई है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन चर्चाओं की प्रगति काफी धीमी है। स्वीकार्य स्तर तक वैश्विक तापमान को स्थिर करने का लक्ष्य अभी भी काफी दूर है।
मनमोहन सिंह ने कहा कि हालांकि हमें इसके स्वीकार्य परिणाम की दिशा में कार्य करना होगा, देशों को अपने-अपने स्तर पर ऊर्जा दक्षता को बढ़ाने और स्वच्छ ऊर्जा के संवर्धन के लिए कदम उठाने होंगे। इस क्षेत्र में सूचनाओं के विनियम को बढ़ावा देने और गठजोड़ के संभावित क्षेत्रों की पहचान के लिए अंतर-देशीय परामर्श की आवश्यकता है और साथ ही एक दूसरे की समान समस्याओं को संबोधित करने के लिए एक दूसरे के अनुभवों से सीखना होगा। स्वच्छ ऊर्जा संबंधी मंत्रिस्तरीय बैठक ने इस प्रकार की चर्चाओं में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
अमेरिका के ऊर्जा मंत्री डॉ स्टीवन चू ने इस बैठक के शुरूआत की पहल की। नोबेल पुरस्कार प्राप्त बेहद विशिष्ट व्यक्तित्व के धनी डॉ चू ने अकादमिक जीवन में वापस लौटने की अपनी आकांक्षा जताई है, इसलिए हमारे बीच आज उनका उपस्थित होना हमारे लिए सौभाग्य का विषय है, विश्वास है कि वे उस महत्वपूर्ण मुद्दे पर सर्वसम्मति बनाने में अपना योगदान जारी रखेंगे, जिसके लिए स्वच्छ ऊर्जा संबंधी मंत्रिस्तरीय बैठक प्रयासरत है। इसके शुरू होने से तीन वर्षों के भीतर स्वच्छ ऊर्जा संबंधी मंत्रिस्तरीय बैठक ने स्वच्छ ऊर्जा संबंधी आपूर्ति के विस्तार क्षेत्र और किफायती ऊर्जा दक्षता प्रौद्योगिकी के संवर्धन में अनेक पहल की है।
तटवर्ती क्षेत्रों और समुद्र के दूरवर्ती क्षेत्रों में भारत की पवन ऊर्जा के बारे में फिर से जायजा लिया जा रहा है, ताकि ऊर्जा के इस स्रोत का दोहन करने की एक दीर्घकालिक योजना तैयार की जा सके। ऐसा प्रतीत होता है कि पवन ऊर्जा के दोहन की हमारी क्षमता पहले के अनुमानों के मुकाबले कहीं अधिक है। फिलहाल, पवन ऊर्जा का हमारे देश के कुछ खास हिस्‍सों में दोहन किया जा रहा है। ग्रिड आधारित अक्षय ऊर्जा का विस्‍तार करने के लिए ग्रिड प्रबंधन की प्रौद्योगिकीयों में सुधार की आवश्यकता है। एक समाधान बैट्री भंडारण और दूसरा पम्‍प भंडारण है। ये भी महंगे पड़ते हैं, लेकिन उसे कम करने की गुंजाइश है।
सरकार ने परिष्‍कृत ऊर्जा क्षमता संबंधी राष्‍ट्रीय मिशन का भी गठन किया है, ताकि उपकरणों, भवनों, परिवहन और उद्योगों जैसे विभिन्‍न क्षेत्रों में ऊर्जा की बचत पर ध्‍यान दिया जा सके। यह मिशन मानकों की स्‍थापना और बाजार संबंधी प्रोत्‍साहनों पर भी ध्‍यान देता है। मानकों से बेहतर करने वाले चुनिंदा उद्योगों को पमाण-पत्र दिये जाते हैं। राष्‍ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन भी गठित किया जा रहा है।

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