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अर्थव्यवस्था की समीक्षा में आगे और भी संघर्ष

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नई दिल्ली। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्‍यक्ष सी रंगराजन ने अर्थव्यवस्था की समीक्षा की रिपोर्ट सोमवार को जारी की। रिपोर्ट के अनुसार अर्थव्यवस्था के वर्ष 2010-11 में 8.6 प्रतिशत रहने और उसके 9 प्रतिशत की दर से बढ़ने के आसार हैं। मार्च 2011 तक मुद्रास्फीति दर 7.0 प्रतिशत रहने का अनुमान है। कुल मिलाकर यह समीक्षा रिपोर्ट आर्थिक सुधारों में आगे भी कड़े संघर्ष की ओर इशारा करती है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदुओं को रेखांकित करते हुए बताया गया है कि कृषि में वर्ष 2010-11 में 5.4 प्रतिशत की वृद्धि रहने के और वर्ष 2011-12 में 3.0 प्रतिशत वृद्धि रहने का अनुमान है, उद्योग के क्षेत्र में वर्ष 2010-11 में 8.1 प्रतिशत और वर्ष 2011-12 में 9.2 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान है, सेवा क्षेत्र में वर्ष 2010-11 में 9.6 प्रतिशत और वर्ष 2011-12 में 10.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है, वैश्विक आर्थिक और वित्तीय स्थिति में धीमी रफ्तार से सुधार होने की संभावना है, घरेलू बचत और निवेश में बढ़ोत्तरी की विकास में अहम भूमिका रहेगी। वर्ष 2010-11 में निवेश दर 37.0 प्रतिशत और वर्ष 2011-12 में 37.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है, वर्ष 2010-11 में घरेलू बचत दर 34 प्रतिशत और वर्ष 2011-12 में 34. 7 प्रतिशत रहने का अनुमान है, सकल घरेलू उत्पाद का चालू खाता घाटा वर्ष 2010-11 में 3.0 प्रतिशत और वर्ष 2011-12 में 2.8 प्रतिशत रहने के आसार हैं, वर्ष 2010-11 में उत्पाद व्यवसाय घाटा 132 बिलियन डॉलर या जीडीपी का 7.7 प्रतिशत और वर्ष 2011-12 में 151.5 बिलियन डॉलर या सकल घरेलू उत्पाद का 7.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है।

रिपोर्ट के अनुसार अलक्षित व्यापार सरप्लस वर्ष 2010-11 में 81.3 बिलियन डॉलर या जीडीपी का 4.8 प्रतिशत और वर्ष 2011-12 में 95.7 बिलयन डॉलर या जीडीपी का 4.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था की उच्च विकास दर की वित्तीय जरुरत पूंजी प्रवाह को समाहित हो सकती है। वर्ष 2009-10 में 47.8 बिलियन डॉलर की तुलना में वर्ष 2010-11 में पूंजी प्रवाह 64.6 बिलियन डॉलर और वर्ष 2011-12 में पूंजी प्रवाह 76.0 प्रतिशत रहने का अनुमान है। वर्ष 2009-10 में अभिवृद्धि से आरक्षित 13.4 बिलियन डॉलर की तुलना में वर्ष 2010-11 में इसके 12.1 बिलियन डॉलर और वर्ष 2011-12 में 20.2 बिलयन डॉलर रहने का अनुमान लगाया गया है। खाद्य पदार्थों की गिरती कीमतों और विशेषकर सब्जियों की कीमतों में कमी से खाद्य पदार्थों की महंगाई में कमी आने का दावा किया गया है। तैयार सामान के क्षेत्र में मुद्रास्फीति कम है। नीति निर्धारकों की तरफ से तैयार सामान की मुद्रास्फीति को 2011/12 के दौरान 5 प्रतिशत से नीचे रखने के लिए विशेष ध्यान दिया गया है। निर्गम की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए मुद्रा नीति और उसे बिना भेदभाव से चलाने के लिए कड़ाई बरते जाने की बात कही गई है। मौद्रिक नीति के लिए कड़ी तरलता शर्तें वित्तीय क्षेत्र को समुचित रूप से संकेत देती हैं। अर्थव्यवस्था को मुद्रास्फीति से बचाने के लिए मौद्रिक और राजस्व नीतियों को कड़ा करना जरूरी बताया गया है क्योंकि आपूर्ति में कमी की वजह से मुद्रास्फीति के बढ़ने जैसी स्थिति में भी मौद्रिक नीति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

सरकार के सामने चालू वर्ष में राजस्व में सामंजस्य बिठाना कोई समस्या नहीं बताई गई है, चुनौती, उचित खर्च प्रबंधन के साथ वित्त आयोग के लक्ष्य को हासिल करना जरूरी कहा गया है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि पिछले साल के अप्रैल से दिसंबर की अवधि की तुलना में वर्ष 2010-11 में कुल केंद्रीय राजस्व में 62.9 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। वर्ष 2010-11 के अप्रैल से दिसंबर की अवधि के दौरान पूंजी खर्च में 64.6 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। वर्ष 2010-11 के लिए राजस्व में घाटा बजट के अनुमान से थोड़ा बेहतर रहने की उम्मीद है। वर्ष 2010-11 के लिए समेकित राजस्व घाटा जीडीपी का 7.5 से लेकर 8 प्रतिशत रहने की उम्मीद है। माल और सेवा कर (जीएसटी)को लागू करना बेहद ज़रुरी बताया गया है। बजट में दर्ज स्तर का राजकोषीय घाटा और राजस्व घाटा अभी भी ढाढस बंधाने की स्थिति में नहीं है।

देश में 9.0 प्रतिशत की विकास दर को बनाए रखने के लिए उठाए जाने वाले ज़रुरी कदम इस प्रकार हैं- मुद्रास्फीति को काबू में करने के लिए मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों और आपूर्ति प्रबंधन पक्ष की ओर विशेष ध्यान देना जरूरी बताया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उर्जा क्षेत्र पर खास ध्यान देते हुए मूलभूत संरचना को विकसित करने की गति को और तेज़ करना होगा। चालू खाता घाटे को जीडीपी के 2-2.5 प्रतिशत रखने के लिए प्रयास जारी रखने होंगे और इसके साथ ही देश में विदेशी निवेश को बढ़ावा देना होगा। इसी प्रकार कृषि क्षेत्र पर विशेष ध्यान देना होगा, जिसके तहत बीज का विकास, जल प्रबंधन और भूमि की उर्वरकता एवं आपूर्ति तंत्र में सुधार लाना होगा।

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