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जिनेवा। उप सहारा अफ्रीका, दक्षिण एशिया और कम विकसित देशों में हर 5 आदमी में एक किशोर है। आधे से ज्यादा किशोर एशियाई देशों में रहते हैं। दक्षिण एशिया और पूर्वी प्रशांत महासागरीय एशिया में करीब 330-330 मिलियन किशोर रहते हैं। इस रूझान से अनुमान है कि सन् 2050 तक उप सहारा अफ्रीका में किशोरों की आबादी किसी भी क्षेत्र से ज्यादा होगी। अफ्रीकी महाद्वीप इस मामले में एशिया को पछाड़ देगा। आज के किशोरों को कई गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इनमें अनिश्चित वैश्विक आर्थिक दृष्टिकोण के अलावा बेरोजगारी की बढ़ती दर, मानवजनित संकट और संघर्ष की बढ़ती संख्या, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण क्षरण और द्रुतगति से होता शहरीकरण जैसी चुनौतियां हैं। अगले दशक में इन चुनौतियों में संकट और बढ़ेगा।
एक आंकलन के मुताबिक 2009 में दुनिया भर में किशोरों की संख्या 1.2 अरब थी। यह विश्व की कुल आबादी का 18 फीसदी है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 10 से 19 साल के बच्चों को किशोर कहा जाता है। किशोरों की बड़ी आबादी, करीब 88 प्रतिशत, विकासशील देशों में रहती है। सबसे विकसित देशों में किशोरों की 16 प्रतिशत आबादी रहती है। दुनिया के विकसित देशों में किशोरों की आबादी 12 प्रतिशत ही है।
यह सुखद स्थिति है कि दुनिया भर के किशोर अपने से पहले वाली पीढ़ी के मुकाबले सामान्य तौर पर ज्यादा स्वस्थ्य पाए गए हैं, बावजूद इसके 2004 में करीब 4 लाख युवा सड़क दुर्घटनाओं में मौत के शिकार हुए हैं। सर्वेक्षण्ा के मुताबिक 15 से 49 साल की उम्र वाली करीब 70 मिलियन लड़कियों और महिलाओं में यौवन की शुरुआत के बाद जननांगों में विकृति देखने को मिली है। चौदह विकासशील देशों में यह पाया गया कि किशोरों के मुकाबले किशोरियों में पोषण संबंधी मुश्किलें ज्यादा हैं। किशोरियों में एनिमिया के मामले ज्यादा देखने को मिले हैं। विकसित और विकासशील देशों के किशोर और किशोरियों दोनों में मोटापा भी एक गंभीर चिंता का विषय है। इसी प्रकार दुनिया भर में एचआईवी संक्रमण के नए मामलों में लगभग एक तिहाई मामले 15 से 24 साल के युवाओं में देखे गए हैं।
किशोरों और युवाओं के मुकाबले किशोरियों और युवतियों में एचआईवी संक्रमण फैलने की आशंका ज्यादा पाई गई है। विकासशील देशों में 15 से 19 साल के कुल किशोरों में महज 30 फीसदी को एचआईवी के बारे में जानकारी होती है जबकि इसी उम्र की महज 19 फीसदी किशोरियां ही इस जानलेवा संक्रमण के बारे में जानती हैं। दुनिया भर के करीब 20 फीसदी किशोर मानसिक और व्यवहारगत समस्याओं की चपेट में हैं। इसमें ज्यादातर किशोर अवसाद में होते हैं। यह भी पाया गया कि कुछ किशोर 10 से 14 साल के उम्र में ही यौन संबंध बना लेते हैं। स्वस्थ्य औऱ सुरक्षित रहने के लिए जरूरी है कि किशोरों को यौन और प्रजनन संबंधी उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सुविधाएं और जानकारी कम उम्र से ही मिले।
विकलांग किशोरों को तो कई भेदभाव से गुजरना होता है। विकलांग किशोर भी अपने समकक्षों के साथ बराबरी का दर्जा हासिल कर सकें इसके लिए जरूरी है कि उन्हें परिवहन, शैक्षणिक सुविधा और अन्य संसाधन बेहतर तरीके से मुहैया कराए जाएं। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में करीब सेकेंडरी स्कूल जाने की उम्र वाले आधे किशोर स्कूल नहीं जाते हैं। पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में स्कूलों में किशोरों की उपस्थिति सबसे कम हैं। यहां 24 फीसदी लड़के और 22 फीसदी लड़कियों का ही स्कूल में नामांकन हो पाता है। सन् 2008 में, युवाओं के किसी व्यस्क के मुकाबले बेरोजगार होने की आशंका तीन गुना ज्यादा थी। उन्हें उपयुक्त काम की कमी का सामना करना पड़ रहा था। इसका मतलब है कि कई मामलों में युवाओं के लिए काम का पहला अनुभव अपनी प्रतिभा को बर्बाद करने, काम से मोहभंग होने, ठेका जारी रहने तक काम में लगे रहने और गरीब बने रहने वाला साबित हुआ।
रिपोर्ट में बताया गया है कि सुरक्षा का पक्ष भी बहुत कमज़ोर है। मौजूदा समय में 5 से 14 साल की उम्र के करीब 150 मिलियन बच्चे बाल मजदूरी में लगे हुए हैं। इनमें उप सहारा अफ्रीकी महाद्वीप में सबसे ज्यादा बाल मजदूर हैं। यूनिसेफ के आकलन के मुताबिक दुनिया भर में किसी भी समय करीब दस लाख बच्चे कानून प्रवर्तन अधिकारियों की हिरासत में होते हैं। वर्तमान में, चीन को छोड़कर दुनिया के बाकी विकसित देशों में 15 से 19 साल की प्रत्येक पांच बच्चियों में से एक की शादी हो चुकी है। दक्षिण एशियाई देशों में इसकी दर बढ़कर 28 प्रतिशत तक पहुंच जाती है जबकि सबसे ज्यादा दर नाइजर में 59 प्रतिशत की है।
उन्नीस साल से कम उम्र के लड़के या लड़की की शादी को किशोर उम्र की शादी कहते हैं। यह दक्षिण एशिया और उप सहारा अफ्रीका में आम बात है। इन दोनों महादेशों के 31 देशों के नए आंकड़े बताते हैं कि ज्यादातर किशोरों की 15 से 18 साल की उम्र में शादी हो जाती है। अफ्रीका में, 20 से 40 साल की 25 प्रतिशत महिलाएं 18 साल की उम्र से पहले मां बन चुकी होती हैं। दक्षिण एशिया में यह थोड़ा कम, 22 प्रतिशत है, लेकिन यह लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों के 18 प्रतिशत के मुकाबले काफी ज्यादा है। कभी-कभी सैन्य समूह भी किशोरों की नियुक्ति पर जोर देते हैं। वे किशोरों का इस्तेमाल हथियारों की ढुलाई करने और युद्ध के दौरान करते हैं। इतना ही नहीं वहां किशोरों का यौन शोषण भी होता है और उन्हें दासता के अन्य कामों पर भी लगाया जाता है।
बच्चों को उन सभी मामलों में जिनका उनपर प्रभाव पड़ता हो, अपने विचार को अभिव्यक्त करने का अधिकार होना चाहिए। इससे बाल अधिकारों के संधिपत्र के सिद्धांतों को तैयार करने में मदद मिलेगी। बच्चों की सक्रिय भागीदारी से उनके व्यक्तित्व के संपूर्ण विकास में मदद मिलती है। उद्देश्यपूर्ण सामाजिक कामों में युवाओं की संलिप्ता से वे सक्रिय नागरिक के तौर पर विकसित होते हैं।