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मैं कला की छांव में

स्वाति रस्तोगी

स्वाति रस्तोगी

आर्ट‌-art

अक्सर सवेरे की हरी मखमली घास पर मोतियों जैसी चमकती ओस की बूंदें देखते-देखते, मेरा ध्यान कला के विविध आयाम पर जाकर टिक जाता है। मै रोज कलात्मक खोज और विचार यात्रा के लिए निकल पड़ती हूं। ये चमकीली बूंदें कहां से आती हैं और मोतियों जैसी कैसे चमकने लगती हैं? सारी कल्पनाएं जैसे जाग जाती हैं। सचमुच कितना सम्मोहन है, इन ओस की बूंदों में, और मै अपने सवालों के उत्तर में खुद से कह रही हूं कि यही कला का एक रूप है, जिसको जानने, सीखने और जिसमें जीने के लिए दिन रात भी कम है। यह मेरे जीवन की सबसे अतुलनीय संपदा है, सम्मोहक है और परिभाषाओं से परे है। कला अपने आप में अनोखी है। हर व्यक्ति अपने वातावरण में फैली हुई सुंदरता के प्रति आकृष्ट होता है, परंतु इसके आकर्षण में छिपे रहस्य को जानने के लिए कला का जानना आवश्यक है।
आधुनिक युग में कला को जानना केवल इसलिए अनिवार्य नहीं है कि वो सुंदरता को प्रदर्शित करने का एक मात्र साधन है। वरन् ये मानव मस्तिष्क में विचारों की उथल-पुथल और अपार शांति का भी निर्माण करती है। आपने
भी तो अपने जीवन के कई पलों में अनुभव किया होगा कि क्यों हम ताजे हरे पत्तों पर जमी हुई ओस को देखकर उसकी सुंदरता से प्रभावित होते हैं, और आंतरिक सुकून का अनुभव करते हैं। कला में वह शक्ति है जो मानव स्तर में छिपी भावनाओं और विश्वासों को उत्पन्न और प्रदर्शित करती है। इसीलिए कला एक बहुआयामी तकनीक है, जिसकी पहुंच से प्रकृति, भावना व मानवता, कुछ भी अछूती नहीं है।
भौतिकतावाद युग में कला ने विजय के उन स्तंभों को छुआ है, जिनकी आज से कुछ वर्षों पहले हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे। प्राचीन काल में कला, राजा-महाराजा एवं उच्च वर्ग के वैभव को प्रदर्शित करने का साधन थी, परंतु आज इस ललित कला की
पहुंच हर एक आम आदमी तक है, भले ही किसी गांव में गेरू से लिपे हुए घर के आंगन में बनी रंगोली हो या किसी आभिजात्य घर का अतिथि कक्ष क्यों न हो। इसलिए कला एक संघर्ष है, एक प्रयोग है। इस विधा में कोई छोटा रास्ता नहीं है, अगर कोई रास्ता है, तो वह है संपूर्ण समर्पण और लगन।

‘रूपभेदाः’ प्रमाणानि भाव लावण्य योजनम्।
सादृश्यं वर्णिका भंग, इति चित्र षडङ्गकम्॥

ललित कला की समतुल्य कलाएं कुछ इस प्रकार हैं-वास्तुकला, मूर्तिकला, नृत्य, साहित्य, नाट्य एवं संगीत इत्यादि। बढ़ईगिरी, सुनहरी, मुद्रणकला, धातुकला, सिरोमिक और आंतरिक सज्जा इत्यादि कलाएं आज व्यवसायिक रूप ले चुकी है। अगर आपका शौक और आपकी प्रतिभा ही आपका व्यवसाय बन जाए, तो इससे बेहतर और क्या होगा?
आज इस क्षेत्र में रोजगार के विभिन्न अवसर हैं-पब्लिशिंग हाउस, एनिमेटर, एडवरटाइजिंग एजेंसी, ग्राफिक डिजाइनर, मूर्तिकार, इलस्टेटर, इंटीनियर डिजाइनर तथा फ्रीलांसिंग से घर बैठे धनोपार्जन आदि। आज जहां कला के जानकार नवीन डिजाइनिंग सॉफ्टवेयर जैसे कोरल पेंटर, अडोब फोटोशॉप, अडोब इलस्टेटर का प्रयोग करके अत्यधिक धनोपार्जन कर रहे हैं, वहीं विशुद्घ हस्त कलाकार अपने हाथों के हुनर से उसकी अलग पहचान बना रहे हैं-एमएफ हुसैन, अंजली मैनन, सतीश गुजराल, कन्नू देसाई, आरएस बिष्ट आदि। कुछ वर्षों पहले जहां हमें हाथों से रंगे होर्डिंग, बैनर व फिल्मों के प्रचार चित्र देखने को मिलते थे, आज कंप्यूटर ने इन कार्यों को सुविधाजनक और कम समय में मुमकिन कर दिया है। कला चाहे कैनवास पर हो या कंप्यूटर की स्क्रीन पर हो, परंतु मेरे विचारानुसार मानव मस्तिष्क ही कला का जनक है। उस तकनीकि देवता ने ही दी है, कलाकारों को अनगिनत रंगों की पसंद।
आर्ट‌-artललित कलायें-भारतीय उपमहाद्वीप की पहचान हैं। मूर्तिकला के क्षेत्र में यह महाद्वीप अपार संपदाओं से भरा हुआ है। अजंता व अलोरा की गुफाएं, एलिफेंटा गुफाएं, बाघ व भीम बैठका गुफाएं, कोनार्क मंदिर, सारनाथ, श्रावस्ती, गया, इसके अदभुत उदाहरण हैं। ललित कला अकादमी, नेशनल म्यूजियम, जहांगीर आर्ट गैलरी, इलाहाबाद संग्रहालय त्रिवेणी आर्ट गैलरी, कला को पोषित करने में लगातार प्रयासरत हैं। मैंने यह जाना है कि हर कलाकार को रेखाचित्र अपनी दिनचर्या का अभिन्न अंग बना लेना चाहिए। कंप्यूटर केवल आपकी रचनात्मकता में वास्तविकता बढ़ा सकता है, परन्तु वह रचनात्मक
तो आपके नये विचारों से, अध्ययन से और अपने कार्य के प्रति चाह से ही प्रकट होगी।

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