रज़िया बानो
स्वस्थ्य स्त्री-पुरूष स्वस्थ समाज की गारंटी है। इस सत्य का ही यह परालौकिक प्रमाण है कि स्त्री के गर्भ से ब्रह्मांड के सबसे शक्तिशाली एवं तेजस्वी शिशु की उत्पत्ति होती है। इसमें स्त्री-पुरूष के बीच सर्वाधिक महत्व किसका है, सदैव से यह एक अनुत्तरित प्रश्न है। कदाचित पुरूष की प्रधानता ही विश्व व्यापी है और अपवाद स्वरूप कुछ ही देश एवं उनके समाज ऐसे हैं, जहां स्त्रियों को पुरूष से अधिक महत्व दिया गया है, फिर भी तटस्थ लोग दोनों का समान महत्व बताते हैं। अनेक व्याख्याताओं का मत इसलिए स्त्री के पक्ष में जाता है क्योंकि वह ही, जन्मते ही एक अग्नि परीक्षा से गुजरती है- बड़े होकर एक पत्नी एवं एक माँ की सर्वाधिक कठिन भूमिका निभाती है, नौ महीने अपने मातृत्व की रक्षा करते हुए प्राण भी गंवाती है, उसी पर बच्चे के प्रारंभिक लालन-पालन, शिक्षा एवं संस्कारों और घरेलू मामलों का बड़ा भारी दबाव होता है, वक्त पड़ने पर उसे रणचंडी भी बनना पड़ता है। जब तक वह जिंदा रहती है, उसे कोई न कोई जिम्मेदारी और अंतहीन चुनौतियों से कभी छुटकारा नहीं मिलता है। धन्य हैं वे स्त्रियां जिन्हें राजसी ठांट-बांट में रहने पलने एवं सुख समृद्धियों का खजाना मिलता है, लेकिन यदि उनमें कोई स्त्री अस्वस्थ है तो उसके लिए यह सब भी निरर्थक हो जाता है। वह समाज को शिशु के रूप में देने वाले 'उपहार' को स्वस्थ जीवन नहीं दे सकती। तभी कहा जाता है कि घर में स्त्री की अस्वस्थ्यता से पूरा परिवार लड़खड़ा जाता है। यूं तो अपवाद हर अवस्था में कहीं न कहीं मौजूद हैं।
ये दार्शनिक पंक्तियां हिंदी में लिखी 'स्त्री रोग कारण और निवारण' पुस्तक के संदर्भ में काफी प्रासंगिक हैं। यह पुस्तक छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय (किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी) लखनऊ की प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ रेखा सचान ने लिखी है। किसी ऐसी पुस्तक को पढ़ने के बाद मानव जीवन एवं उसकी स्वस्थ पीढ़ी की ओर ध्यान जाना स्वाभाविक है और यह स्वस्थ समाज की एक बड़ी चिंता है। पुस्तक ने इस गंभीर विषय पर ध्यान खींचा है। इसमें स्वस्थ माँ-स्त्री एवं उसके रोगों के संबंध और उनके निदान को हिंदी में बहुत ही सरल तरीके से, सफल प्रयोगों पर आधारित तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया है। लेखिका डॉ रेखा सचान ने यह पुस्तक हर स्त्री की पहुंच के भीतर रखते हुए उसमें उसके निजी संकोचों को दूर करने के स्वप्रेरित उपाय किए हैं। स्त्री रोगों की उत्पत्ति एवं निदान की प्रक्रिया चित्रों की सहायता से बताई है। स्त्रियों के रोगों का विशेष संबंध गर्भाशय से कैसे है यह बताया गया है और यह भी कि गंभीर बीमारियों के कारण ही एक स्त्री अत्यंत गंभीर रोगी हो जाती है, जिससे उसकी अधिकांश रोगों में सहज मृत्यु हो जाती है। ऐसे कई कारणों का इसमें निदान सहित उल्लेख है।
डॉ सचान की यह पुस्तक उन बालिकाओं और महिलाओं के लिए अत्यंत प्रेरणा से समृद्धशाली है जो अपनी प्रथम अवस्था की सच्चाईयों एवं शारीरिक परिवर्तनों को रहस्य, संकोच एवं दिशाहीनता से ग्रस्त होकर कुसंगत को प्राप्त हो जाती हैं या स्वयं की ही नासमझी में अपना शारीरिक नुकसान कर बैठती हैं, जिससे आगे चलकर उन्हें गंभीर शारीरिक कष्ट भोगने पड़ते हैं। पुस्तक को विशेष रूप से हिंदी में इसलिए लिखा गया है ताकि कोई भी महिला एवं बालिका इसे पढ़कर उन रोगों के प्रति जागरूक एवं सर्तक हो सकती है जो उस पर भविष्य में कभी भी हमला कर सकते हैं। इसमें रोगों एवं उनके निदान को चार खंडों में विभाजित किया गया है। हिंदी की पुस्तकों एवं पत्र-पत्रिकाओं में स्त्री रोगों पर असंख्य पुस्तकें एवं लेख प्रकाशित होते आ रहे हैं लेकिन इस प्रकार की पुस्तक कम ही देखने को मिलती है जिसमें सटीक एवं सरल तरीके से रोगों और उनके निदान को प्रस्तुत किया गया है।
डॉ रेखा सचान ने यह पुस्तक समाज की उन सभी महिलाओं को जिन्होंने माँ या पत्नी बनकर शारीरिक परिवर्तन अथवा रोग ग्रस्त होकर मौत को करीब से देखा है, समिर्पित की है। पुस्तक को चार खंडों में बांटा गया है। प्रथम खंड में गर्भवती महिलाओं के सामान्य एवं असामान्य लक्षण, बीमारियों का परिक्षण एवं इलाज, असामान्य गर्भ एवं रक्तअल्पता, सामान्य प्रसव, असामान्य प्रसव, सिजेरियन सेक्शन है। दूसरे खंड में स्त्रियों के जननांगों में होने वाले विभिन्न प्रकार के कैंसर, लक्षण परिक्षण एवं निवारण हैं। तीसरे खंड में विभिन्न प्रकार के साधारण ट्यूमर व रसौली-लक्षण, परीक्षण एवं निवारण है और चौथे खंड में महिलाओं के जननांगों में संक्रमण, गर्भवती महिलाओं में होने वाले संक्रमण हैं।
लेखिका ने पुस्तक की भूमिका में अपने अनुभवों और भावनाओं को आत्मिक रूप से प्रकट करते हुए लिखा है कि प्रत्येक महिला या परिवार के बड़े बुर्जुग यही मानते हैं कि गर्भास्था सामान्य बात है, किंतु इस अवस्था से लगभग प्रत्येक महिला अपनी जिंदगी में एक बार गुजरती है। माँ शब्द एवं मातृत्व दोनों का ही जीवन में अलग स्थान है, और जब माँ या मातृत्व यानि शिशु किसी माँ से जुदा होता है तब संपूर्ण परिवार बिखर जाता है। महिला के लिए सबसे भयानक एवं जानलेवा हिपेटाइटिस इ है, यदि गर्भवती महिला को यह संक्रमण हो जाता है तो बहुत तेजी से पीलिया बढ़ती है और महिला हिपैटिक कोमा में पहुंचकर मृत्यु को प्राप्त हो जाती है। यह पुस्तक पढ़कर यदि मातृत्व मृत्युदर में थोड़ी भी गिरावट आती है तो इस पुस्तक को लिखने का उद्देश्य सफल हो जाएगा।
डॉ रेखा सचान एक स्त्री रोग विशेषज्ञ के रूप में सौ से भी अधिक स्वास्थ्य शिविर और कैंसर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित कर चुकी हैं। उनके बीस से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय शोध-पत्र प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने दस से अधिक शोध कार्य किए हैं और स्त्री रोगों से संबंधित पचास से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में भाग लिया है, यहां उन्हें अनेक पुरस्कार भी मिले हैं। डॉ सचान ने इंडियन कैंसर सोसाइटी की सचिव, चिकित्सा विश्वविद्यालय डॉक्टर्स एसोसिएशन की संयुक्ति सचिव, लेडी रेजिडेंट हास्टल की प्रोवोस्ट और नोडल ऑफिसर जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है। इसके महत्व को देखते हुए इस पुस्तक का एक सौ एक रुपये मूल्य भी कम लगता है। यूं तो एक स्त्री और पुरूष का संयुक्त रूप से स्वस्थ रहना अत्यंत आवश्यक है फिर भी महिलाएं इस पुस्तक से जागरूक होकर उस समाज पर अवश्य ही उपकार करेंगी जो उनमें अपनी स्वस्थ भावी पीढ़ी के सपने देखता है।