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नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की 150 वीं वर्षगांठ पर आयोजित समारोह में कहा है कि शहरीकरण और जनसंख्या के विस्तार के दबावों से देश भर में ऐतिहासिक स्मारकों के लिए खतरा पैदा हो गया है, अगर हम जल्दी से अपनी इस संपदा की देखभाल के तरीकों में सुधार नहीं करते, तो हमें अपनी भावी पीढि़यों को इसका जवाब देना होगा, यह बहुत बड़ी राष्ट्रीय जिम्मेदारी है, जिसमें सरकार की विभिन्न एजेंसियों को सभ्य समाज और स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश की समृद्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संपदा को उजागर करने और भावी पीढ़ियों के लिए इसका संरक्षण करने में इस ऐतिहासिक संस्था का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है और मैं उन सभी समर्पित संरक्षणकर्ताओं को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं, जिन्होंने पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारी इस अमूल्य विरासत बल्कि समूची मानव जाति की इस विरासत को संरक्षित रखा है।
उन्होंने कहा कि हमें अपने आधुनिक और पूर्व काल के बारे में अधिकतर जानकारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के व्यापक खोज कार्य, खुदाईयों और सावधानी से तैयार किये गए आलेखों के जरिए मिलती है। हड़प्पा सभ्यता के बारे में हम अनजाने ही रहते, यदि इस संस्था ने बड़े पैमाने पर इतना कार्य न किया गया होता। भारत में प्राचीन काल के खेतिहर समुदायों, लौह धातु की शुरूआत, प्राचीन शहरीकरण के पहले और दूसरे चरण तथा प्राचीन और मध्य कालीन युग में पश्चिमी और पूर्वी देशों के साथ भारत के संपर्क, कुछ ऐसे ऐतिहासिक विवरण हैं, जो निश्चित रूप से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के इतिहास से जुड़े हुए हैं।
मनमोहन सिंह ने कहा कि पिछले वर्षों में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने खोज, खुदाई, संरक्षण, पर्यावरण उन्नयन, अनुसंधान और प्रकाशन में उच्च क्षमताएं विकसित की हैं, फिर भी, आज पहले से कहीं अधिक, पुरातत्व-विज्ञान अपने विचार-दर्शन और कार्य प्रणाली की दृष्टि से अपनी क्षमताओं का विस्तार कर रहा है। भौतिक संस्कृति की जानकारी बहु-विधाओं के दृष्टिकोण से प्राप्त हो, इसकी संगतता को आज अधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा है, ताकि हमारे प्राचीन काल के बारे में हमें समग्र जानकारी मिल सके। पुरातत्व ज्ञान के लिए वैज्ञानिक प्रणालियों का अधिक-से-अधिक उपयोग किया जा रहा है। इसके लिए काल अंकन प्रणाली, भू-पुरातत्व ज्ञान, वनस्पति ज्ञान, पुरातत्व धातु विज्ञान आदि जैसी उप-प्रणालियों का प्रयोग किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि कुछ उन्नत देशों में नये तरीकों से संरक्षण अभियान चलाया जा रहा है, जो ऐतिहासिक स्मारकों से संबंधित आज के समुदायों के लिए उद्देश्यपूर्ण और उपयोगी हैं। उदाहरण के लिए अमरीका में संघीय नीतियों में स्मारकों के स्थान पर आस-पास के क्षेत्र के संरक्षण पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है और इसमें सरकारी एजेंसियों और सामुदायिक संगठनों की भागीदारी रहती है। भारत में भी हमें संरक्षण के संबंध में अधिक समग्र दृष्टिकोण को विकसित करने की आवश्यकता है, जिसमें समुदायों की सामाजिक और आर्थिक आवश्यकताओं के साथ हमारे संरक्षण प्रयासों का समन्वय हो।
उन्होंने संस्कृति मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से आग्रह किया कि वे नगरों में रख-रखाव और संरक्षण के प्रयासों का सरकारी नीतियों और शहरी नवीकरण योजनाओं के साथ अधिक एकीकरण स्थापित करें। पिछले कुछ समय में सफल संरक्षण प्रयासों के साथ-साथ रोजगार जुटाने के जरिए स्थानीय क्षेत्र के विकास, स्थानीय शिल्पों और कलाओं को प्रोत्साहन, बुनियादी ढांचों के विकास, पर्यावरण संरक्षण और स्थलों के विकास पर ध्यान दिया गया है। हमें विश्व में उपयोग में लाई जा रही श्रेष्ठ प्रणालियों के स्तर पर अपनी प्रणालियों को समुन्नत करने के लिए सभी संसाधनों का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके लिए प्रशासनिक दृढ़ता के साथ-साथ योजनाओं की सही रूपरेखा आवश्यक है। सरकार ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को हर दृष्टि से सुदृढ़ बनाने पर जोर दिया है, हम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के कामकाज में उसे अधिक-से-अधिक पेशेवराना स्वायत्तता देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
मनमोहन सिंह ने कहा कि पुरातत्व संगठन में विद्वान और जानकार लोगों को लाकर इसे मजबूत बनाना होगा, नये विचारों और नयी कार्य संस्कृति को अपनाना होगा, जिससे पुरातत्व में काम करने वाले पेशेवर लोगों को गर्व हो तथा प्रतिभाशाली लोग इस के प्रति आकर्षित हों। प्रशासनिक मामलों में भी कड़े नियमों के स्थान पर लचीलेपन और व्यवहारिक आवश्यकताओं को महत्व दिया जाना चाहिए। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के विश्वविद्यालयों, शोध संस्थाओं और देश तथा विदेश के प्रबुद्ध और पेशेवर लोगों से भी संपर्क बढ़ाए जाने चाहिएं, सामूहिक प्रयास से ही हम एक नयी आदर्श व्यवहारिक प्रणाली विकसित कर सकते हैं, जिससे हम अपने मूल्यवान स्मारकों का बेहतर तरीके से संरक्षण कर सकेंगे।
उन्होंने कहा कि हमारी संपदा का बहुत सारा भाग अभी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के दायरे में नहीं है। राज्यों के पुरातत्व विभागों को, जो हमारे स्मारकों और स्थलों के रख-रखाव के लिए जिम्मेदार हैं, और ज्यादा पेशेवराना सहयोग तथा आर्थिक मदद की जरूरत है। योजना आयोग ने हाल में इस उद्देश्य के लिए एक केंद्र प्रायोजित योजना का सुझाव दिया है। उन्होंने संस्कृति मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को सलाह दी कि वे एक ऐसी योजना बनाएं, जिसके अंतर्गत हमारी विशाल संपदा के पुनर्स्थापन और संरक्षण के कार्य में राज्यों के पुरातत्व विभागों, विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों को अधिक जिम्मेदारी सौंपी जा सके। छात्रों, उद्योग जगत और सामुदायिक संगठनों को इस कार्य से जोड़ने के लिए उनमें जागरूकता पैदा करना, हमारे प्रयासों का अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए। देश के कई महत्वपूर्ण विरासत स्थलों पर संकेत चिन्हों, विवरण और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में किये गए परिवर्तनों का अच्छा स्वागत हुआ है।
उन्होंने कहा कि यह प्रसन्नता की बात है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण पुरालेख शास्त्र, पुरातत्व प्रबंधन तथा रिकॉर्ड निर्माण और प्रकाशनों से संबंधित केंद्रीय पुरातत्व सलाहकार बोर्ड की कुछ सिफारिशों को लागू कर रहा है। दो दशकों के बाद फिर से एपिग्राफिया इंडिका (संस्कृत और द्रविड़ तथा अरबी और फारसी में पुरालेख शास्त्र) का प्रकाशन हुआ है। संस्कृति मंत्रालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के साथ मिलकर राष्ट्रीय पुरालेख शास्त्र प्रोफेसरशिप की शुरूआत की है। कुछ विद्वान पुरालेख शास्त्री जल्दी ही इस संगठन में शामिल होंगे और अब तक अप्रकाशित उत्कीर्ण अभिलेखों का प्रकाशन करने और युवा पुरालेख शास्त्रियों को प्रशिक्षित करने में महत्वपूर्ण योगदान देंगे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने भी युवा विद्वानों के लिए पुरालेख शास्त्र में विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम भी शुरू किये हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने लगभग 50 वर्षों के अंतराल के बाद ‘एंसिएंट इंडिया’ नाम की प्रतिष्ठित पत्रिका फिर से शुरू की है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण कंबोडिया, लाओस, वियतनाम और म्यांमा में भी महत्वपूर्ण स्मारकों की कई संरक्षण परियोजनाओं के साथ सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है। गुजरे वक्त में स्मारकों की पुनर्स्थापना का काफी अच्छा कार्य हुआ है। अफगानिस्तान में बामियान में किये गए शानदार संरक्षण कार्य के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की अभी भी बहुत सराहना की जाती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को अपने पुरातत्व विज्ञान संस्थान की महत्वाकांक्षी पुनर्गठन योजना पर गंभीरता से विचार करना चाहिए, जिसके प्रति अब हमारे कई पड़ोसी देशों से छात्र आकर्षित हो रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि पुरातत्व विज्ञान हमारे भूतकाल को वर्तमान से जोड़ता है और भविष्य के लिए हमारी यात्रा को परिभाषित करता है। हमें अपनी भौतिक संस्कृति में प्रदर्शित सृजनात्मक अभिव्यक्तियों और बहु-परंपराओं की आश्चर्यजनक विविधता के संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी।