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भारत को युवा दुनिया का विकसित देश बनाएं

लोकतंत्र, सामाजिक एवं सांप्रदायिक सद्भाव भारत की ताकत

गणतंत्र दिवस की संध्या पर राष्ट्रपति का देश को संबोधन

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राष्ट्रपति प्रतिभादेवी सिंह पाटिल/president pratibha devisingh patil

नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रतिभादेवी सिंह पा‌टिल ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश को संबोधित करते हुए कहा है कि हम आज ऐसे विश्व में रह रहे हैं जो कि जटिल है और चुनौतीपूर्ण है। उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण की प्रक्रियाओं ने, एक ऐसे विश्व का निर्माण किया है जो आपस में संबद्ध और परस्पर निर्भर हैं, आज कोई भी देश अलग-थलग नहीं है, वह लगातार बाहरी गतिविधियों से प्रभावित हो रहा है, सभी देश, चाहे वे विकसित हों या विकासशील हों, विश्व की आर्थिक अस्थिरता से प्रभावित हैं और कम या ज्यादा मात्रा में बेरोज़गारी तथा महंगाई की समस्या का सामना कर रहे हैं, वास्तव में, इक्कीसवीं सदी अपने साथ बड़ी तेजी से, बहुत सारे मुद्दों को लेकर आई है।
राष्ट्रपति ने कहा कि लोगों की आकांक्षाओं में वृद्धि हुई है और वे उनके तुरंत समाधान की अपेक्षा रखते हैं, आज हम सूचना विस्फोट के साथ, नए से नए तकनीकी आविष्कारों को देख रहे हैं, इन्होंने हमारी जीवन-शैली को ही बदल डाला है और भौतिक सुविधाओं के प्रति चाह भी बढ़ी है, लगातार ऐसे सवाल उठ रहे हैं कि तरक्की तथा संसाधनों को अधिक समतापूर्ण तरीके से, कैसे साझा किया जाए, इस बात पर भी चिंता जताई जा रही है कि वैश्वीकरण, ज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के इस युग में मानव समुदाय किस दिशा में बढ़ रहा है।
उन्होंने कहा कि भारत में, हमारी चर्चा का विषय यह है कि एक प्राचीन सभ्यता वाला, हमारा यह युवा देश, अपनी नियति को प्राप्त करने के लिए किस तरह आगे बढ़े। हमारी परिकल्पना तथा हमारे लक्ष्य स्पष्ट हैं, हम अपने देश को ऐसा देश बनाना चाहते हैं, जिसकी अर्थव्यवस्था इतनी सुदृढ़ हो, ताकि हम तरक्की करते हुए एक विकसित देश बन सकें, परंतु हमारे लिए केवल आर्थिक समृद्धि पर्याप्त नहीं है, भारत को हम एक ऐसे देश के रूप में भी देखना चाहते हैं, जिसमें समता और न्याय हो, देश को सशक्त बनाने के लिए हम, लोकतंत्र, कानून का शासन तथा मानवीय मूल्यों को अनिवार्य मानते हैं।
प्रतिभादेवी सिंह पाटिल ने कहा कि हम चाहते हैं कि हमारे देशवासियों में वैज्ञानिक और तकनीकी अभिरुचि हो, हम चाहते हैं कि भारत एक ऐसे देश के रूप में विकसित हो जो विश्व को नैतिक ताकत प्रदान करता रहे और मैं समझती हूं कि भारत की इस परिकल्पना में सब एक-मत हैं, परंतु फिर भी कभी-कभी कुछ असहमति की खींच-तान से हमारा ध्यान बंटता है, हम अपने देश तथा इसकी जनता को सशक्त बनाने के लिए किस तरह के प्रयास करें? मैं समझती हूं कि इसका उत्तर हमारे प्राचीन मूल्यों में, आजादी की लड़ाई के हमारे आदर्शों में और हमारे संविधान के सिद्धांतों के साथ-साथ हमारी एकता में, सकारात्मक नजरिए में तथा प्रगति की हमारी आकांक्षा में निहित है।
उन्होंने कहा कि हम बहुत खुशनसीब हैं कि हमें मूल्यों, परंपराओं और उपदेशों की एक समृद्ध विरासत प्राप्त हुई है, यह अक्सर कहा जाता है, परंतु हमें इसका पूरी तरह से अहसास नहीं है, भारत की प्राचीन चेतना, उसकी चिरंतन वाणी, सहस्रों वर्षों से गूंजती आ रही है, आखिर वह मौलिक गुण कौन से हैं, जिनके कारण भारत सदियों और युगों-युगों से फलता-फूलता रहा है? वह कौन-सा संदेश है जो हमारे मार्ग को प्रशस्त करे, जब हम अपने भविष्य की ओर अग्रसर हों? हमारी सभ्यता के मूल्यों में कर्त्तव्य और सत्य के उपदेश मौजूद हैं, वे हमें अपने सभी विचारों और कार्यों में मानवता का उपदेश देते हैं और इनमें दूसरों का आदर करना, करुणा तथा सेवा जैसे गुणों पर जोर दिया गया है, इनमें सिखाया गया है कि व्यक्ति और प्रकृति को परस्पर समरसता से रहना होगा, सभी मुद्दों पर समग्र रूप से, मानवता के हित में विचार होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि ‘समन्वय’, ‘सर्वे भवंतु सुखिनः’ तथा ‘वसुधैव कुटुंबकम’ जैसी संकल्पनाएं भारतीय दर्शन का प्राण हैं। इसी दर्शन ने, एक के बाद एक पीढ़ी को, तरक्की करने की मौलिक ताकत दी है और बहुत सी संस्कृतियों, भाषाओं, धर्मों और समुदायों को अपनाया है, इसलिए जब लोग यह प्रश्न उठाते हैं, कि देश को आगे ले जाने के लिए, नई पीढ़ी के समक्ष कौन से आदर्श रखे जाने चाहिए, तब क्या भारत जैसे देश में कोई शंका अथवा हिचक होनी चाहिए? हमारे हजारों वर्षों के इतिहास तथा संस्कृति के वारिसों के रूप में हमें अपने प्राचीन उच्च सभ्यतागत आदर्शों को अपनाना चाहिए, खासकर, युवाओं को यह बात अच्छी तरह समझनी चाहिए, क्योंकि वे भविष्य के निर्माता हैं, हमारा भूतकाल हमारे भविष्य का पथ-प्रदर्शक भी होता है, इस संदर्भ में, मैं गुरुदेव टैगोर की कुछ पंक्तियों का उल्लेख करना चाहूंगी-‘प्रत्येक महान राष्ट्र अपने इतिहास को इसलिए बहुमूल्य मानता है क्योंकि.. इसमें केवल यादें ही नहीं होतीं, वरन् उम्मीद भी होती है और इसीलिए उसमें भविष्य की छवि भी होती है।’
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत का भूतकाल गौरवशाली रहा है और इसका भविष्य भी गौरवशाली होना चाहिए, हम अपने स्वतंत्रता आंदोलन से भी बहुत प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं, यह एक अनूठी लड़ाई थी, क्योंकि इसमें अहिंसक उपायों का प्रयोग किया गया था, जिसके लिए असाधारण जन-अनुशासन, दृढ़ संकल्प तथा धैर्य जरूरी था, हमने गांधी जी के नेतृत्व में यह रास्ता अपनाया, क्योंकि हमें खुद पर और खुद की क्षमताओं पर विश्वास था, निश्चित रूप से, हम यही अनुशासन राष्ट्र निर्माण में भी दिखा सकते हैं, परंतु हम यह किस तरह करें? यह तभी संभव है, जब हम राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य को किसी भी अन्य कार्य से अधिक महत्त्वपूर्ण मानें और इसमें अपना पूर्ण विश्वास दर्शाएं, तभी साहस, विश्वास तथा दृढ़ निश्चय, इस कार्य में हमारे साथ होंगे, इसलिए हमें सांविधानिक रूप से स्वीकार्य व्यवस्था के तहत, सावधानी के साथ आगे बढ़ाना होगा।
उन्होंने कहा कि वास्तव में, विभिन्न कठिनाइयों के दौर में अथवा जब कभी हमारे सामने कोई समस्या आती है, हमें संविधान से मार्गदर्शन मिला है, इसका निर्माण उन लोगों ने किया था, जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई में भाग लिया था और जिन्हें जनता की आकांक्षाओं तथा हमारी संस्कृति की गहरी समझ थी। संविधान, हमारे लिए राष्ट्र निर्माण में दिशासूचक रहा है, और रहना चाहिए। यह हमारे लोकतंत्र का अधिकार-पत्र है और अपने नागरिकों को वैयक्तिक आज़ादी की सुरक्षा देने वाला दस्तावेज है। इसके आधार पर देश की संस्थाएं खड़ी की गई हैं और इसी से उन्होंने अपनी शक्तियां और दायित्व प्राप्त किए हैं,
उन्होंने कहा कि हमारा संविधान, एक सजीव तथा ऊर्जावान दस्तावेज है, इसने अपना मूल स्वरूप बनाए रखते हुए भी बदलते समय की जरूरतों के अनुसार लचीलापन दिखाया है। डॉ बाबा साहेब अंबेडकर ने संविधान सभा में, अपने समापन भाषण में कहा था, ‘मेरे विचार से, हमें जो सबसे पहला कार्य करना चाहिए, वह यह है कि हम अपने सामाजिक तथा आर्थिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सांविधानिक तरीकों पर दृढ़ रहें।’ उन्होंने कहा कि यदि हमें तेज, समावेशी तथा सतत् विकास का लक्ष्य प्राप्त करना है, तो हमें अपने सामाजिक और आर्थिक कार्यक्रमों पर आगे बढ़ने के लिए बहुत प्रयास करने होंगे, हमारी सबसे पहली प्राथमिकता है, गरीबी, भूख, कुपोषण, बीमारी और निरक्षरता का उन्मूलन। सामाजिक कल्याण के सभी कार्य दक्षता से कार्यान्वित किए जाने चाहिएं।
उन्होंने कहा कि सेवाएं प्रदान करने वाली एजेंसियों को, अपने दायित्व के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना रखनी चाहिए तथा अपना कार्य पारदर्शी, भ्रष्टाचार-मुक्त, समयबद्ध तथा जवाबदेह तरीके से करना चाहिए, हमारी अधिकतर जनता युवा है, शिक्षा और प्रशिक्षण देते हुए कुशल बनाकर, उन्हें रोज़गार अथवा खुद का व्यवसाय शुरू करने के योग्य बनाया जा सकता है, इस प्रकार वे उत्पादक परिसंपत्ति बन सकते हैं, अपने मानव संसाधन को विकसित करने के लिए स्वास्थ्य तथा शिक्षा क्षेत्र को मजबूत बनाना, सबसे पहले जरूरी है, बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा को अब मूलभूत अधिकार बनाया जा चुका है और माध्यमिक शिक्षा सभी को उपलब्ध हो, इसके प्रति वचनबद्धता है, स्कूली शिक्षा के प्रसार के कारण उच्च शिक्षा संस्थानों की संख्या में भी वृद्धि करनी होगी, इस प्रक्रिया का ढांचा, बहुत सोच-समझकर खड़ा करना होगा ताकि उसकी गुणवत्ता तथा उत्कृष्टता सुनिश्चित की जा सके, शिक्षा हमारे समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुंचनी चाहिए और इसी तरह स्वास्थ्य सेवा तक भी सभी की पहुंच होनी चाहिए, हमें खासकर, ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं में बढ़ोत्तरी करनी होगी, हमें अपनी जनता के लिए, गुणवत्तायुक्त चिकित्सा सुविधाएं, कम लागत पर उपलब्ध करानी होंगी।
उन्होंने कहा कि सूचना एवं संचार तकनीकी के इस युग में, हमारे स्वास्थ्य तथा शिक्षा मिशन में तकनीक बहुत सहायक हो सकती है, वास्तव में, विज्ञान और तकनीक देश की तरक्की तथा अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों के लिए एक अति महत्वपूर्ण निवेश है, अनुसंधान और विकास पर विशेष ध्यान दिया जाना, हमारे भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है, हमारे कृषि, उद्योग तथा सेवा क्षेत्रों को ज्यादा दक्षता और अधिक वैज्ञानिक तरीके के साथ तालमेल से कार्य करने की जरूरत है, परंतु अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों के साथ कृषि का एकीकरण, अभी कम है, कृषकों और उद्योग तथा अन्य अनुसंधान एवं विकास संस्थानों के बीच, विभिन्न पहलुओं में साझीदारी के मॉडलों की जरूरत है, ये मॉडल ऐसे होने चाहिएं, जिससे न केवल कृषि पैदावार बढ़े बल्कि किसानों को भी लाभ हो, वर्षा-सिंचित खेती पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि इस क्षेत्र में बहुत क्षमताएं हैं और बड़ी संख्या में खेतीहर मजदूर और गरीब किसान इस पर निर्भर हैं, साथ ही, हमें अपनी भौतिक अवसंरचना, अर्थात सड़कों, बंदरगाहों और हवाई अड्डों में वृद्धि की जरूरत है, ताकि तरक्की में आने वाली अड़चनें दूर की जा सकें।
राष्ट्रपति ने कहा कि मेरा मानना है कि महिलाओं को पूरी तरह राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने की जरूरत है, महिलाओं के सशक्तीकरण से, ऐसे सामाजिक ढांचों को खड़ा करने में बहुत मदद मिलेगी जो स्थिर हों। वर्ष दो हजार दस में राष्ट्रीय महिला सशक्तीकरण मिशन स्थापित किया गया है, इससे महिला केंद्रित तथा महिलाओं से संबंधित कार्यक्रमों के समन्वित कार्यान्वयन में सहायता मिलेगी, महिलाओं के विकास का एक महत्वपूर्ण पहलू, उनकी आर्थिक तथा सामाजिक सुरक्षा है, हमारे समाज में व्याप्त, उन सामाजिक पूर्वाग्रहों को समाप्त करने की जरूरत है, जिनके कारण लैंगिक भेदभाव शुरू हुआ है, बालिका भ्रूण-हत्या, बाल-विवाह तथा दहेज जैसी, सामाजिक बुराइयों को समाप्त करना जरूरी है, किसी भी समाज में, महिलाओं की स्थिति उस समाज की तरक्की का एक प्रमुख संकेत होता है।
उन्होंने कहा कि भारत को अपनी लोकतांत्रिक परंपरा पर गर्व होना चाहिए परंतु जैसा कि किसी भी सक्रिय प्रजातंत्र में होता है, इसे भी लगातार विभिन्न दबावों और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, लगातार मत व्यक्त करना, लोकतंत्र की एक प्रमुख पहचान है, निरंतर विचार-विमर्श की यह प्रक्रिया इस तरह चलनी चाहिए कि हम एक-दूसरे की बात सुनने को तैयार हों, जो लोग लोकतंत्र में विश्वास करते हैं, उन्हें यह देखने का प्रयास करना चाहिए कि दूसरे व्यक्ति के नजरिए में क्या कोई औचित्य है? गांधी जी ने एक बार कहा था, ‘तब तक लोकतंत्र का विकास संभव नहीं है, जब तक हम दूसरे पक्ष की बात सुनने को तैयार नहीं होते। जब हम सुनने से इंकार करते हैं, तब तर्क के दरवाजे बंद कर लेते हैं।’ चर्चाओं और विचार-विमर्शों का उद्देश्य होता है, समस्या का हल निकालना, प्रायः हम दूसरों पर दोषारोपण करते हैं, परंतु कोई सकारात्मक हल नहीं दे पाते, लगभग हर चीज पर संदेह करने की प्रवृत्ति दिखाई देती है, क्या हमें अपने लोगों और अपनी संस्थाओं की क्षमता पर भरोसा नहीं है? क्या हम आपस में अविश्वास का जोखिम उठा सकते हैं? धैर्य तथा बड़े बलिदानों पर राष्ट्र खड़े होते हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत जैसे विशाल देश में सौहार्द से प्रगति हो सकती है न कि वैमनस्य से, अतः सभी मुद्दे वार्ता से सुलझाए जाने चाहिएं। इसी प्रकार हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है, ऐसे जीवंत देश के लिए, जो कि अपनी नियति की ओर अग्रसर है, नकारात्मकता तथा अस्वीकृति की विचारधारा, तरक्की का रास्ता नहीं हो सकती, हमारे कार्य, हमारे मूल्य तथा हमारा दृष्टिकोण, भारत और इसके लोगों की महान क्षमता पर आधारित होने चाहिएं, हमारी संस्थाएं भले ही त्रुटि-रहित न हों, लेकिन उन्होंने बहुत सी चुनौतियों का सामना किया है, हमारी संसद ने प्रगतिशील कानून बनाए हैं, हमारी सरकार ने जनता की उन्नति तथा कल्याण के लिए योजनाएं बनाई हैं, हमारी न्यायपालिका की साख ऊंची है, हमारे मीडिया ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जब सभी संस्थाएं मिलकर एक ही राष्ट्रीय लक्ष्य की प्राप्ति के लिए, प्रयास करेंगी तो इससे सकारात्मक ऊर्जा पैदा होगी।
उन्होंने कहा कि सुधार का हमारा प्रयास एक निरंतर प्रक्रिया है, जब हम सुधार लाते हैं और संस्थाओं में बदलाव लाते हैं तो हमें इस बात की सावधानी बरतनी होगी कि जब हम खराब फलों को गिराने के लिए पेड़ हिलाएं तो कहीं पेड़ को ही न उखाड़ फेंकें, अल्पकालिक दबाव आते हैं, लेकिन इस प्रक्रिया के दौरान हमें अपने दीर्घकालीन लक्ष्यों को नहीं भूलना चाहिए तथा अपने मूल राष्ट्रीय कार्यक्रम पर कार्य करते रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रहित की भावना के तहत, विभिन्न भागीदारों के बीच राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे पर चर्चा हो और उनका समाधान ढूंढ़ा जाए, इससे हमारे लोकतंत्र की जड़ें तथा हमारे देश की नींव मजबूत होगी, हमारा भविष्य साझा है और हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यदि हम जिम्मेदारी की भावना तथा एकजुटता का प्रदर्शन करेंगे तो इसे प्राप्त करना मुश्किल नहीं होगा, मैं समझती हूं कि भारत लोकतांत्रिक विश्व के सामने प्रगति और विकास का उदाहरण प्रस्तुत कर सकता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत की विदेश नीति का लक्ष्य ऐसे परिवेश को बढ़ावा देना है, जो उसके सामाजिक, आर्थिक बदलाव में सहायक हो, हम विश्व के सभी देशों के साथ सहयोग तथा मित्रता के संबंध बनाना चाहते हैं, अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ हम रचनात्मक तालमेल रखते हैं, ताकि वैश्विक चुनौतियों का हल ढूंढ़ा जा सके, भारत की भूमिका तथा इसकी हैसियत में वृद्धि हो रही है और विश्व समुदाय में हमारा देश धीरे-धीरे ऊंचाई की ओर अग्रसर है, भारत चाहता है कि वैश्विक संस्थाओं का ढांचा इस तरह का हो, जो कि मौजूदा वास्तविकताओं को अधिक व्यक्त कर सके, हमें इस बात का भी गर्व है कि विभिन्न देशों तथा महाद्वीपों में बसे हुए भारतवंशियों ने उन देशों के आर्थिक, व्यवसायिक और राजनीतिक क्षेत्रों में योगदान दिया है, जहां पर वे अब निवास कर रहे हैं।
प्रतिभादेवी सिंह पाटिल ने कहा कि हमें एक ऐसे सशक्त और समृद्ध राष्ट्र का निर्माण करना है जो मजबूत मूल्य प्रणाली पर टिका हो, जब हम गरीबी हटाएं तो हमें अपने विचारों में भी समृद्धि लानी होगी, जब हम बीमारी को भगाएं तो हमें दूसरों के प्रति सभी दुर्भावनाओं को भी समाप्त करना होगा, जैसे-जैसे हमारे युवा आगे पढ़ाई करते हैं और अधिक ज्ञान प्राप्त करते हैं, उन्हें यह भी सीखना होगा कि वे खुद की प्रगति के अलावा देश की तरक्की के कार्यों में भी भाग लें, जब हम कानूनों का निर्माण करते हैं, तो हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि सबसे कारगर कानून जनता का विवेक है, जैसे-जैसे हम विज्ञान और तकनीकी में प्रगति करते हैं, हमें यह समझना चाहिए कि इसका मुख्य लक्ष्य मानव कल्याण है, जब हम धरती के संसाधनों का उपयोग करते हैं, तो यह नहीं भूलना चाहिए कि, हमें इसकी ऊर्जा की भरपाई तथा नवीकरण करते रहना है।
राष्ट्रपति ने एक कविता की कुछ पंक्तियों के साथ अपनी बात समाप्त की। उन्होंने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में बसे भारतीयों, सशस्त्र सैन्य बलों, अर्ध-सैन्य बलों, ऊंचे पर्वतों, रेगिस्तानों, मैदानी भागों, समुद्री तटों और समुद्र में, अत्यंत सतर्कता और बहादुरी से, देश की सीमाओं की रक्षा कर रहे जवानों, आंतरिक सुरक्षा बलों तथा सिविल सेवाओं से जुड़े लोगों को राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में सहयोग देने के लिए उनकी सराहना करते हुए बधाई दी।

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