Sunday 19 January 2014 11:36:13 PM
प्रो भरत राज सिंह
लखनऊ। विख्यात पर्यावरण वैज्ञानिक प्रोफेसर भरत राज सिंह ने चेतावनी दी है कि यदि मनुष्य ने अपनी जीवनशैली में पर्यावरण की उपेक्षा जारी रखी, तो वह समय दूर नहीं है, जब भारत के भी कई तटीय शहर महाविनाश की चपेट में होंगे और भारत के पास आपातकालीन प्रबंध नहीं हैं कि वह ऐसी विपदाओं का सामना कर सके। प्रोफेसर भरत राज सिंह ने 'ग्लोबल वार्मिंग' पर लिखी पुस्तक में पर्यावरण पर मंडरा रहे खतरों और उनके नुकसान तथा संभावित उपायों का वर्णन किया है। उन्होंने इससे पूर्व में पर्यावरण पर जो किताबें लिखी हैं, उनमें भी अपने पर्यावरणीय शोध के निष्कर्ष प्रकाशित किए हैं, जिनका आशय भी इस किताब के महत्व को और अधिक बढ़ाता है। पर्यावरण पर प्रोफेसर भरत राज सिंह के अनुमान बड़े ही खरे उतरते आए हैं। उन्होंने अमेरिका के न्यूयार्क शहर में आई आपदा का उसके आने के पूर्व ही अपनी पुस्तक ग्लोबल वार्मिंग तथा क्लाइमेट चेंज में उल्लेख कर दिया था। उन्होंने फिर कहा है कि इस बार उत्तरी ध्रुव से और भी ज्यादा विनाश हो सकता है, क्योंकि वहां केवल 'ग्लोबल वार्मिंग' के कारण तेजी से बर्फ पिघल रही है, जिससे उसके आस-पास के देशों में ज्यादा बड़ी तबाही मच सकती है।
प्रोफेसर भरत राज सिंह ने अपनी पुस्तक 'ग्लोबल वार्मिंग' जो 'इंटेक, क्रोसिया में प्रकाशित हुई है, में बिल्कुल साफ उल्लेख किया हुआ है कि 'अमेरिका के न्यूयार्क शहर' का अधिकांश भाग भीषण तूफानों के कारण पानी में जलमग्न हो जायेगा। यह पुस्तक सितंबर 2012 में प्रकाशित हुयी थी जबकि 31 अक्टूबर 2012 को 'न्यूयार्क शहर' में सैंडी तूफान आया था, जिसने 'न्यूयार्क शहर' के एक-तिहाई निचले हिस्से को जलमग्न कर दिया था, जिस कारण न्यूयार्क शहर में 15 दिन तक आपदा घोषित की गयी और वहां विद्युत आपूर्ति एवं एअर लाइंस तक बाधित रही। अधिकांश शहर वासियों को अन्यत्र भी स्थानांतरित करना पड़ा था। प्रोफेसर भरत राज सिंह स्कूल ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज लखनऊ में निदेशक हैं। उनकी दूसरी पुस्तक 'क्लाइमेट चेंज' (ऋतु परिवर्तन) पर लिखी गयी है, जिसका प्रकाशन भी इंटेक, क्रोसिया से जनवरी 2013 में हुआ है। इसमें उल्लेख है कि 16 सितंबर 2012 के नासा के सेटलाइट आकड़े के अनुसार उत्तरी ध्रुव पर 45 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में आर्कटिक आच्छादित बर्फ चट्टानों में से एक तिहाई अर्थात् लगभग 15 लाख वर्ग किलोमीटर बर्फ पिघली पाई गई है, इस तरह आने वाले दो-दशक में संभावना है कि आर्कटिक उत्तरी ध्रुव पर नाम-मात्र ही बर्फ बचेगी और यह स्थिति कई निकटवर्ती देशों के लिए शुभ नहीं कही जा सकती है।
पर्यावरण विज्ञानी ने पुस्तक में लिखा है कि संपूर्ण बर्फीली सिलापट, ग्लोबल वार्मिंग के कारण पिघलकर 'अटलांटिक महासागर' अमेरिका क्षोर से समुद्र में गिर रही है, इसके कारण भीषण शीत लहर, तूफान तथा उससे उत्पन्न आपदाओं के कारण न्यूयार्क शहर का अधिकांश भाग चपेट में आ जायेगा। इस सिद्धांत के आधार पर ही वर्तमान में, न्यूयार्क शहर में भीषण बर्फवारी व शीत लहर चल रही है तथा तापमान शून्य से 53 डिग्री नीचे पहुंच गया है और वहां पर आपातकाल घोषित कर दिया गया है। इससे सभी वायुयान सेवाएं भी रद्द कर दी गयी हैं, शहर वासियों को घर से बाहर निकलने के लिए मना कर दिया गया है। यही कारण है कि भारत वर्ष में भी हिमालय की पहाड़ियों पर पड़ रही बर्फवारी, ग्लेशियर पर न रूककर, मैदानी इलाकों में पहुंच रही है और संपूर्ण हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश भी भीषण शीत लहर से प्रभावित है।
प्रोफेसर भरत राज सिंह बताते हैं कि भारत वर्ष में भी आपदाओं के आने के संकेत से नकारा नहीं जा सकता है। उनका अनुमान है कि 'केदारनाथ जैसी विभीषिका' की पुनरावृत्ति, निरंतर ग्लोबल वार्मिंग में बढ़ोत्तरी के कारण हो सकती है, वर्षा ऋतु के प्रारंभ में पहाड़ियों पर ऐसी आपदाओं से बचा जाना संभव नहीं है। उन्होंने विश्व के जनमानस हेतु संदेश दिया है कि माता तुल्य इस 'सुंदर पृथ्वी' को सब मिलकर बचाएं। ग्लोबल वार्मिंग को रोकने का सार्थक प्रयास करने के लिए जन-मानस को छोटे-छोटे उपायों जागृत करें और नव चेतना पैदा करें, जिससे ऐसी आपदाओं से बचा जा सके। इस किताब में उन उपायों की जानकारी दी गई है और आपदा की संभावनाओं से सचेत किया गया है। प्रोफेसर भरत का कहना है कि भारत में अनियमित जीवनशैली सबसे ज्यादा चिंता का विषय है। एक बड़े जान-माल के खतरे का आभास सामने है और हम बिल्कुल भी सतर्क नहीं हैं। भारत में समुद्र से घिरे कई टापू तो खतरे में हैं ही साथ ही भारत के कई मैदानी इलाकों तक भी मार होगी। भारत में कहीं अधिक सर्दी तो कहीं सामान्य से अधिक सर्दी का एहसास तो शुरू हो ही चुका है।
प्रोफेसर भरत का कहना है कि हम अपना जीवन बचाने के उपायों की जिम्मेदारी केवल सरकार के प्रबंधों पर ही नहीं डाल सकते, इसमें जनसामान्य की ही सबसे बड़ी जिम्मेदारी है और आदमी को अपनी जीवनशैली पर्यावरण के अनुकूल ही विकसित करनी होगी। इस पुस्तक में यही बताया गया है और पुष्टि के लिए तथ्यात्मक जानकारियां दी गई हैं। यह पुस्तक सभी जागरुक नागरिकों, विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए भी बहुत उपयोगी है, और उनके लिए भी, जो पर्यावरण संरक्षण और उससे जुड़ी परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। प्रोफेसर भरत राज सिंह का कहना है कि उन पर इस किताब का हिंदी संस्करण लाने के लिए भी दबाव है। भरत राज सिंह का नाम लिमका बुक आफ रिकार्डस में भी इस रूप में दर्ज है कि उन्होंने हवा से चलने वाली बाईक को विकसित किया था। बहरहाल यह किताब पर्यावरण संरक्षण का ज्ञान बढ़ाने के लिए बहुत उपयोगी मानी जा सकती है।