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लखनऊ। स्त्रियों के मातृत्व और उनके समस्त रोगों के प्रति सचेत करने वाली हिंदी में लिखी एक दुर्लभ किताब स्त्री रोग, कारण और निवारण का राजधानी में किताब की विशेषताओं के स्क्रीन पर प्रदर्शन के साथ विमोचन किया गया। किताब के विमोचन की सबसे ख़ास बात यह थी कि इसको ऐसी तीन प्रमुख महिलाओं ने विमोचित किया जिनका हर वर्ग की महिलाओं एवं बालिकाओं में व्यापक रूप से सामाजिक जनाधार माना जाता है। इन महिलाओं ने किताब के महत्व से प्रभावित होते हुए इसके व्यापक प्रचार और प्रसार की आवश्यकता पर जोर दिया। इसके साथ ही उन्होंने राज्य सरकार से भी आग्रह किया कि वह इस किताब को गांवों में गर्भवती महिलाओं की रोगों के प्रति जागरूकता और राज्य के प्रसूति अस्पतालों के मार्गदर्शन के लिए अधिकारिक रूप से जारी करे।
यह पुस्तक प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ और छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमसीयू) लखनऊ की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ रेखा सचान ने लिखी है। लखनऊ में स्कार्पियों क्लब ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाहिस्ता अंबर, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति डॉ रूपरेखा वर्मा और आदर्श कन्या महाविद्यालय वरवा जलाकी की प्रबंधक शोभा वर्मा ने विमोचन करते हुए किताब को हर वर्ग की महिलाओं की हमदर्द, सखी और ऐसी सचेतक बताया जिसको पढ़ने से महिला अपने शरीर में आए हानिकारक परिवर्तनों को समझकर उनका उपयुक्त इलाज करा सकती है। इस किताब में अत्यंत सरल तरीके से लेखिका डॉ रेखा सचान ने महिला के मातृत्व एवं प्रसूति रोगों के प्रकटीकरण एवं उनके उपचार के संबंध में एक विशेषज्ञ के रूप में वृहद मार्गदर्शन किया है।
अपने संबोधन में शाहिस्ता अंबर ने डॉ रेखा सचान को महिलाओं के लिए अत्यंत उपयोगी, इतनी अच्छी और हिंदी में यह पुस्तक लिखने के लिए बधाई दी और कहा कि सरकार प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में इस पुस्तक को अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराए, इसके पढ़ने से हर स्त्री या बालिका को भी गंभीर रोगों से बचाव करने में मदद मिलेगी और हर मां अपना जीवन सुरक्षित रखते हुए एक स्वस्थ शिशु को जन्म दे सकेगी। शाहिस्ता ने कहा कि ईश्वर की स्त्री के रूप में पृथ्वी पर यह शानदार और खूबसूरत संरचना है जिसकी हर हाल में सुरक्षा आवश्यक है आखिर यह गर्भ धारण करके न केवल एक शिशु को जन्म देती है अपितु उसके लालन पोषण को भी अपने जीते जी अंजाम देती है।
लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति डॉ रूप रेखा वर्मा ने इस पुस्तक के महत्व को प्रकट करते हुए कहा कि इसका गांवों में आम महिलाओं तक पहुंचना बहुत जरूरी है और यह भी आवश्यक है कि इसके सस्ते संस्करण उपलब्ध कराए जाएं। रूपरेखा ने डॉ रेखा सचान को इस प्रकार की पुस्तक लिखने के लिए बधाई दी। मुख्य अतिथि और आदर्श कन्या महाविद्यालय की मैनेजर शोभा वर्मा ने आशा व्यक्त की कि इस प्रकार की पुस्तकें और भी लिखी जाएंगी। इस प्रयास के लिए उन्होंने डॉ रेखा सचान की सरहाना की। विमोचन कार्यक्रम में प्रमुख संस्कृतिकर्मी संध्या रस्तोगी ने पुस्तक को महिलाओं की अप्रतिम सखी कह कर संबोधित किया। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक जागरूकता फैलाकर अनेक गर्भवती माताओं के जीवन को सुखमय बनाने में सफल होगी।
डॉ रेखा सचान ने स्त्रियों को सलाह दी है कि वे उनसे संबंधित रोगों के प्रति जागरूक हों क्योंकि देश में स्त्रियों में मातृत्व से संबंधित जानकारियों के अभाव के कारण ही उनकी सर्वाधिक मृत्यु के मामले सामने आए हैं। स्त्रियों में सबसे भयानक एवं जानलेवा हिपेटाइटिस इ है, यदि गर्भवती महिला को यह संक्रमण हो जाता है तो वह बहुत तेजी से पीलिया में बदल जाता है जिससे महिला की मौत हो जाती है। इसके प्रति हर गर्भवती स्त्री को सचेत रहना बहुत आवश्यक है। डॉ सचान का कहना है कि यदि महिलाएं परिवार नियोजन के उचित तरीके अपनाएं तो वे स्वयं स्वस्थ रह सकती हैं और सेप्टिक एबॉर्शन से होने वाली मातृत्व मृत्यु दर को भी कम किया जा सकता है।
लेखिका ने चिंता के साथ उल्लेख किया है कि विश्व स्तर पर पांच से दस प्रतिशत गर्भवती महिलाएं हाइपरटेंशन यानी उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों से ग्रस्त हैं। विकसित देशों में तीन से दस प्रतिशत/प्रतिवर्ष गर्भवती महिलाएं पीईटी/प्री इक्लैम्पटिकटॉक्सीमिया से ग्रस्त हैं। विकासशील देशों में दो से आठ प्रतिशत गर्भवती महिलाएं पीईटी से ग्रस्त होती हैं और हाइपरटेंशिव कारणों से होने वाली मातृत्व मृत्युदर लगभग 16 प्रतिशत है। डॉ रेखा सचान ने लिखा है कि कैंसर शब्द से एहसास होता है कि मृत्यु अत्यधिक करीब है, जबकि ऐसा नहीं है। यदि कैंसर का पता शुरूआती दौर में लग जाए तो यह पूर्णरूप से ठीक हो जाने वाली समस्या है। आज भी ग्रामीण महिलाएं अशिक्षित एवं संकोची स्वभाव की हैं और जागरूकता की कमी होने के कारण मर्ज फैल जाने के पश्चात भी अस्पताल देर से पहुंचती हैं। डॉ रेखा सचान का अनुमान है कि किसी भी समय करीब 20 से 25 लाख लोग कैंसर से पीड़ित हैं। करीब 7 लाख नए लोग प्रतिवर्ष कैंसर से ग्रस्त होते हैं और करीब 3 लाख लोग इससे प्रतिवर्ष मर जाते हैं। कैंसर से होने वाली मृत्यु का 50 प्रतिशत हिस्सा मुंह का कैंसर, फेफड़े का कैंसर, गर्भाशय का कैंसर, स्तन कैंसर एवं आंत का कैंसर है।
डॉ सचान ने पुस्तक में लिखा है कि मधुमेह-विश्व की संपूर्ण जनसंख्या का लगभग-1 से 15 प्रतिशत मधुमेह ग्रस्त महिलाओं का है। एशिया देशों में यह प्रतिशत 5 से 8 प्रतिशत है एवं उसमें 90 प्रतिशत महिलाएं गर्भावस्था में मधुमेह से ग्रस्त होती हैं, जिसे जेस्टेशनल डायबिटीज कहते हैं, जब इंसुलिन नहीं आई थी तब इससे होने वाली मातृत्व मृत्यु दर 25 प्रतिशत थी। यदि सामान्य या असामान्य प्रसव तृतीय स्तर के अस्पताल में योग्य चिकित्सक से कराया जाए तो प्रसव के दौरान होने वाली माताओं की मृत्यु को रोका जा सकता है। फेडरेशन ऑफ आब्स्ट्रेटिक एवं गायनी (फागसी) संस्था के सन् 2006 के आकड़ों के अनुसार विश्व स्तर पर मातृ मृत्यु अनुपात यानि एमएमआर 400 प्रति एक लाख लाइव बर्थ है, प्रति एक लाख जीवित शिशु के जन्म के दौरान या प्रसव उपरांत 42 दिन बाद तक 400 माताओं की मृत्यु हो जाती है। भारत में एमएमआर 307 प्रति एक लाख लाइव बर्थ है एवं उत्तर प्रदेश में एमएमआर 440 प्रति एक लाख लाइव बर्थ है।
डॉ सचान ने भारत सरकार के सर्वे से प्राप्त आकड़ों को प्रस्तुत करते हुए लिखा है कि एमएमआर 254 प्रति एक लाख लाइव बर्थ है और मातृ मृत्यु दर 20.7 प्रतिशत है। उत्तर प्रदेश की मातृ मृत्यु दर 53.8 प्रतिशत है यानि भारत में प्रति वर्ष मातृ मृत्यु दर का सबसे प्रमुख कारण पोस्टमार्टम हैमरेज अर्थात प्रसव के होने के बाद होने वाला रक्त स्राव है और यह संपूर्ण मातृ मृत्यु दर का 15 से 25 प्रतिशत हिस्सा है। फागसी संस्था एवं विश्व संगठन का उद्देश्य है कि एमएमआर को सन् 2015 तक घटाकर 109 प्रति एक लाख लाइव बर्थ लाना है। गर्भवती महिलाओं की मृत्यु में 29 प्रतिशत मृत्यु एनीमिया से एवं 3 प्रतिशत मृत्यु सेप्सिस से एवं 10 प्रतिशत मृत्यु आब्स्ट्रक्टेड लेबर अर्थात प्रसव के दौरान शिशु के फंस जाने से होती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के 1998 में एकत्रित आकड़ों के आधार पर डॉ सचान ने लिखा है कि 13 प्रतिशत माताओं की मृत्यु असुरक्षित गर्भपात से हो रही है। भारत वर्ष में लगभग 10 प्रतिशत एबॉर्शन ही नियमानुसार यानि लीगल होते हैं। लगभग 10 प्रतिशत एबॉर्शन के जो मरीज अस्पताल में भर्ती होते हैं वह सेप्टिक एबॉर्शन हैं। जहां तक महिलाओं को होने वाले कैंसर का प्रश्न है तो यह शब्द सुनते ही एक भय उत्पन्न हो जाता है, ऐसा एहसास होता है कि मृत्यु अत्याधिक करीब है, जबकि ऐसा नहीं है। यदि कैंसर का पता शुरूआती दौर में लग जाए तो पूर्ण रूप से ठीक हो जाने वाली समस्या है।
डॉ रेखा सचान और उनके पति एवं सीएसएमएमयू के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ एमएल पटेल ने विशिष्ट अतिथियों का स्मृति चिन्ह और गुलदस्ते प्रदान कर स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ अमरीश कुमार ने किया। डॉ रेखा एवं डॉ पटेल ने विमोचन कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आगंतुकों का अभार व्यक्त किया।