चेतन मटरू
अपराधों की खोज करने में न्याय-वैद्यक विज्ञान का अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान बन गया है। अपराध और अपराधी एक अभिशाप और समाज-कल्याण के मार्ग में एक रोड़ा है। इसके रोकथाम की आवश्यकता है जिसके लिए पुलिस एजेंसियां सारे देश में कार्यरत हैं। दुनियाभर में आज के समाज में अपराध का पता लगाने के लिए सभी प्रकार के उन्नत तथा प्रगामी वैज्ञानिक प्रणालियों का प्रयोग किया जा रहा है जिससे न्याय-वैद्यक विज्ञान प्रयोगशाला के परिष्कृत उपकरणों और यंत्रों की सहायता से पर्याप्त प्रमाण प्राप्त करके एक अपराधी के अपराध या एक अबोध संदिग्ध व्यक्ति की अबोधता को सिद्ध किया जा सके।
भारत में अपराध अन्वेषण विज्ञानियों के लिए पोलीग्राफ (झूठ पकड़ने की विधि) एक आधुनिक साधन है जिससे वैज्ञानिक पूछताछ और संबद्ध भौतिक उत्तर घटना के कुछ तथ्यों को बतला सकते हैं। इस विधि ने संदेहास्पद व्यक्ति को अपराध स्वीकार करने के लिए बाध्य भी किया है। दोहरे हत्या के एक मामले में एक घरेलू युवा नौकर ने लूटने के उद्देश्य से छूरा घोपकर निर्ममता पूर्वक एक गृहिणी और उसकी युवा बेटी को मौत के घाट उतार दिया। जब मुख्य संदेहास्पद व्यक्ति पर पोलिग्राफी परीक्षण किया गया तो पुलिस मामले का सुराग लगाने में समर्थ हुई। इन वैज्ञानिक जांचों पर सूक्ष्म तथा तात्कालिक अनुवर्तन के फलस्वरूप, संदिग्ध व्यक्ति ने अपराध स्वीकार कर लिया और चुराई गई संपत्ति भी बरामद कर ली गई। इस विधि ने अपराध अन्वेषण कर्ताओं का काम काफी आसान किया है।
व्यापक अर्थ में न्याय-वैद्यक विज्ञान से अभिप्राय है अपराध के अन्वेषण में वैज्ञानिक सिद्धांतों तथा प्रणालियों का प्रयोग। भौतिक प्रमाण के मूल्यांकन से अपराध की खोज में प्रयोग किए जाने वाले समस्त आधारभूत विज्ञान तथा उनके विधि तंत्र इसके अंतर्गत आते हैं। एक अपराध से संबद्ध ठोस भौतिक पदार्थों की अभिन्नता तथा पृथकता की मात्रा निर्धारण करना ही एक न्याय-वैद्यक वैज्ञानिक का मुख्य रूप से कार्य होता है। अंगुलि-छापों, मल-धब्बों, धातु-टुकड़ों, अस्थि-टुकड़ों, लकड़ी तथा रंग खंडों, धागों, बाल, उपकरण-चिन्हों, टूटे शीशे, विस्फोटक अवशेषों, छोड़ी गई गोलियों, जीव विज्ञान संबंधी धब्बों (वीर्य, मूत्र, लार, रक्त आदि) विषों के चिन्ह तथा अपराध से संबंधित बहुत से अन्य भौतिक सामग्री प्रमाणों से इस प्रकार की सूचनाएं प्राप्त करनी पड़ सकती है। भौतिक प्रमाण स्थापित करने तथा उनकी भी परस्पर तुलना करने में वैज्ञानिक विश्लेषणात्मक प्रणालियों से ही न्याय-वैद्यक वैज्ञानिकों को तथ्यों का निर्धारण करना पड़ता है। एक अपराध से संबंधित प्रमाणों के क्रम में यह एक महत्वपूर्ण कड़ी प्रदान करता है। फिर भी, यह वैज्ञानिक विशेषज्ञ अभियोजन तथा बचाव पक्ष के लिए एक साक्षी नहीं होता बल्कि न्यायालय का मुख्य रूप से एक साक्षी होता है।
पिछले कुछ वर्षों में अपराध की खोज में आधुनिक वैज्ञानिक प्रणालियां विशिष्टकरण के क्षेत्र में, पूर्णरूप से विकसित हुई हैं। इसे न्याय-वैद्यक विज्ञान (या अपराध-विज्ञान) कहा जाता है। दशकों पूर्व वैज्ञानिक रूप से उन्नत देशों ने न्याय-वैद्यक विज्ञान प्रयोगशालाओं के निर्माण का कार्य वास्तविक रूप में आरंभ किया। समस्त वैज्ञानिक क्षेत्रों में हुई तेज प्रगतियों ने अपराध की खोज के क्षेत्र में नवीनतम परा-रसायनिक तथा जीवन वैज्ञानिक तकनीकों के प्रयोग को सामने ला दिया है। उदाहरण के तौर पर, इलेक्ट्रोफोर्सिस एक्सरे विवर्तन तथा न्यूट्रान उत्प्रेरण विश्लेषण आदि का प्रयोग आजकल आधुनिक न्याय-वैद्यक प्रयोगशालाओं में मानक तकनीक बनते जा रहे हैं। विस्फोटकों या स्वापकों की गंध तथा संदिग्ध व्यक्तियों की आवाज की विशेषताओं के आधार पर उनकी पहचान तथा स्थान निर्धारण में सहायता प्राप्त करने के लिए परासंवेदी गंध का अभिलेखन करने वाले यंत्र और वाणी-प्रिंट के प्रयोग में आलफेट्रोनिक्स के नए से नए तकनीकों को पूर्ण कर लिया गया है। मनो-शारीरिक तकनीकों पर आधारित पोलीग्राफ का प्रयोग किसी व्यक्ति से किसी विषय पर प्रश्न किए जाने के बाद उससे शरीर क्रियात्मक उत्तरों को प्राप्त करने में वैज्ञानिक सिद्धांतों का एक अन्य महत्वपूर्ण प्रयोग है।
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो, दिल्ली पुलिस, सरकारी विभागों तथा लोक उद्यमों से प्राप्त मामलों का विश्लेषण तथा परीक्षण करने के लिए आधुनिक प्रयोगशालाएं हैं। उनमें रिपोर्टों के प्रामाणिक महत्व को बढ़ाने के लिए नए तकनीकों के विकासार्थ विशेष रूप से न्याय-वैद्यक विज्ञान के सभी पक्षों में अनुसंधान तथा विकास कार्य किया जाता है। अन्वेषण अधिकारियों व न्याय-वैद्यक विज्ञान पाठ्यक्रमों के छात्र प्रशिक्षार्थियों को न्याय-वैद्यक विज्ञान पढ़ाने का कार्य भी किया जाता है। शोध-पत्रों का प्रकाशन, पुलिस प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में भाग लेना, प्रदर्शनियां, वैज्ञानिक गोष्ठियां आदि केंद्रीय न्यायवैद्यक विज्ञान प्रयोगशाला के अन्य कार्यकलाप हैं। प्रशिक्षण, विकास और जटिल मामलों पर राय के बारे में यह प्रयोगशाला राज्य सरकारों तथा उनकी विज्ञान प्रयोगशालाओं की भी सहायता करती है।