आलोक देशवाल
Tuesday 02 July 2013 07:56:14 AM
कोलकाता। जैमिनी राय (1887-1972) 20वीं शताब्दी की भारतीय कला के प्रारंभिक और अति महत्वपूर्ण आधुनिकतावादी कलाकारों में से एक थे, जिन्होंने अपने समय की कला परंपराओं से अलग नई शैली स्थापित करने में अपनी विशिष्ट भूमिका निभाई। लगभग 60 वर्षों के उनके कला-कार्य की अवधि में कई महत्वपूर्ण बदलाव आए, जिससे दृश्य भाषा की प्रस्तुति में उनकी प्रतिभा का पता चलता है। बीसवीं शताब्दी के शुरू के दशकों में चित्रकारी की ब्रिटिश शैली में प्रशिक्षित जैमिनी राय एक प्रख्यात सिद्धहस्त चित्रकार बने। सन् 1916 में कोलकाता के गवर्नमेंट आर्ट स्कूल से ग्रेजुएशन के बाद उन्हें पोर्ट्रेट बनाने का काम नियमित रूप से मिलता रहा, लेकिन 20वीं शताब्दी के पहले तीन दशकों में बंगाल की सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों में बहुत जबर्दस्त परिवर्तन आया। राष्ट्रवादी आंदोलन के प्रभाव से साहित्य और कलाओं में सभी तरह के प्रयोग होने लगे। अबनींद्र नाथ टैगोर ने यूरोपीय प्रकृतिवाद और कला के लिए तैल के माध्यम को छोड़कर बंगाल स्कूल की स्थापना से दृश्य कलाओं में भी प्रयोग स्पष्ट दिखाई दिए।
जैमिनी राय ने भी शिक्षा ग्रहण की अवधि जो कला शैली सीखी थी, उसे उन्होंने छोड़ दिया और 1920 के बाद के कुछ वर्षों में उन्हें कला के ऐसे नए रूपों की तलाश थी, जो उनके दिल को छूते थे। इसके लिए उन्होंने विभिन्न प्रकार के स्रोतों जैसे पूर्व एशियाई लेखन शैली, पक्की मिट्टी से बने मंदिरों की कला वल्लरियों, लोक कलाओं की वस्तुओं और शिल्प परंपराओं आदि से प्रेरणा ली। सन् 1920 के बाद के वर्षों में राय ने ग्रामीण दृश्यों और लोगों की खुशियों को प्रकट करने वाले चित्र बनाए, जिनमें ग्रामीण वातावरण में उनके बचपन के लालन-पालन के भोले और स्वच्छंद जीवन की झलक थी। वे वर्तमान पश्चिम बंगाल के बांकुरा जिले के बेलियातोर गांव में जन्मे थे, इसलिए यह एक प्रकार से उनके लिए स्वाभाविक प्रयास था। इसमें कोई शक नहीं कि इस काल के बाद उन्होंने अपनी जड़ों से नजदीकी को अभिव्यक्ति देने की कोशिश की।
वर्ष 1919-1920 के आसपास जैमिनी राय ने लोगों के चित्र (पोर्ट्रेट) बनाने बंद कर दिए। वे थोड़ सा पोर्ट्रेट बनाते थे और फिर उन्हें अंदर से कुछ ऐसा महसूस होता था कि यह ठीक नहीं है और वे उसे मिटा देते थे, ऐसा कुछ दिन तक चला और फिर अचानक वे अपने मन में उठने वाले दृश्य भावों को बिल्कुल नए रूप में प्रस्तुत करने लगे। अगले कुछ वर्षों में उन्होंने संथाल महिलाओं के कई चित्र बनाए। इन भावुकतापूर्ण चित्रों में महिलाएं ग्रामीण माहौल में रोजमर्रा के काम करते दिखाई देती थीं अपनी ब्रुश से जैमिनी राय ऐसी स्पष्ट कोणीय रेखाएं बनाते थे, जिनसे मोहक चित्र बन जाते थे, जो उनकी नयी उभरती शैली का प्रतीक थे। ये चित्र उनकी दृश्य भाषा में हो रहे और अधिक नाटकीय परिवर्तन को दर्शाते थे। 1925 के आसपास उनके चित्रों में लेखन शैली जैसी रेखाएं उभरकर आने लगीं, जिससे पता चलता था कि कलाकार का अपनी कूची पर कितना नियंत्रण था। उनके चित्रों में रंग उभरे दिखते थे और कई ऐसे एकवर्णी चित्रों की श्रृंखला बनी, जिससे संकेत मिलता था कि चित्रकार ने पूर्व एशियाई चित्र कला शैली और कालीघाट पाटों से प्रेरणा ली है। चित्र रोजमर्रा की ज़िदगी से जुड़े थे, जैसे मां और बच्चे के चित्र, महिलाओं के चित्र आदि।
सन् 1920 के दशक के अंत तक जैमिनी राय अपने ज़िले की लोक कलाओं और शिल्प परंपराओं से प्रेरणा लेने लगे। उन्होंने साधारण ग्रामीण लोगों के चित्र बनाए, कृष्णलीला के चित्र बनाए, अन्य महानग्रंथों के दृश्यों को निरूपित किया, क्षेत्र की लोक कलाओं की महान हस्तियों को चित्रित किया और पशुओं को विनोदात्मक तरीके से प्रस्तुत किया। शायद उनका सबसे साहसिक प्रयोग था, ईसा मसीह के जीवन से जुड़ी कथाओं के चित्रों की श्रृंखला बनाना। ईसाई पौराणिकता से जुड़ी कथाओं को उन्होंने इस तरह से प्रस्तुत किया कि वह साधारण बंगालीग्रामीण व्यक्ति को भी आसानी से समझ में आ जाती थी। आधुनिकता के साथ जैमिनी राय का प्रयोग एक तरह से कला के रूप के लिए खोज जैसा था, उन्हें लोक कला के मुहावरों में वह कुछ मिला, जो वे चाहते थे। उनकी इस खोज की झलक 1940 के दशक के शुरू के वर्षों में उनकी लकड़ी पर नक्काशी बनी मूर्तियों में मिलती है। उनकी दृश्य प्रस्तुति में स्वाभाविक भोलापन नहीं था। उन्होंने अपनी प्रतिमाओं के बहुत ही स्पष्ट और विस्तृत रेखा चित्र बनाए थे।
वे स्वयं ग्रामीण संस्कृति से जुड़े थे, जिनमें उनका बचपन बीता था और ग्रामीणों की तरह दुनिया का दृश्य उनके लिए जटिल नहीं था तथा परंपराओं की अवश्यंभाविताओं में उनका विश्वास था। जैमिनी राय की चित्रकारी में आधुनिकतावाद का एक पहलू यह था कि उन्होंने अपने चित्रों में चमकदार रंगों का प्रमुखता से प्रयोग किया और स्वाभाविक रंगों से परहेज किया। यह दिलचस्प बात है कि 1930 के दशक तक अपनी लोक शैली की चित्र कलाकृतियों के साथ-साथ जैमिनी राय पोर्ट्रेट भी बनाते रहे, जिसमें उनके ब्रुश का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल नज़र आता था। आश्चर्य की बात है कि उन्होंने यूरोप के महान कलाकारों के चित्रों को भी बहुत सुंदर अनुकृतियां बनाईं। इससे उनकी दृश्य भाषा को संवारने में मदद मिली।