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नई दिल्ली। केंद्रीय संस्कृति मंत्री कुमारी शैलजा ने बताया कि गांधी कालेनबाख अभिलेखों का अधिग्रहण करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इस समझौते के बाद इन अभिलेखों को सोथबी की प्रस्तावित नीलामी से हटा लिया गया है। उन्होंने दोहराया कि भारत सरकार राष्ट्रीय आंदोलन के नेताओं से संबद्ध पुरातात्विक सामग्री और कलाकृतियों को सर्वोच्च महत्व देती है। अधिगृहीत सामग्री को राष्ट्रीय अभिलेखागार भारत (एनएआई) में रखा जाएगा। इस समझौते को विदेश मंत्रालय और राष्ट्रीय अभिलेखागार भारत से परामर्श के बाद अंतिम रूप दिया गया। समझौते पर संबद्ध तीन पक्षों अर्थात भारत सरकार, सोथबी और सारिद परिवार ने दस्तखत किए हैं। इसके लिए 825,250 पाउंड की राशि नीलामीकर्ता सोथबी को जारी की गई है और इन अभिलेखों को नीलामी से हटा कर भारत सरकार को बेच दिया गया है।
उल्लेखनीय है कि प्रोफेसर रामचंद्र गुहा और प्रोफेसर सुनील खिलनानी की ओर से गांधी-कालेनबाख दस्तावेजों के ऐतिहासिक महत्व के बारे में व्यक्त राय के मद्देनजर उन्हें हासिल करने की कोशिश की गई। ये दस्तावेज हर्मन कालेनबाख की प्रपौत्री डॉक्टर इरा सारिद के पास थे। सारिद परिवार ने इन अभिलेखों के लिए पांच मिलियन डॉलर की राशि रखी थी। भारत सरकार ने यह पेशकश विचारार्थ स्वीकार कर ली। आखिरकार इसके लिए 825,250 पाउंड की राशि तय हुई, जो महज 1.28 मिलियन डॉलर के बराबर है।
अभिलेखीय सामग्री की प्रमाणिकता और उसके ऐतिहासिक महत्व का आकलन करने के लिए राष्ट्रीय अभिलेखागार के महानिदेशक प्रोफेसर मुशीरूल हसन के नेतृत्व में पांच सदस्यीय समिति लंदन के नीलामीकर्ता सोथबी के पास भेजी गई। सामग्री के ऐतिहासिक महत्व के मद्देनजर समिति ने सुझाव दिया था कि सभी अभिलेखों के अधिग्रहण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। सोथबी के साथ विचार-विमर्श के बाद समस्त गांधी-कालेनबाख अभिलेखीय सामग्री के लिए अंतिम पेशकश की गई और यह करार संपंन हो गया।