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Saturday 5 October 2013 08:15:10 AM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नई दिल्ली में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के 9वें स्थापना दिवस पर उपस्थित जनों को संबोधित करते हुए कहा है कि उत्तराखंड को भारी त्रासदी का सामना करना पड़ा है, बारिश और बाढ़ जो उत्तराखंड ही नहीं बल्कि पूरे भारत में तबाही मचाया करती हैं और आपदा का रूप धारण कर लेती हैं, इन्हें रोकने और ऐसी आपदाओं का दुष्प्रभाव सीमित रखने की जरूरत है, यह बात सचमुच ही बहुत महत्वपूर्ण है कि हम उत्तराखंड की घटनाओं से सही सबक लें। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों की उन विभिन्न एजेंसियों, भारतीय सेना, स्वैच्छिक संगठनों और आमजन की सराहना की है, जिन्होंने उत्तराखंड के राहत और बचाव कार्यों में हाथ बंटाया, इन सब ने मिलकर मुश्किल हालात में लोगों की जानमाल की रक्षा की।
प्रधानमंत्री ने खासतौर से भारतीय वायुसेना के उन बहादुरों और नर-नारियों को भी श्रद्धांजलि दी, जिन्होंने लोगों की जान बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। भारत-तिब्बत सीमा पुलिस, राष्ट्रीय आपदा उत्तर बल, नागरिक प्रशासन, वायुसेना और विमान सेवा के बहादुर चालक और पूरा समाज भी उनमें शामिल है, जिन्होंने दूसरों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की परवाह नहीं की। उन्होंने अनुकरणीय साहस और प्रतिबद्धता का परिचय दिया, जो हम सबके लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा, बहुत खुशी है कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने कुछ बहादुर नर-नारियों को सम्मानित किया है।
मनमोहन सिंह ने कहा कि उत्तराखंड में तुरंत राहत और बचाव कार्यों के बाद आपदा के बाद वाली अवधि करीब-करीब पूरी हो चुकी है, लेकिन पुनर्निर्माण, पुनर्वास और लोगों को फिर से काम पर बहाल करने की योजनाएं अभी पूरी नहीं हुई हैं, इस काम में उत्तराखंड सरकार की केंद्र सरकार हर तरह से मदद कर रही है, इस काम के लिए मंत्रिमंडल की एक समिति भी गठित की गई है, जिसका एक मात्र काम है, उत्तराखंड के पुनर्निर्माण और पुनर्वास में हर तरह की सहायता देना, योजना आयोग विभिन्न मंत्रालयों से सलाह मशविरा करके उत्तराखंड को एकमुश्त सहायता देने के लिए काम कर रहा है।
उन्होंने कहा कि हमारे देश में तरह-तरह की प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाएं आती रहती हैं, हम सब को मालूम है कि अतीत में इनके कारण कितनी तबाही हो चुकी है, इसके अलावा हाल के वर्षों में, पूरी दुनिया में मौसम के कारण होने वाली तकलीफों की मात्रा और बारंबारता बढ़ गई है, इसका हमारी अर्थव्यवस्था और सतत विकास पर गंभीर असर पड़ा है, क्योंकि इस काम में दुर्लभ संसाधन लगाने पड़े हैं और इस तरह से इन आपदाओं के भयानक परिणाम टाले गए हैं, इसीलिए अब यह उचित जान पड़ता है कि हम पिछले तजुर्बों से सीख लें और अपने आपको ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए तैयार करें और इन घटनाओं के दुष्परिणामों को रोकें, इसमें ये भी महत्वपूर्ण है कि हम अपनी राष्ट्रीय मुख्य धारा की विकास की पहल को आपदा निवारण रणनीतियों से एकीकृत करें।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को काम करते हुए अब आठ वर्ष पूरे हो रहे हैं। स्थापना के बाद से इस संस्था ने आपदाओं का सामना करने के लिए पर्याप्त संस्थागत तंत्र विकसित किये हैं और इन्हें स्थानीय स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक स्थापित कर दिया गया है। राष्ट्रीय स्तर के एनडीएमए से लेकर राज्य स्तर और ज़िला स्तर के प्राधिकरणों की विभिन्न राज्यों और संघ-शासित प्रदेशों में बड़ी संख्या में स्थापना की गई है। इस दौरान राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान और राष्ट्रीय आपदा उत्तर बल की स्थापना भी राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर की गई है। इनके लिए वित्तीय संसाधन जुटाने के प्रयास भी तय कर दिये गए हैं। देश की आपदा प्रबंधन क्षेत्र में सर्वोच्च संस्था होने के नाते एनडीएमए की कुछ महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियां हैं, जिनका निर्वाह करना उसके लिए जरूरी है। इनका निर्धारण आपदा प्रबंधन संबंधी नीतियों में ही नहीं, बल्कि राज्य प्राधिकरणों के लिए मार्गदर्शन नियम बनाने हेतु भी किया गया है और राज्य योजनाओं में इनका परिपालन करना भी जरूरी है।
एनडीएमए की पूरे देश में आपदा तैयारियों के लिए जागरूकता और तंत्र स्थापना के प्रयास भी महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए दिल्ली में इस प्राधिकरण ने वर्ष 2011-12 के दौरान भूकंप तैयारियों का अभ्यास किया। यह अभ्यास 2012-13 के दौरान उत्तर पश्चिम के कई राज्यों में बहु-राज्यीय अभियान के तौर पर किया गया। अपने देश के पूर्वोत्तर राज्यों में भी चालू वित्त वर्ष के दौरान एक ऐसी ही मुहिम चलाई जाएगी। इस प्रकार के अभ्यासों से हमारी तैयारियों की परख ही नहीं होती, बल्कि उन कमियों का भी पता चलता है, जो ऐसी आपदाओं का सामना करने पर सामने आती हैं, लेकिन आपदाओं का पूर्वानुमान लगाने और शमन क्षमता निर्माण का काम पूरा किया जाना है। हमारी संचार व्यवस्था में भी सुधार की जरूरत है, ताकि आपदा संबंधी चेतावनी गांवों तक अविलंब पहुँचाई जा सके। हमारे पंचायती राज निकायों और स्थानीय समुदायों की क्षमता भी और बढ़ाई जाने की जरूरत है, क्योंकि यही निकाय किसी आपदा की स्थिति में पहले राहत कार्य करने वाले होते हैं और हकीकत यही है कि आपदा का खतरा कम करने की नीतियां हमारी विकास प्रक्रियाओं का एक अभिन्न अंग होनी चाहिए।
प्रधानमंत्री का कहना है कि आपदा प्रबंधन असल में एक जटिल प्रक्रिया है, इसमें बड़ी संख्या में हितधारकों के सक्रिय और समन्वित भागीदारी की जरूरत होती है, इन हितधारकों में केंद्र और राज्य सरकारें, पंचायती राज निकाय, सामाजिक संगठन, स्थानीय समुदाय और सामान्य नागरिक शामिल हैं, मै राज्य सरकारों से आग्रह करुंगा कि वे अपने-अपने जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों को सशक्त बनाएं और यह सुनिश्चित करें कि उनकी राज्य स्तर की आपदा प्रबंधन योजनाएं और मानक संचालन प्रक्रियाएं कारगर हैं तथा उन्हें नियमित रूप से परखा जाए। एनडीएमए आपदाओं का सामना करने के लिए अपनी तैयारी को सशक्त बनाएगा और आपदा निवारण शमन आदि के लिए तैयार रहेगा। इस बात की भी कोशिशें की जाएंगी कि ऐसे कार्यक्रमों और नीतियों का विकास किया जाए, जो यह सुनिश्चित कर सकें कि हमारे प्रशासन का ढांचा आपदाओं का सामना करने के लिए तैयार रहे।