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नववर्ष पर राष्ट्र के नाम संदेश में प्रधानमंत्री ने कहा

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प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह/pm manmohan singh

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नववर्ष पर राष्ट्र के नाम संदेश में कहा है कि गुजरा साल पूरी दुनिया के लिए काफी मुश्किलों से भरा साल रहा है, बहुत से विकासशील देशों को आर्थिक तंगी, सामाजिक-आर्थिक तनाव और राजनैतिक उथल-पुथल के दौर से गुज़रना पड़ा और कुछ विकसित देशों को राजनैतिक गतिरोध का सामना करना पड़ा। इलेक्ट्रानिक मीडिया की असाधारण पहुंच और नए सामाजिक नेटवर्किंग प्लेटफार्म के जुड़ाव की क्षमता से बढ़ती हुई अपेक्षाओं की क्रांति को ऊर्जा मिली, जिससे दुनियाभर में सरकारों में एक हलचल दिखाई पड़ी है। उन्होंने कहा कि भारत की अपनी अलग समस्याएं रहीं, भारत की अर्थव्यवस्था धीमी पड़ी और महंगाई बढ़ी, भ्रष्टाचार का मुद्दा सर्वोपरि हो गया, मगर इन घटनाओं से हतोत्साहित नहीं होना चाहिए, नए साल के दिन देश को यह यकीन दिलाना चाहता हूं कि मैं व्यक्तिगत तौर पर एक ईमानदार और ज्यादा कुशल सरकार देने के लिए, एक ज्यादा उत्पादक, प्रतिस्पर्धी और मज़बूत अर्थव्यवस्था बनाने के लिए और एक ज्यादा न्यायपूर्ण और समानता पर आधारित सामाजिक एवं राजनैतिक व्यवस्था देने के लिए कार्य करूंगा।
उन्होंने कहा कि लोकपाल तथा लोकायुक्त विधेयक को लोकसभा ने पारित कर दिया लेकिन, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस विधेयक को राज्यसभा में पारित नहीं किया जा सका, फिर भी, हमारी सरकार एक प्रभावी लोकपाल अधिनियम बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि जब मैं भविष्य की ओर देखता हूं तो मुझे देश के सामने पांच बड़ी चुनौतियां नजर आती हैं, इन चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए हमें केंद्र  सरकार, राज्य सरकारों, राजनैतिक दलों और सभी जागरूक नागरिकों की मिलीजुली कोशिशों की जरूरत है। पहली चुनौती है-गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा मिटाना और सभी को फायदेमंद रोजगार मुहैया कराना, मैं इसे आजीविका सुरक्षा (Livelihood Security) की चुनौती का नाम देना चाहूंगा, इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए हमें कई कदम उठाने होंगे, इनमें सबसे अहम है कि सभी लोगों को शिक्षित किया जाए, क्योंकि मैं जानता हूं कि मेरे लिए शिक्षा की कितनी अहमियत रही है।
मनमोहन सिंह ने कहा कि मैं एक ऐसे परिवार में पैदा हुआ था, जिसके पास मामूली सुविधाएं थीं, एक ऐसे गांव में, जहां न कोई डाक्टर था, न कोई टीचर, न कोई अस्पताल था, न कोई स्कूल, और न ही बिजली थी। मुझे हर रोज स्कूल जाने के लिए मीलों पैदल चलना पड़ता था, लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी, मैं खुशनसीब रहा कि मैं हाईस्कूल की शिक्षा हासिल कर पाया और उसके बाद उच्च शिक्षा, इसी शिक्षा ने मेरी जिंदगी बदल दी और मुझे ऐसे नए मौके दिए, जिनके बारे में मेरी पृष्ठभूमि का कोई और व्यक्ति कभी सोच भी नहीं सकता था। उन्होंने कहा कि अपने बच्चों को शिक्षित करना, उन्हें रोजगार के लायक हुनर दिलाना और उनको स्वस्थ रखना हमारा पहला महत्वपूर्ण काम होना चाहिए, हमारे बच्चों, हमारे परिवारों, हमारे समाज और हमारे देश के भविष्य को संवारने के लिए इससे बेहतर और कोई निवेश नहीं हो सकता है, चूंकि कई कामों का नतीजा मिलने में वक्त लगेगा, इस दौरान हमें उन लोगों पर ध्यान देना होगा, जिन्हें तुरंत मदद की आवश्यकता है, इसलिए ही सरकार ने सबसे ज्यादा जरूरतमंद लोगों को रोजगार दिलाने और उन्हें भोजन उपलब्ध कराने के लिए कदम उठाए हैं।
हमारे लिए दूसरी बड़ी चुनौती है-आर्थिक सुरक्षा। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम तेज़ी से विकास करें और हमारे यहां पर्याप्त संख्या में रोज़गार के अवसर पैदा हों, तेज विकास इसलिए भी आवश्यक है, कि हम अपनी आजीविका की योजनाओं को चलाने के लिए जरूरी राजस्व प्राप्त कर सकें। आठवें दशक के दौरान आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया को इसलिए शुरू किया गया और नौवें दशक के दौरान उसमें इसलिए तेज़ी लाई गई, कि हमारे विकास की रफ्तार तेज हो सके। धीमी रफ्तार की वजह से सुधारों के पूरे नतीजे मिलने में कुछ वक्त लगा है, फिर भी, पिछले कई सालों से, सुधारों के अच्छे नतीजे साफ दिखाई पड़े हैं। सन् 1980 के दशक से पहले हमारी औसत विकास दर 4% थी, यह 2004 के बाद की अवधि में बढ़कर 8% हो गई है, हालांकि, यह विकास दर संतोषजनक है, फिर भी, यह मानना गलत होगा कि भारत अब तेज़ विकास के इस रास्ते पर अटल हो गया है।
वर्ष 1991 में जब हमने अपनी अर्थव्यवस्था को लाइसेंस-परमिट राज से मुक्त करके उदार बनाया था, तब हमारा मुख्य उद्देश्य अपने हरेक नागरिक को अफसरशाही और भ्रष्टाचार के चंगुल से बचाना और उसकी सृजनशीलता को बढ़ावा देना था। आज के नौजवान, जिनकी पैदाइश 1980 और उसके बाद हुई है, उनको उस भ्रष्टाचार की जानकारी नहीं होगी, जो कंट्रोल और परमिट राज की वजह से फैला हुआ था। रेलवे टिकट अथवा टेलीफोन कनेक्शन प्राप्त करने के लिए किसी न किसी को घूस देनी पड़ती थी, एक स्कूटर की भी जल्द खरीदारी करने के लिए आपको किसी न किसी को घूस देनी पड़ती थी, लेकिन, जहां हमारे लोगों की सृजनात्मक ऊर्जा मुक्त हुई है और भ्रष्टाचार के पुराने तरीक़े खत्म हो गए हैं, वहीं भ्रष्टाचार के बहुत से नये रूप सामने आए हैं, जिन्हें खत्म करने की ज़रूरत है, उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करना ज़रूरी है। यह एक ऐसी गंभीर समस्या है, जिसे हल करने के लिए हमें बहुत से क्षेत्रों में काम करना होगा।
उन्होंने कहा कि लोकपाल और लोकायुक्त जैसी नई संस्थाएं इस समस्या को हल करने की दिशा में एक अहम भूमिका अदा करेंगी और हमने उनके गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी है, लेकिन, यह समाधान का केवल एक हिस्सा है, हमें सरकारी कामकाज के तरीकों में भी बदलाव करने पड़ेंगे, ताकि पारदर्शिता बढ़े और विवेकाधीन अधिकारों में कमी आए, इससे कुशासन की गुंजाइश नहीं रहेगी, इस दिशा में कई उपाय किए गए हैं, इनका पूरा असर होने में कुछ वक्त लगेगा, इसलिए हमें धीरज रखना होगा, ये बड़े बदलाव की पहलें हैं, जिन्हें कुछ सालों के बाद इस रूप में पहचाना जाएगा। उन्होंने कहा कि आर्थिक सुरक्षा और खुशहाली सुनिश्चित करने के लिए राजकोषीय स्थिरता बहुत ज़रूरी है, मै भविष्य की राजकोषीय स्थिरता के बारे में चिंतित हूं, क्योंकि पिछले तीन सालों में हमारा राजकोषीय घाटा बढ़ा है, इसका मुख्य कारण यह है कि हमने वैश्विक मंदी से निपटने के उद्देश्य से वर्ष 2009-10 में बढ़ा हुआ राजकोषीय घाटा रखने का फैसला लिया था, यह उस वक्त के हिसाब से सही था, लेकिन, और देशों की तरह, जिन्होंने इस नीति का सहारा लिया, हमारे पास भी राजकोषीय गुंजाइश खत्म हो गई है और हमें एक बार फिर राजकोषीय घाटा कम करने का प्रयास शुरू करना होगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि मध्यावधि में राजकोषीय स्थिरता लाने का सबसे अहम उपाय है-सामान और सेवा कर लागू करना, इससे हमारी प्रत्यक्ष कर प्रणाली आधुनिक बनेगी, आर्थिक कुशलता बढ़ेगी और कुल राजस्व भी बढ़ेगा, एक दूसरा महत्वपूर्ण उपाय है-चरणबद्ध तरीके से सब्सिडी को कम करना, खाद्य सब्सिडी सामाजिक कारणों से तर्कसंगत है और खाद्य सुरक्षा विधेयक के लागू होने पर इसके बढ़ने की संभावना है, परंतु कुछ ऐसी भी सब्सिडी है, जो तर्कसंगत नहीं है और उसे कम किया जाना चाहिए। आर्थिक सुरक्षा के लिए जरूरी कुछ सुधार विवाद एवं चिंता पैदा करते हैं, लेकिन हमें सुधारों के संबंध में अपने पिछले अनुभवों से सीख लेनी चाहिए, हमें बदलाव का आंख मूंदकर विरोध नहीं करना चाहिए। हमारे सामने जो तीसरी चुनौती है, वह ऊर्जा सुरक्षा की चुनौती है। ऊर्जा विकास के लिए ज़रूरी है, क्योंकि ज्यादा उत्पादन करने के लिए ज्यादा ऊर्जा की ज़रूरत होती है। हमारी प्रति व्यक्ति ऊर्जा की उपलब्धता का स्तर इतना कम है कि हमें ऊर्जा उपलब्धता में काफी बढ़ोत्तरी की जरूरत है, हमारे घरेलू ऊर्जा स्रोत सीमित मात्रा में हैं और दुनिया एक ऐसे दौर में आ रही है, जिसमें ऊर्जा की कमी होने और उसकी कीमतें बढ़ने की संभावना है।
उन्होंने कहा कि पर्यावरण सुरक्षा में जंगलों की हिफाज़त जरूरी है, जंगल न केवल हवा में छोड़े गए कार्बन को सोखने में अहम भूमिका निभाते हैं, बल्कि हमें जल सुरक्षा भी प्रदान करते हैं, वन, पानी के बेकार बह जाने को रोकते हैं और भू-जल की मात्रा को बढ़ाते हैं, कई बार, वन भूमि का उपयोग ऊर्जा, खनिज और जल विद्युत सहित प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने के लिए करना पड़ता है, यह काम इस तरह से किया जाना चाहिए कि कम-से-कम वन भूमि का उपयोग हो, इसके बदले में पर्याप्त संख्या में पेड़ भी लगाए जाने चाहिएं। पर्यावरण चुनौतियों के अलावा जलवायु परिवर्तन की बड़ी चुनौती हमारे सामने है, दुनिया के जिम्मेदार नागरिक के रूप में हमें विकास का एक ऐसा रास्ता अपनाना चाहिए, जिसमें हम साल 2020 तक प्रति इकाई सकल घरेलू उत्पाद के अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 20-25% तक कमी लाएं। यह लक्ष्य तर्क संगत ऊर्जा नीतियों से गहराई से जुड़ा हुआ है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे जीवंत लोकतंत्र की आंतरिक सुरक्षा और बाहरी सुरक्षा को खतरा है, इसे राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौती के रूप में देखा जा सकता है, चरमपंथियों और उग्रवादियों के गंभीर रूप से उकसाए जाने के बावजूद, हमारे देशवासी एकजुट रहे हैं, बहुलवादी, धर्मनिरपेक्ष और सर्वनिहित लोकतंत्र में अभी भी उनकी आस्था बनी हुई है, दुनिया भर में लोग भारत से प्रेरणा लेते हैं, खुली सामाजिक व्यवस्था में सर्वनिहित विकास का हमारा मॉडल उन सभी का हौसला बढ़ाता है, जो अन्याय और उत्पीड़न से मुक्ति चाहते हैं, आम जनता को सशक्त बनाने की मांग करने वाली लोकतंत्र की एक नई लहर दुनियाभर में फैल रही है, हमारा देश आज इस माहौल में एक कार्यशील लोकतंत्र के रूप में शान से खड़ा हुआ है, हमारा देश एक अरब से ज्यादा की आबादी वाला एक बहुलवादी और धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र है, जहां दुनिया के सभी महान धर्मों का आजादी से पालन होता है, जहां बहुत सी भाषाएं और खान-पान हैं और बहुत सी जातियों और समुदायों के लोग एक खुले समाज में मिल-जुलकर रहते हैं, यह एक ऐसी कामयाबी है, जिस पर हरेक भारतीय गर्व कर सकता है।
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र कई बार उनके लिए निराशाजनक होता है, जो सरकार में शामिल होते हैं और उनके लिए भी जो इसके और ज्यादा कुशल, प्रभावी तथा मानवीय होने की अपेक्षा रखते हैं, लेकिन हमारा लोकतंत्र हमारी ताकत है, यह हमारी एकता का आधार है, यह हमारी आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने का भी सबसे अहम जरिया है, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए हमारी सेनाओं को आधुनिक बनाया जाना भी उतना ही अहम है, दरअसल, भारत की आर्थिक तथा ऊर्जा सुरक्षा के लिए भी इसकी आवश्यकता है, हमारी सेना, नौसेना तथा वायुसेना को आधुनिक बनाने और उनके कार्मिकों तथा प्रणालियों में सुधार करने की ज़रूरत है, यह सुनिश्चित करना प्रधान मंत्री के रूप में मेरा सबसे महत्वपूर्ण काम रहेगा।

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