केन रूबेली
घुप्प अंधेरा, इतना गहन कि कुछ क्षण आंखों को जमा कर देखने के बाद भी वृक्ष और पत्ती का अंतर स्पष्ट न दिखाई दे। रह-रहकर अजीब सी सरसराहट की आवाजें, संभवतः कोई पत्ती पेड़ से गिरी अथवा कोई बड़ी चीज एक निश्चित गति से लुढ़कती हुई गई, हलकी हरी सी नन्ही रोशनियां झाडि़यों के बीच से निस्तब्ध सी सरकती हुई। ऊपर कीट पतंगों की निरंतर मिनमिनाट, रह-रहकर पास ही से आ रही डारावनी सी चीख, हवा का झोंका गालों को सहलाता हुआ आगे बढ़ जाता है तथा तेजी से फड़फड़ाते पंख, क्षण-क्षण नीली और श्वेत आभा का फूट पड़ना और फिर बिखर जाना, दूर से आते तूफान की गड़गड़ाहट नेगारा के नेशनल पार्क और सुमात्रा (इंडोनेशिया) के गुनुंग ल्युसर नेशनल पार्क जैसे, दक्षिण पूर्वी एशिया के अनछुए वर्षा वनों की अंधेरी रात का रहस्य व भयानकता इतनी गूढ़ होती है कि उसके समक्ष अदृष्ट और अज्ञात का रहस्य भी फीका पड़ जाता है। फिर भी वन्य जीवन के शौकीनों के लिए इससे बेहतर स्थान और समय कोई दूसरा नहीं हो सकता।
रात में यहां फ्लैश लाइट लेकर चलते समय ध्यान फ्लैश लाइट से निकलते प्रकाश के संकीर्ण घेरे में ही केंद्रित रहता है। दिन में वन के समग्र दृश्य की जटिलता में आप छोटे जीवों की उपेक्षा कर सकते हैं, लेकिन रात में उन्हें अपने बिलों से बाहर निकलते हुए देखना अधिक आनंदप्रद और आसान है और जोखिम भरा भी।
रात में विचरण करने वाले पशुओं और जीवों की आंखों के पीछे एक परावर्तक लेंस होता है। जब इन जीवों पर फ्लैश लाइट का प्रकाश पड़ता है तो इनकी आंखों के परावर्तकों से एक तेज चमक निकलती है। स्तनपायी जीवों की आंखों से निकलती तेज चमक का प्रभाव विशेष रूप से तीव्र होता है। इनके अतिरिक्त उल्लू, छिपकलियों, मेंढकों, यहां तक कि पटबीजना (जूगनू), कीट पतंगों और मकडि़यों की आंखों से निकले वाली चमक भी विशेष रूप से तेज होती है। फिर भी फ्लैश लाइट के प्रकाश की चकाचौंध से प्रभावित जीवों के पास धीरे-धीरे पहुंचा जा सकता है।
अधिकांश निशाचरी पशुओं और अन्य प्राणियों की गतिविधि गोधूलि से कुछ समय पहले आरंभ होती है। इस समय गिलहरियों को ऊंचे पेड़ की सबसे ऊंची शाखा की ओर तेजी से जाते देखा जा सकता है। वे शान से सरकती सरकती, आंखों से ओझल हो जाती हैं। चमगादड़ अपनी गुफाओं से बाहर निकलने लगती हैं। कस्तूरी बिलाव अपने बिलों से, जहां वे दिन में छुपे रहते हैं, बाहर निकल आते हैं। रात्रि के पहले प्रहर की इस गहमागहमी के बीच वातावरण में एक अलौकिक और समृद्ध संगीत के स्वर गूंज उठते हैं, जिसमें दिन की पारी समाप्त कर लौटते जीवों और रात की पारी के लिए जागते प्राणियों, जैसे बंदर, बगुला, झींगुर मेंढक और टिड्डे आदि के सम्मिलित स्वर उभरते हैं। लेकिन गोधूलि के एकाध घंटे बाद यह उत्तेजना और गहमागहमी समाप्त हो जाती है और भोर तक शांति बनी रहती है। भोर के संगीत में वन्य जीवों जैसे मुख्यतः चिडि़याएं और बंदरों के स्वर प्रमुख होते हैं। रात में वन्य जीवन का अनुभव किए बिना वर्षा वन की यात्रा पूर्ण नहीं होती। रात में वन में घूमने में भय के स्थान पर विस्मय होता है।
वर्षा वन के कुछ पौधे रात्रिकालीन पशु जीवन से विशष लाभ उठाते हैं। ‘ओरोक्लीलम इंडिकम’ जिसे आम तौर पर मध्यरात्रि का भय कहा जाता है, की विशाल फलियां बड़े और दुर्गंध वाले फूलों (अंतस्थ) से अपना विकास पाती हैं। ये फूल गोधूलि के समय खिलते हैं और उषाकाल में मुरझााकर भूमि पर गिर जाते हैं।
वन की झाडि़यों के बीच छोटे किंतु चमकदार कुकुरमुत्तों का झुंड, इनसे निकलते प्रकाश में एक छपा पृष्ठ पढ़ा जा सकता है। पौधों के भीतर होने वाली आंगिक प्रतिक्रिया के परिणाम स्वरूप यह प्रकाश पैदा होता है। इस प्रकाश से कीड़े मकोड़े इनकी ओर आकर्षित होते हैं और उनके साथ इस पौधे के बीज इधर-उधर बिखर जाते हैं। इनकी टूट कर गिरी शाखों और पत्तियों में अकसर चमकदार डोरे से पैदा हो जाते हैं जिनसे घोर अंधेरी रात में भी सरा वन एक स्वप्रिल प्रकाश से झिलमिलाता रहता है।
कनखजूरे रात में अपना शिकार खोजने के लिए अपने बिलों से बाहर निकल आते हैं। इन का मुख्य शिकार कीड़े-मकोड़े होते हैं। लाल रंग का कनखजूरा (स्कोलोपैंडरा) लंबाई में 20 सेंटीमीटर से अधिक बढ़ सकता है। दक्षिण पूर्व एशियाई वर्षा वनों में 10,000 से अधिक प्रकार के कीट पतंगे पाए जाते हैं। इनमें से अधिकांश रात के समय ही गतिशील होते हैं। यह ‘लाइपा सिक्किम’ अपने कोवे से अभी-अभी बाहर निकला है। तीन रंगी धारियों वाले मेंढक (राना मिओपस) वर्षा वन के नदी नालों के किनारे, ऊंचे पेड़ों या भूमि पर मिलते हैं। ओटस बाक्का-मोयना-हाथ के आकार के बराबर के कंठेदार स्कोप उल्लू वहां रात में खूब दिखाई देता है।
यहां के वर्षा वनों में 100 प्रकार से अधिक के जलीय और भूमि पर रेंगने वाले सांप मिलते हैं। इनमें से अधिकांश जैसे तांबे के रंग की पीठ वाले पेड़ का सांप डेडफीस फोमोसस हैं। ये विषैले नहीं होते। यहां दिखने वाले लघुतर मातृका मृग-टेंरगुलस जावा संसार के सबसे छोटे खुरदार पशुओं में से एक है। उसका आकार लगभग घरेलू बिल्ली जितना होता है और वह बेहद शर्मीला होता है। रात्रिकालीन आदिम नरवानरों में से बचे कुछ जीव-निक टीसेबस कौंकांग हैं। विशाल छिपकलियां - (गैक्को स्मिथी) दिन में सामान्यतः पेड़ के खोल में रहती हैं और रात को भोजन के लिए शिकार करने बाहर निकलती हैं।
(आस्ट्रेलिया में जन्मे लेखक केन रूबेली ने 1970 में पार्क प्रकृति विज्ञानी के रूप में मलेशियाई वन्य जीवन विभाग तथा नेशनल पार्क का कार्य संभाला। सन 1980 से वे स्वतंत्र फोटो पत्रकार के रूप में काम किया। दक्षिण पूर्व एशियाई वर्षा वनों से अपने निकट संबंध के कारण उसने समूचे प्रायद्वीपीय मलयेशिया तथा साबाह, सारावाक, थाइलैंड और सुमात्रा की यात्रा की है।)