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मछुआरों को शिक्षा सहायता योजना

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नई दिल्ली। मछुआरों के बच्‍चों की शिक्षा सहायता योजना एक अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण कार्यक्रम है। भारत के समुद्र तटीय नौ राज्‍यों और चार केंद्र शासित राज्‍यों में रहने वाले मछुआरा समुदाय के जीवन यापन का प्रमुख स्रोत मत्‍स्‍य पालन है। लगभग 60 लाख लोग 7,500 किलोमीटर में फैले समुद्र तटीय इलाकों में रहते हैं। ओडीशा में समुद्र तटीय मछुआरों से लेकर महाराष्‍ट्र के कोली मछुआरों तक सभी हमारी संस्‍कृति और परंपरा के अनिवार्य हिस्‍से हैं। ये मछुआरे किसानों की तरह ही देश की सेवा करते हैं।

पारंपरिक मछुआरा समुदाय में वह ज्ञान, परख और कुशलता होती है, जो कि समुद्र संरक्षण के लिए आवश्‍यक होती है। विश्‍व में 79 प्रतिशत की अतिशय खपत को पूरी करने वाले मछुआरों के लिए प्राकृतिक आपदा की स्‍थिति में उनके आवासों और उनके उत्‍पादन के स्रोतों को स्‍थाई सुरक्षा देने की आवश्‍यकता है। इस संदर्भ में मछुआरा समुदाय के पारंपरिक ज्ञान और कुशलता का उपयोग समुद्र तटीय प्रबंधन के लिए किया जाना चाहिए। इस समय यह आवश्‍यक है कि मछुआरों की नई पीढ़ी को उन नए तौर-तरीकों का ज्ञान कराया जाए, जो विज्ञान से संबद्ध हैं। इसके लिए शिक्षा सहायता योजना बहुत सहयोगी होगी।

यह योजना पारंपरिक मछुआरा समुदाय से संबद्ध के बच्‍चों को शैक्षिक सहायता मुहैया कराती है। इस योजना के जरिए समुद्र तटीय प्रबंधन की पारंपरिक और वैज्ञानिक कुशलता का विकास किया जा सकेगा। यह एक दीर्घकालीन निवेश है, जो एक ऐसे सशक्‍त पारंपरिक संवर्ग के विकास में सहयोग करेगा, जिससे समुद्र तटीय प्रबंधन में प्रभावशाली योगदान करेगा। विश्व बैंक के सहयोग से संचालित समेकित तटीय क्षेत्र प्रबंधन (आईसीजेडएम) परियोजना के तहत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने एक विशेष संस्‍था सोसाइटी ऑफ इंटीग्रेटेड कॉस्‍टल मैनेजमेंट (एसआईसीओएम) स्‍थापित की है। एसआईसीओएम से ही मछुआरों के बच्‍चों के लिए शिक्षा सहायता योजना का क्रियान्‍वयन किया जाता है। समुद्र तटीय इलाकों में रहने वाले पारंपरिक मछुआरों और उनके परिवारों के लिए यह पहल एक सम्‍मान की बात है। शैक्षिक सहायता उन बच्‍चों को प्रदान की जाएगी जो, स्‍नातक, स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई समुद्री, तटीय मत्‍स्‍य पालन में विशेषज्ञता के साथ पढ़ने में रुचि दिखाएंगे।

योजना के तहत प्रति वर्ष समुद्र तटीय राज्‍यों और केंद्र शासित समुद्र तटीय राज्‍यों से सात-सात छात्रों (पांच पुरुष व दो महिला छात्रों) को स्‍नातक और स्‍नातकोत्‍तर स्‍तर पर शैक्षिक सहायता प्रदान की जाएगी। योजना की शर्तों के अनुसार स्‍नातक के लिए छात्र को 1,500 रुपए प्रति माह छात्रावास शुल्‍क और 15,000 रुपए प्रति वर्ष या विश्‍वविद्यालय का मूल शुल्‍क तीन साल तक या पाठ्यक्रम के पूरा होने तक प्रदान किया जाएगा। वहीं स्‍नातकोत्‍तर पाठ्यक्रम के लिए छात्र को 2,000 छात्रवास शुल्‍क और 20,000 रुपए प्रति वर्ष शिक्षण शुल्‍क या विश्‍वविद्यालय का मूल शुल्‍क दो साल के लिए या पाठ्यक्रम की अवधि तक के लिए प्रदान किया जाएगा।

एसआईसीओएम योजना का क्रियान्‍वयन नेशनल सेंटर ऑफ सस्‍टेनेबल कॉस्‍टल मैनेजमेंट (एनसीएससीएम) के माध्‍यम से होगा। 19 प्रमुख संस्‍थान, 11 सहायक संस्‍थान और 7 कॉलेज इस योजना के केंद्र में होंगे। योजना के लक्ष्‍य की प्राप्‍ति के उद्देश्‍य से 19 संस्‍थानों को चिंहित किया गया है। यहां संबंधित विश्‍वविद्यालयों, पर्यावरण स्‍कूलों, मत्‍स्‍य पालन कॉलेजों, संस्‍थानों और संगठनों की सूची इस प्रकार है-

नेशनल सेंटर फॉर सस्‍टेनबल कॉस्‍टल मैनेजमेंट, सेंटर फॉर स्‍टडीज ऑन बाय ऑफ बंगाल, आंध्रा युनिवर्सिटी, युनिवर्सिटी ऑफ कोलकाता, पश्‍चिम बंगाल, अन्‍ना युनिवर्सिटी तमिलनाडु, एमएस स्‍वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन तमिलनाडु, सेंटर फॉर अर्थ साइंस स्‍टडीज, त्रिवेंद्रम केरल, पांडिचेरी युनिवर्सिटी पांडिचेरी, नेशनल इंस्‍टीट्यूट ऑफ टेक्‍नोलॉजी कर्नाटक, युनिवर्सिटी ऑफ मुंबई महाराष्‍ट्र, गोवा युनिवर्सिटी गोवा, भावनगर युनिवर्सिटी गुजरात, गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद, गुजरात, कॉलेज ऑफ फिशरीज कोच्‍ची, केरल, कॉलेज ऑफ फिशरीज नेलोरे,आंध्र प्रदेश, कॉलेज ऑफ फिशरीज तूतीकोरिन, तमिलनाडु, कॉलेज ऑफ फिशरीज, रंगायलुना, बेहरामपुर, ओडीशा, कॉलेज ऑफ फिशरीज, श्रीगांव, रत्‍नागिरी, महाराष्‍ट्र, कॉलेज ऑफ फिशरीज साइंस, कुलिया, पश्‍चिम बंगाल और कॉलेज ऑफ फिशरीज, मंगलोर, कर्नाटक।

मई और जून के महीने में आवेदन के लिए आमंत्रण एसआईसीओएम और मंत्रालय, एनसीएससीएम और सहयोगी संगठनों की वेबसाइट पर जारी किया जाएगा। इन क्षेत्रों में प्रकाशित होने वाले दो राष्‍ट्रीय अंग्रेजी दैनिक अखबारों में भी इस संबंध में विज्ञापन दिया जाएगा।

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