दिनेश शर्मा
वेद शास्त्रों में वृक्षों को जीवन देने वाले मां-बाप की संज्ञा दी गयी है। इन्हें धरती पर सृष्टि का पालक कहा गया है। वृक्षों से हमें जीवन और उसे जीने की कला, संघर्ष, समृद्घि, शक्ति, फलने-फूलने का सलीका और परोपकार की प्रेरणा मिलती है। धरती पर वृक्ष न हों तो सांस लेना भी मुश्किल हो जाए। बादल विलुप्त और पृथ्वी वनस्पतियों से विहीन हो जाए। पंचवटी की परिकल्पना भी ऐसे ही वृक्षों और वनस्पतियों से है जो पृथ्वी पर हरेक मौसम में मानव एवं दूसरे प्राणियों के जीवन की रक्षा करती हैं। वृक्ष पृथ्वी के सौंदर्य के लिए हैं तो वह मानव और वन्य जीवन के लिए जीवन अमृत जैसे। विज्ञान और धर्मग्रंथों में वृक्षों और अन्य वनस्पतियों की महिमा का विभिन्न उपयोगिताओं में विस्तार से वर्णन किया गया है। गुरू ग्रंथ साहिब में वृक्ष के अंग प्रत्यंग को देवता रूप में देखकर कहा गया है-
ब्रहमु पाती बिसनु डारी फूल संकर देउ।
तीनि देव प्रतखि तोरहि करहि किसकी सेउ॥
अर्थात- ‘हे मालिन! पूजा के लिए जो तुम ये पत्तियां, शाखा व पुष्प तोड़ रही हो, इसमें ब्रह्मा पत्ती है, विष्णु शाखा हैं,शंकर पुष्प हैं, इस प्रकार तुम इन प्रत्यक्ष देवों को तोड़ डालती हो तो फिर किसकी पूजा करती हो?’
कुरान में अल्लाह ने और हदीस में हज़रत ने फरमाया है-
‘आज से मक्के की धरती पर न तो किसी इंसान का खून होगा और न ही किसी जानवर का शिकार किया जाएगा और किसी हरे-भरे दरख्त को भी नहीं काटा जाएगा।’ ‘आवश्यकतानुसार घास काट सकते हो, कोई दूसरा हरा-भरा दरख्त नहीं।’ ‘जो व्यक्ति सिदार (पेड़) काटेगा उसका सर जहन्नुम की आग में ढकेल दिया जाएगा’ ‘दरख्त लगाओ। जब इनसे मनुष्य फल खाएंगे या जानवर चारा चरेंगे तो इसका उतना ही सबाब मिलेगा, जैसा फल या चारा खिलाकर मिलता है।’
ये आदर्श विचार मनुष्य के प्रकृति के प्रति कर्तव्य बोध को जगाते हैं। क्योंकि कोई पशु या वन्य प्राणी कभी भी अपनी आवश्यकता से अधिक और नाहक ही वनस्पतियों या दूसरे प्राणियों का शिकार नहीं करता। इन्हें सबसे बड़ा खतरा मनुष्य से ही है जो दुनिया भर में फैले घने जंगलों और उनमें पैदा होने वाली जीवनदायनी वनस्पतियों और करोड़ों वर्ग क्षेत्र में फैले चरागाहों को निर्ममता से नष्ट करता जा रहा है। इसके खतरनाक परिणाम भी सामने आने लगे हैं। आज धरती शीतलता की जगह आग उगल रही है। दिन और रात का तापमान पचास डिग्री को पार कर रहा है और सागर अपना आपा खोकर सूनामी जैसी दैत्य लहरों को उकसा रहा है। समुद्रीतट मरघट में बदल रहे हैं। पृथ्वी कह रही है कि हे मनुष्य मुझ पर दया कर। मेरा प्रकृति प्रदत्त सौंदर्य मुझसे मत छीन क्योंकि इसके बदले मै तुझे अपने सभी सुख देती हूं। मै तेरे अत्याचारों का भार अपने ऊपर नहीं उठा सकती। भू-गर्भीय और पर्यावरण विज्ञानी किसी भूचाल या भयावह तूफानों की आशंकाओं से सहम कर लोगों को चेतावनी देने या समझाने में लगे हैं कि पर्यावरण संतुलन के लिए जंगलों की रक्षा करें और खूब जीवनदायी छायादार और फलदार पेड़ लगाएं। खुद ही उनका पालन पोषण करें।
सही मायनो में पर्यावरण संरक्षण के लिए जो लोग सक्रिय हैं वे मुट्ठी भर ही हैं। उनकी आवाज़ नक्कारखाने में तूती की आवाज़ है। जिन पर प्रकृति को विनाश से बचाने की जिम्मेदारी है वे खुद हत्यारों के साथ खड़े हैं। बहुतेरे परोपकारी और स्वयं सेवक समूह, प्रकृति के हत्यारों से दया की भीख मांग रहे हैं पर वह किसी की नहीं सुन नहीं रहे हैं और अपने में और आज में जीने में मस्त हैं। भू-गर्भीय एवं वनस्पति विज्ञानी पेड़ों और वनस्पतियों के विनाश पर अपनी चिंता प्रकट करते हुए चिल्ला रहे है कि अगर पर्यावरण संतुलन और ज्यादा खिसका तो धरती आने वाले साठ-सत्तर वर्षों में ही अस्सी डिग्री तापमान तक गर्म हो सकती है। इन विज्ञानियों की चिंता इसलिए भी गंभीर है, क्योंकि अब अप्रैल माह में ही तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने लगा है। इसलिए मई और जून के महीने कितने गर्म हो सकते हैं, अंदाजा लगाया जा सकता है। वातानुकूलित कमरे भी ठंडे नही रह पाएंगे।
पर्यावरण संरक्षण के लिए जनाधार वाले राज नेताओं और धर्म गुरुओं के अलावा किसी के पास इसका उपचार नहीं दिखाई देता है। एनजीओ, किसी फिल्मी कलाकार और क्रिकेटर की अपील भी इन नेताओं के तेज के सामने नहीं चलने वाली है। भारतीय फिल्मों के सुपर स्टार अमिताभ बच्चन अपनी पत्नी और अभिनेत्री जया बच्चन के हाथ में बेलन लेकर भले ही बच्चों को पोलियो रोधी खुराक न पिलाने वाले मां-बाप की खबर लेने को कहें, लेकिन इस दवा को पिलाने में मां-बाप पर दबाव बनाने के लिए अंततः धर्मगुरू और इमाम ही सबसे ज्यादा कामयाब हुए। ऐसे ही प्रचंड जनाधार वाले राजनेताओं और धर्म गुरुओं में वह क्षमता है कि वे अपने सामने बैठी जनता को ऐसे जन कल्याण के लिए भी प्रेरित कर सकतेहैं। उसका परिणाम भी उतना ही सकारात्मक और शीघ्रता से सामने आएगा। उनकी वन संरक्षण, वन्य प्राणियों के जीवन की रक्षा करने, छायादार फलदार नीम आम शीशम साल जैसी प्रजातियों के पेड़ लगाने और स्वयं ही पालन पोषण करने की जिम्मेदारी की अपील जरूर कारगर होगी।
पांच सितारा होटलों में सरकारी पर्यावरण गोष्ठियों और विभागीय समीक्षा बैठकों में वृक्षारोपण का लक्ष्य निर्धारित करने से कितने वृक्ष लगे? कैसे वृक्ष लगे? यह हम देखते आ रहे हैं। अधिकारियों ने लक्ष्य पूरा करने के लिए धरती का पानी सोखने वाली युकेलिप्टस और कमजोर और शीघ्र बढ़कर शीघ्र ही नष्ट हो जाने वाली प्रजातियों को लगवा दिया। उनका न चिरकाल तक जीवन है और न उपयोगिता। ऐसे वृक्षारोपण का क्या लाभ? इनसे न पंथी को छाया मिलती है और न फल। राजा महाराजाओं के समय में सड़कों के दोनों ओर आच्छादित हजारों वर्ष पुराने पेड़ों को विकास कार्यों के दौरान काट तो दिया गया लेकिन उनकी जगह वैसे ही दूसरे पेड़ नहीं लगाए गए। पुण्य और कर्तव्य की इस अलौकिक संरचना में यदि पुण्य पर विश्वास नहीं हो तो कर्तव्य तो निभाइए। आप एक उपयोगी वृक्ष लगाइए और दूसरों को भी प्रेरणा देकर सभी प्राणियों और पृथ्वी को चिंता मुक्त कीजिए!