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जनजातीय समुदायों के डीएनए का सर्वे

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नई दिल्ली। भारतीय मानवशास्‍त्रीय सर्वेक्षण (एएनएसआई) में वैज्ञानिक पिछले पांच वर्ष से भारत में अनेक जनजातीय समुदायों के माइटोकांड्रियल डीएनए का अध्‍ययन कर रहे हैं। मानवों में माइटोकांड्रियल डीएनए के 16,569 मूल जोड़े होते हैं, जो हमेशा मातृक वंशागत होते हैं। भारत के अधिकांश जनजातीय समुदाय में 'एम' वंशावली और इसकी उपवंशावली का माइटोकांड्रियल डीएनए होता है, जो भारतीय उपमहाद्वीप के लिए अति विशिष्‍ट और सामान्‍य श्रेणी का परिचायक है।

मानवशास्‍त्रीय सर्वेक्षण ने पूरे देश की अनुसूचित जनजातियों से एकत्र किए गए कुल 2,783 व्‍यक्‍तियों के माइटोकांड्रियल डीएनए का अध्‍ययन और वर्गीकरण किया है। मानवशास्‍त्रीय सर्वेक्षण की देखरेख में भारतीय उपमहाद्वीप में मानव की मातृक फाइलोजैनी का निर्माण करने और पूर्व ऐतिहासिक जनसंख्‍या गतिविधि के लिए पूरे देश में जनजातियों के बड़े समुदायों और जातिगत जनसंख्‍या का अध्‍ययन करने के लिए समकालीन भारतीय जनसंख्‍या फाइलोजैनी की डीएनए बहुरूपता का अध्‍ययन नामक राष्‍ट्रीय परियोजना चल रही है।

मानवशास्‍त्रीय सर्वेक्षण विभाग, भारत और विदेशों की राष्‍ट्रीय और अन्‍तर्राष्‍ट्रीय पत्रिकाओं में इन खोजों के परिणाम पहले ही प्रकाशित कर चुका है। इसके अलावा देश के विभिन्‍न भागों में प्रदर्शनियों और प्रसिद्ध व्‍याख्‍यानों के माध्‍यम से परिणामों को प्रचारित किया गया है। मार्च 2004 में दिल्‍ली में पहली बार 'मानव उत्‍पत्‍ति जीन समूह और भारत के लोग' पर एक प्रदर्शनी आयोजित की गई थी। एएनएसआई की इन गतिविधियों ने आम जनता के साथ-साथ अकादमिक समुदाय के लिए भारत के लोगों के संबंध में वैज्ञानिक जानकारी उपलब्‍ध कराई है।

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