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लंदन। "बीआर चोपड़ा अपने समय से बहुत आगे की फ़िल्में बनाने वाले निर्देशक थे। उन्होंने हमेशा सामाजिक सच्चाइयों से जुड़ी फ़िल्मों का निर्माण किया, आम आदमी की समस्याओं को अपनी फ़िल्मों का विषय बनाया, मगर मनोरंजन का दामन नहीं छोड़ा। उनकी पत्रकारिता की पृष्ठभूमि उन्हें विषयों की तलाश में मदद करती थी। नया दौर (1957) संभवतः उनकी सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म कही जा सकती है। मनुष्य बनाम मशीन जैसे ज्वलंत विषय को बीआर चोपड़ा ने बहुत संवेदनशील ढंग से प्रस्तुत किया है और उस पर ओपी नैय्यर का पंजाबियत लिया सुरीला संगीत जैसे विषय को नये अर्थ दे रहा हो।" ये शब्द तेजेन्द्र शर्मा?महासचिव कथा यूके?के हैं। नेहरू केन्द्र लंदन में एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स एवं कथा यूके के एक रंगारंग कार्यक्रम का अवसर था, जिसमें तेजेन्द्र शर्मा बोल रहे थे। कार्यक्रम में हिंदी सिनेमा की मुख्यधारा के महत्वपूर्ण निर्माता निर्देशक बीआर चोपड़ा की उपलब्धियों का लेखा जोखाश्रोताओं के सामने रखा गया।
तेजेन्द्र शर्मा ने बीआर चोपड़ा की फ़िल्म वक़्त (1965) के कुछ दृश्य भी दिखाए जिनमें राजकुमार (राजा) और रहमान (चिनाय सेठ) की टक्कर दिखाई गई। दर्शकों की करतल ध्वनि से साफ़ पता चलता था कि राजकुमार की संवाद अदायग़ी आज भी दर्शकों के बीच लोकप्रिय है। तेजेन्द्र ने 1957 में बनी नया दौर के पीछे की कहानी भी दर्शकों को सुनाई। कैसे मधुबाला फ़िल्म की नायिका थीं और कैसे उनके पिता अताउल्ला ख़ान को यह बात मंज़ूर नहीं थी कि उनकी बेटी दिलीप कुमार के साथ आउटडोर शूटिंग पर जाए। कैसे वैजयन्ती माला फ़िल्म की हीरोइन बनी और कितना लंबा कोर्ट केस चला। इसके अलावा तेजेन्द्र शर्मा ने अफ़साना, एक ही रास्ता, साधना, धूल का फूल, धर्मपुत्र, कानून, गुमराह, वक़्त, हमराज़, इन्साफ़ का तराज़ू और निक़ाह जैसी फ़िल्मों पर महत्वपूर्ण टिप्पणियां भी कीं।
तेजेन्द्र शर्मा का मानना है कि बीआर चोपड़ा की फ़िल्मों की गुणवत्ता बढ़ाने में साहिर लुधियानवी की शायरी का महत्वपूर्ण योगदान है। अपनी असामयिक मृत्यु तक साहिर ने बीआर चोपड़ा की सभी फ़िल्मों के लिये गीत लिखे। संगीतकार बदलते रहे मगर साहिर लुधियानवी बीआर फ़िल्मस के स्थायी स्तम्भ बने रहे। एन दत्ता एवं रवि ने साहिर के गीतों को अमर बनाने में उल्लेखनीय भूमिका अदा की। कार्यक्रम में तेजेन्द्र शर्मा ने तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा, मांग के साथ तुम्हारा, यह देश है वीर जवानों का, ऐ मेरी ज़ोहरा ज़बीं, आज की रात नहीं शिक़वे शिक़ायत के लिये, नीले गगन के तले जैसे गीतों को भी दिखाया। बहुत सी फ़िल्मों से जुड़ी कहानियों एवं गप्पों का ज़िक्र भी तेजेन्द्र शर्मा ने किया।
इंसाफ़ का तराज़ू का विश्लेषण तेजेन्द्र ने विस्तार से किया। उन्होंने समयाभाव के कारण दर्शकों से क्षमा मांगी कि उन्हें कार्यक्रम को थोड़ा छोटा करना पड़ा। बाक़ी का मसाला दर्शकों को फिर किसी दूसरे कार्यक्रम में दिखाया जा सकता है। कार्यक्रम में एक नया रंग भरने के लिये युवा गायक (रॉयल कॉलेज और म्यूज़िक) जटानील बैनर्जी ने फ़िल्म गुमराह की साहिर लिखित नज़म गा कर सुनाई ? चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों। गिटार पर उनका साथ दिया निखिल ने। त्रिनिदाद की बहनों कृष्णा एवं कैमिलिता ने रेश्मी शलवार कुर्ता जाली का पर मज़ेदार नृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। शायद बीआर चोपड़ा की सोच के अनुसार कार्यक्रम में मनोरंजन का पुट डाला गया था। कार्यक्रम के बारे में एक सार्थक टिप्पणी क्लासिकल ग़ज़ल गायक सुरेन्द्र कुमार ने की, ?मैं जब इस कार्यक्रम में आया था तो बीआर चोपड़ा मेरे लिये केवल एक नाम था। मुझे लगता है कि यह कार्यक्रम देखने के बाद मैं उनके बारे में बात कर सकता हूं।?
कार्यक्रम की समाप्ति में महाभारत का वो अंश दिखाया गया जिसमें श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते है- यदा यदा ही धर्मस्य ग्लनिर्भवति भारत, अभ्युत्थानमधर्मस्य स्वात्मानं सृजाम्यहम, परित्राणाय साधूनाम विनाशाय च दुष्कृताम, धर्मसंस्थापनार्थाय, संभवामि युगे युगे। नेहरू केन्द्र की निदेशिका मोनिका मोहता ने कार्यक्रम की शुरूआत में श्रोताओं का स्वागत करते हुए एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स की अध्यक्षा काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी एवं तेजेन्द्र शर्मा को कार्यक्रम के लिये धन्यवाद दिया। उन्होंने श्रोताओं को बताया कि तेजेन्द्र शर्मा नेहरू केन्द्र से लम्बे समय से जुड़े हैं और बीआर चोपड़ा की फ़िल्मों के इस कार्यक्रम का आनंद सभी दर्शक उठा पाएंगे। उन्होंने सभागार में उपस्थित दर्शकों को यक़ीन दिलाया कि भविष्य में नेहरू सेंटर ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन नियमित रूप से करेगा। हमें इन कार्यक्रमों में भारत की अन्य भाषाओं की फ़िल्मों पर भी कार्यक्रम आयोजित करने होंगे।