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पंछी! जिनकी उड़ान में भी संदेश हैं!

पक्षियों का प्रवास-आगमन हमारी फलीभूत आशाएं

पक्षियों में होती है बहुत ही अद्भुत शब्दभेदी शक्ति

जे़ेफ रेनीक

पंछी-birds (file photo)

‌‌जिस प्रकार वृक्षों के बीच से छनकर तारों का मृदु प्रकाश पृथ्वी तक पहुंचता है, वैसेही नींद में मुझे कुछ आवाज़ें सुनाई दीं और वे और ज्यादा स्पष्ट होती गईं। मैं बाहर आया तो देखाकि अंधेरा था। फिरभी मैने निश्चित रूपसे पायाकि वे आवाज़ें पक्षियों की हैं, जो चहचहाते हुए सूने आकाश की हवा को चीरते हुए उड़ने लगे थे। मैं उनकी उस मधुर आवाज़ को सुनता रहा और ऐसा महसूस करने लगाकि मानो मेरी भुजाओं की भी मांसपेशियां पंखों की तरह कसी गई हों और मैं भी उनकी तरह उन्मुक्त आकाश में उड़ान भर रहा हूं। वास्तव में पंछियों की उड़ान में शब्दभेदी संदेश होते हैं, जो मुझे नील गगन की प्रेरणाएं दे रहे और सपने दिखा रहे थे।
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि लोग सबसे ज्यादा उड़ने के स्वप्न देखा करते हैं। स्कूल के बच्चों से पूछे जाने पर कि तुम कौन सा जानवर बनना चाहोगे तो वे अकसर यही उत्तर देते हैं कि मैं चिड़िया बनना चाहूंगा। पक्षियों की उड़ान हम सबको प्रेरणाएं देती हैकि हम भी ऊपर उड़ें और क्षितिज के उस पार जाकर देखें कि आखिर वहां क्या है? पक्षी जगत का प्रवास प्रकृति के साथ सामंजस्य और ग्रहों की बदली चाल के फलस्वरूप होता है। विश्व में करीब 8,600 पक्षी प्रजातियों में से अधिकांश प्रजातियां विशिष्ट ऋतुओं में एक जगह से दूसरी जगह किसी भी प्रकार का प्रवास किया करती हैं। यह प्रवास पहाड़ की तलहटी में कम दूरी का भी हो सकता है अथवा आर्टिक टर्न (पक्षी विशेष) के दौरे की तरह 35,000 किलोमीटर की लंबी दूरी का भी हो सकता है।
वसंत ऋतु में करोड़ों की संख्या में सांग बर्ड दक्षिण से वापस आते हैं। उस वक्त आकाश में संगीत की मधुर ध्वनि गूंज रही होती है और उन पक्षियों के फैले हुए पंख जैसे आकाश बहती किसी नदी के समान नज़र आते हैं। हमें सदियों की इस बात का पता हैकि पक्षी भी प्रवास किया करते हैं। प्राचीन फारसियों ने पक्षियों के आने-जाने के आधार पर अपना पहला लिखित पंचांग तक बनाया था। प्रथम रोबिन के आगमन अथवा प्रथम बार्बलर (फुदकी) के संगीत के आधार पर अनेक पक्षी ऋतु आधारित समयसारिणी भी बना लेते हैं। पक्षियों के ऐसे वार्षिक आवागमन ने अनेक मनोरंजक सिद्धांतों के प्रतिपादन में सहायता की है।
सोलहवीं शताब्दी में लोगों का यह विश्वास थाकि अबाबील शिशिर ऋतु में झीलों के तल में रहते हैं, जहां अनेक पंखों वाले कंकड़ जल के नीचे बिछे से रहते हैं। दोसौ साल के पश्चात गगन में दिखनेवाले पक्षियों के छायाचित्रों से यह धारणा पैदा हुई कि बत्तख और हंस शिशिर ऋतु को चांदनी में खुशी और उल्लास से बिताया करते हैं। आजकल के अनुसंधानकर्ता लाखों पक्षियों पर पहचान चिन्ह लगा देते हैं और तारीख़ से उनके आवागमन का अनुसंधान करते हैं। प्रवासी पक्षी झुंडों का मार्ग जानने केलिए कुछ अनुसंधानकर्ता पक्षियों पर रेडियो संप्रेषण यंत्र भी लगा देते हैं। सवाल हैकि पक्षियों के ऐसे प्रवास का प्रमुख कारण क्या है? बहुधा पक्षी आहार की खोज में ही प्रवास किया करते हैं नाकि शीत से बचने केलिए। जब उत्तर के शहरों में पक्षी पोषक पदार्थ पर्याप्त मात्रा में मिलते थे, तब हाउस फिचों और कार्डिनलों की संख्या शीतकाल में भी बढ़ती गई, जिससे यह पता चलता है कि यदि पर्याप्त आहार और अनुकूल पर्यावरण मिलता रहे तो कुछ पक्षी शीत के कारण इधर-उधर नहीं भागेंगे। प्रवास का दूसरा कारण रोशनी है। अपने बच्चों और अपनेको भी अंधेरे में लुक छिपकर शिकार करने वाले परभक्षियों से बचाने केलिए पक्षियों को अतिरिक्त रोशनी की जरूरत पड़ती है।
छोटे पक्षी भी प्रवास किया करते हैं। यही आश्चर्य लगता है कि वे कैसे इतने हल्के और दुबले-पतले होकर भी अपने दो नन्हे पंखों के बलपर उम्मीद के साथ सालभर में दोबार दुनिया का चक्कर लगा लेते हैं। इसका भी रहस्य अबतक पूरी तरह से खुला नहीं हैकि प्रवास करने वाले पक्षी सुदूर विदेश का आकाश मार्ग कैसे पहचान लेते हैं। यह ज्ञात हैकि पक्षी नदी के प्रवाह और पहाड़ों के दाहिने बाएं भाग जैसे स्थलाकृतिक निशानों को प्राकृतिक सड़क के रूपमें काम में लाते हैं और इस तरह वे अपनी मंजिल तक पहुंच जाते हैं। पक्षी अपने मार्ग का निर्धारण सूरज की स्थिति की सहायता सेभी कर लेते हैं। कुछ पक्षी रात में भी प्रवास किया करते हैं यद्यपि तब भू-आकृति और सूरज दिखाई नहीं देता है। इस हालत में वे सितारों की सहायता से अपना मार्ग खोज लेते हैं। बादलों वाली रातों में भी कुछ पक्षी अपना रास्ता पहचान लेते हैं और हो सकता हैकि उनमें से एक आंतरिक कंपास (कुतुबनुमा) हो और वह भूमंडल के चुंबकीय क्षेत्रों से आकर्षित होता हो।
अनुसंधानकर्ता मानते हैंकि इसका कारण मैग्निटाइट नामक यौगिक है, जो पत्रवाहक कबूतर के कपाल में पाया गया है। कुछ अनुसंधानकर्ताओं का मत यह हैकि पक्षियों में एक अद्भुत शब्दभेदी शक्ति होती है। वे बहुत ही धीमी और अस्पष्ट आवाज़ को भी समुद्र की लहरों के लौटने की आवाज़ की तरह सैकड़ों किलोमीटर की दूरी से ही सुन सकते हैं। इस अद्भुत शक्ति से भी वे रात के समय में अपना रास्ता खोज लेते हैं। पक्षियों का उड़ना निरापद नहीं माना जा सकता। दिसंबर 1987 में उत्तर अमरीका में पाया जाने वाला बाल्ड ईगल यानी गरुड़ आयरलैंड में पाया गया था। वह जरूर किसी शिशिर आंधी में मार्ग भूल गया होगा और अटलांटिक समुद्र को गलती से पारकर गया होगा। वह फटेहाल सा थका मांदा और परेशान नज़र आ रहा था, जिसे बाद में एक हवाई जहाज से अमरीका भेजा गया। पक्षियों का अपने ठीक और सुरक्षित आकाश मार्ग पर गमन और भ्रमण करते हुए भी एक जगह से दूसरी जगह उड़कर पलायन करना ख़तरे से बिलकुल खाली नहीं होता है।
सांग बर्ड बड़ी झील को पार करते-करते इतने कमजोर हो जाते हैंकि उनकी शारीरिक शक्ति आधी रह जाती है। नब्बे प्रतिशत तक सांग बर्ड के बच्चे प्रवास मार्ग मेंही अथवा शीतस्थल पर ही मर जाते हैं। परभक्षी के आक्रमण, आकस्मिक तूफान और जलाश्रय आदि केभी अनेक पक्षी शिकार हो जाते हैं। कुछ पक्षी काल का भी शिकार हो जाते हैं। उन्हें विलंब से जानेपर आंधी के ख़तरे का सामना करना पड़ता है और जल्दी जाने पर उनका आहार बर्फ से ढका रहता है। पक्षियों के सामने अनेक प्राकृतिक बाधाएं तो होती ही हैं, अनेक मानवीय बाधाएं भी हैं, जिनका उन्हें सामना करना पड़ता है। उन्हें ऊंची इमारतों, रेडियो एंटीना, प्रकाश स्तंभों और हवाई जहाज आदि से बचकर उड़ान भरनी पड़ती है। मार्च 1904 की एक रात को दक्षिण पश्चिमी मिनेसोटा के एक छोटे से शहर में किसी बिजली कंपनी के प्रहरी को ऐसा लगाकि जैसे छत पर ओलों की वर्षा हो रही हो, मगर अरुणोदय के समय एक बहुत दुखपूर्ण दृश्य देखने को मिला। वो यह कि 7,50,000 लैपलैंड लोगस्पर मृत पक्षी सारे शहर में बिखरे पड़े थे।
प्रवास के समय होने वाली इन दुखद और जानलेवा बाधाओं से जो पक्षी बच जाते हैं, वे ग्रीष्म ऋतु के प्रारंभ में ही वापस आ जाते हैं। मौसम जब अच्छा हो जाता है, तब उत्तर अमरीका में लगभग 20 अरब पक्षी देखे जा सकते हैं। वे बहुत दिन तक संगीतमय चहचहाहटों की आनंदमय पृष्ठभूमि प्रस्तुत करते रहते हैं। वे दुनिया के पर्यावरण स्वास्थ्य के दूत होते हैं, जो दुनियाभर के देशों को अपनी उड़ान से बांधते हैं। वह बार्बलर जो पेड़ों पर चहचहाते हुए अट्टहास कर रहा है, उसने शायद कोस्टारीका में शीतकाल का समय व्यतीत किया होगा। उत्तर अमरीका के किसी गांव के तालाब में विचरने वाले बत्तख और हंस मेक्सिको के तट की यात्रा करके आए होंगे। उत्तर अमरीका में पलने वाली 150 से भी अधिक विभिन्न प्रकार के पक्षियों की प्रजातियां शिशिर ऋतु को दक्षिण और मध्य अमरीका में बिताती हैं।
साफ जाहिर हैकि पक्षियों की किस्मत अटल रूपसे ऐसी जगहों की परिस्थिति से जुड़ी रहती है, जिन जगहों के बारे में हममें से अनेक ने नक्शे में शायद ही सुना और देखा है। ये पक्षियों की उड़ान पट्टियां सुकुमार परंतु चौंका देने वाली हैं। अध्ययन से पता चला हैकि उत्तर अमरीका में पक्षियों केलिए पांच ही प्रवास विश्राम स्थल हैं, जहां पर प्रतिवर्ष दस लाख से भी अधिक पक्षी आया जाया करते हैं। इतने कम क्षेत्र पर इतने अधिक पक्षी निर्भर कैसे रह सकते हैं, अतः ओडाबान सोसायटी जैसे संगठनों ने यह प्रयास किया हैकि पक्षियों केलिए अधिक विश्राम स्थल बनाए जाएं और उनके आवागमन के बंधन में दुनिया की एकता को हमेशा बनाए रखा जाए। पक्षियों का प्रवास हमारे स्वप्नों की भांति और उनका पुनरागमन हमारी फलीभूत आशाएं जो हैं।

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