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'भारत की समुद्री परंपरा ऐतिहासिक व सशक्त'

जहाज निर्माण की सिलाई पद्धति के पुनरुद्धार के लिए समझौता

संस्कृति मंत्रालय भारतीय नौसेना और होदी इनोवेशन में करार

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Thursday 20 July 2023 03:05:42 PM

agreement for revival of stitched method of shipbuilding

नई दिल्ली। भारत में जहाज निर्माण की 2000 साल पुरानी तकनीक जिसे जहाज निर्माण की सिलाई वाली विधि के रूपमें जाना जाता है, को पुनर्जीवित और उसे संरक्षित करने की एक उल्लेखनीय पहल करते हुए केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय, भारतीय नौसेना और होदी इनोवेशन प्राइवेट लिमिटेड केबीच टंकाई विधि से लकड़ी का जलपोत बनाने केलिए त्रिपक्षीय समझौता किया गया है। भारतीय नौसेना इस संपूर्ण परियोजना के कार्यांवयन एवं निष्पादन की निगरानी करेगी। समुद्री सुरक्षा के संरक्षक और इस क्षेत्र के विशेषज्ञ के रूपमें भारतीय नौसेना की भागीदारी निर्बाध परियोजना प्रबंधन और सुरक्षा एवं सटीकता के उच्चतम मानकों का पालन सुनिश्चित करेगी। उनका अमूल्य अनुभव एवं तकनीकी ज्ञान प्राचीन टंकाई विधि के सफल पुनरुद्धार और सिलाई वाले जहाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
सिलाई वाले जहाज के ऐतिहासिक महत्व और पारंपरिक शिल्प कौशल के संरक्षण की दृष्टि से इस जहाज का भारत में एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक मूल्य है। भारत की ऐतिहासिक और सशक्त समुद्री परंपरा है और सिलाई वाले जहाजों के उपयोग ने व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और अन्वेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कीलों का उपयोग करने के बजाय लकड़ी के तख्तों की एकसाथ सिलाई करके बनाए गए जहाजों ने लचीलापन और स्थायित्व प्रदान किया है, जिससे उनमें उथले और रेत की पट्टियों से होने वाली क्षति की संभावना कम हुई। देश में भलेही यूरोपीय जहाजों के आगमन से जहाज निर्माण की तकनीकों में बदलाव आया, लेकिन भारत के कुछ तटीय क्षेत्रों मुख्य रूपसे छोटी स्थानीय मछली पकड़ने वाली नौकाओं के संदर्भ में जहाजों की सिलाई की यह कला आजभी प्रचलित एवं संरक्षित है।
जहाज निर्माण की प्राचीन टंकाई विधि के संरक्षण को सुनिश्चित करने हेतु इस लुप्त होती कला को पुनर्जीवित एवं सक्रिय करना भावी पीढ़ियों केलिए जरूरी है। इस प्राचीन भारतीय कला का उपयोग करके समुद्र में जाने वाले लकड़ी के सिले हुए पाल के जहाज के निर्माण का प्रस्ताव एक सराहनीय पहल है। इस परियोजना का लक्ष्य भारत में शेष बचे पारंपरिक जहाज निर्माताओं की विशेषज्ञता का लाभ उठाना और उनकी असाधारण शिल्प कौशल को प्रदर्शित करना है। पारंपरिक नौवहन तकनीकों का उपयोग करके प्राचीन समुद्री मार्गों पर नौकायन करके यह परियोजना हिंद महासागर केसाथ उस ऐतिहासिक जुड़ाव से संबंधित अंतर्दृष्टि हासिल करना चाहती है, जिसने भारतीय संस्कृति, ज्ञान प्रणालियों, परंपराओं, प्रौद्योगिकियों और विचारों के प्रवाह को सुविधाजनक बनाया है। सिलाई वाले जहाज की परियोजना का महत्व इसके निर्माण से कहीं अधिक है, इसका उद्देश्य समुद्री स्मृति को पुनर्जीवित और नागरिकों को समृद्ध समुद्री विरासत पर गर्व कराना है।
हिंद महासागर के तटीय देशों केसाथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान से जुड़ी स्मृतियों को ताजा करना है। परियोजना के संपूर्ण दस्तावेजीकरण और सूचीबद्ध किए जाने से इस बहुमूल्य जानकारी का भविष्य के संदर्भ केलिए संरक्षित किया जाना सुनिश्चित हो सकेगा। यह परियोजना न केवल नाव निर्माण के एक अद्वितीय प्रयास का प्रतिनिधित्व करेगी, बल्कि भारत की विविध सांस्कृतिक विरासत और प्राचीन समुद्री यात्रा परंपराओं का प्रमाण भी बनेगी। हस्ताक्षर समारोह में संस्कृति मंत्रालय के सचिव गोविंद मोहन, संस्कृति मंत्रालय की संयुक्त सचिव उमा नंदूरी, संस्कृति मंत्रालय में निदेशक प्रियंका चंद्रा और भारतीय नौसेना की ओर से रियर एडमिरल केएस श्रीनिवास, कमोडोर सुजीत बख्शी एवं कमांडर संदीप रॉय और कई प्रतिष्ठित हस्तियां भी उपस्थित थीं।

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