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Friday 05 April 2013 06:39:29 AM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सीआईआई के राष्ट्रीय सम्मेलन और वार्षिक आम बैठक में कहा है कि सरकार और व्यापारी दोनों को ही इस प्राचीन देश की विकास गाथा लिखने में भागीदार बनना चाहिए, सीआईआई अनेक वर्षों से इस काम में हमारा बहुमूल्य साझीदार रहा है, आर्थिक सुधारों को लागू करने का जटिल कार्य संभालते हुए विभिन्न सरकारों ने अर्थव्यवस्था का संचालन किया है, सीआईआई लगातार सुधारों के मामले में व्यापारियों का पक्ष प्रस्तुत करता रहा है और इस तरह से उसने देश की सकल संभावितआर्थिक क्षमता का उपयोग करने में सहायता की है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अदी गोदरेज को धन्यवाद, जिन्होंने यहां मुझे सबके सामने अपने विचार रखने का अवसर दिया, वह भी ऐसे समय पर जब पूरा व्यापार जगत देश की अर्थव्यवस्था की दशा दिशा जानने के लिए उत्सुक है, सात वर्ष पहले 2007 में मैंने आखिरी बार सीआईआई के वार्षिक अधिवेशन को संबोधित किया था, वह ऐसा समय था, जब वैश्विक आर्थिक संकट शुरू भी नहीं हुआ था, उस समय दुनिया की अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही थी, लेहमान ब्रदर्स का पतन हो चुका था और भारत नौ प्रतिशत प्रतिवर्ष की आर्थिक विकास दर का अनुभव ले रहा था, तब से परिस्थितियां सिर्फ भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में बदल गई हैं।
उन्होंने कहा कि पिछली बार सीआईआई को संबोधित करते हुए मैंने कुछ विरोधी बाते कही थीं, उस समय सबकुछ ठीक चल रहा था और मैंने तब चेतावनी देकर सावधान किया था और कहा था कि हालांकि हमने काफी उपलब्धियां प्राप्त की हैं, लेकिन हमें अभी एक ऐसी विकास प्रक्रिया का सृजन करना है, जो सचमुच समावेशी हो, मैंने ये भी कहा था कि हालांकि ऊपरी तौर पर भारतीय व्यापार जगत वृद्धि और समृद्धि की तरफ बढ़ रहा है और विदेशों में भी उसकी उपस्थिति है और यह उस समय भारत की उपलिब्धयों का प्रमाण था, लेकिन व्यापारियों को उनकी सामाजिक जिम्मेदारी की तरफ भी ध्यान दिलाने की जरूरत थी, उस समय खासतौर से मैंने वेतन भुगतान और बेतहाशा उपभोग के बारे में संयम से काम लेने की जरूरत बताई थी, किंतु बाद में मेरे कुछ मित्रों ने मुझे बताया कि मेरी टिप्पणी को बेवजह ही निराशाजनक माना गया, लेकिन आप सहमत होंगे कि ये ऐसे मुद्दे हैं, जो वैश्विक आर्थिक संकट के बाद दुनिया भर में लोगों की नजर में आने लगे।
मनमोहन सिंह ने कहा कि आज मैं एक बार फिर वैसी ही बात कहने जा रहा हूं, अगर वर्ष 2007 में व्यापार जगत की स्थिति अनावश्यक रूप से आशावादी थी, तो आज मैं उसे जरूरत से ज्यादा निराशावादी मानता हूं, इसे ठीक करने की जरूरत है, वर्ष 2007 में मैं बार-बार सुनता था कि सरकार असंगत हो गई है, क्योंकि कोई भी सरकार कुछ भी करे, भारत की विकास दर नौ प्रतिशत बनी रहेगी, आज इस बात पर सभी लोग सहमत हैं कि जब तक सरकार तेजी से कार्रवाई नहीं करेगी, हमारी विकास गति जो पहले ही धीमी पड़ चुकी है, और धीमी हो जाएगी और पांच प्रतिशत पर पहुंच जाएगी। उन्होंने कहा कि स्वभाविक है और मैं सरकार के प्रति व्यापार जगत की इस नई खोज और नई राय का स्वागत करता हूं, मेरा विश्वास है कि सरकार की भूमिका हमेशा ही महत्वपूर्ण होती है, मैं इस बात पर विश्वास नहीं करता कि भारत की आर्थिक विकास दर भविष्य में पांच प्रतिशत रह जाएगी, पिछले दस वर्ष में भारत की अर्थव्यवस्था आठ प्रतिशत की औसत दर से बढ़ती रही है, हम वही विकास दर फिर प्राप्त कर सकते हैं, हम सबको मिलकर इसके लिए प्रयास करने चाहिएं, लेकिन इसके लिए सरकार को तेजी से और निर्णायक कार्रवाई करनी होगी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार ही विकास की प्रमुख चालक नहीं होती, किसी प्राइवेट सेक्टर की अगुवाई वाली अर्थव्यवस्था में विकास का चालक वास्तव में प्राइवेट निवेश होता है, हमारी अर्थव्यवस्था में 75 प्रतिशत निवेश प्राइवेट सेक्टर से आता है, जिसमें किसान, छोटे व्यापारी और कार्पोरेट सेक्टर शामिल हैं, इस तरह से हमारी अर्थव्यवस्था प्राइवेट सेक्टर की अगुवाई में चल रही है, लेकिन प्राइवेट सेक्टर को ऐसे माहौल की जरूरत होती है, जिसमें उद्यम फल-फूल सकें, नौकरियों के अवसर सृजित किए जा सकें और विकास को बढ़ावा दिया जा सके, इसके लिए एक माकूल माहौल की जरूरत है, जिसमें सर्व समावेशी प्रगति सुनिश्चित की जा सकेगी, आज जो माहौल बना है, वह आदर्श नहीं है और सरकार को इसमें सुधार लाना है, किसी सुधारात्मक कार्य नीति का आधार समस्या का सही विश्लेषण होना चाहिए, हमारी विकास दर घटकर जो पांच प्रतिशत पर पहुंच गई है, वह निश्चय ही निराशाजनक है, लेकिन विकास दर में यह गिरावट हमेशा के लिए नहीं आई है और दीर्घावधि में यह बढ़ेगी, हमें उन लोगों को गलत साबित करना होगा, जो निराशाजनक भविष्यवाणी कर रहे थे, अब इसके विपरीत स्थिति बन रही है, अगर हम अर्थशास्त्र की पुस्तकों के पन्ने पलटें तो पाएंगे कि व्यापार चक्र बार-बार लौटते हैं, भरोसा है कि हमने जो अस्थाई नकारात्मक विकास दर देखी है, वह जब तक दिखाई देती है, हमें इसे मान्यता देनी होगी और इसमें सुधार के उपाय करने होंगे।
मनमोहन सिंह ने कहा कि इस समस्या के एक हिस्से का कारण है विश्वव्यापी मंदी, जिससे लगभग सभी देश प्रभावित हुए हैं, दुनिया 2008 के आर्थिक संकट से उबर चुकी है और अब दूसरे संकट की तरफ बढ़ रही है, जिसका कारण है यूरोजान की ऋण समस्या। विकास नकारात्मक हो गया है और जापान में तो यह शून्य तक पहुंच चुका है, ब्राजील का विकास 1.5 प्रतिशत की दर से दक्षिण अफ्रीका का 2.6 प्रतिशत और रूस का 3.7 प्रतिशत की दर हो रहा है, इनकी तुलना में चीन ने बेहतर प्रदर्शन किया है, जहां विकास दर 7.5 प्रतिशत रही है, लेकिन अब यह विकास दर चीन की पहले की विकास दर के मुकाबले काफी कम हो गई है, वैश्विक मंदी के बारे में हम कुछ खास नहीं कर सकते। हम सिर्फ उस स्थिति का इंतजार कर सकते हैं, जब दुनिया सामान्य स्थिति में लौट आएगी। इस बीच हमें यह मानना होगा कि हमारे आयात में कमजोरी आई है और हमारा व्यापार घाटा वर्तमान में बढ़ा है, यह उस स्तर से ज्यादा है, जितना होना चाहिए, लेकिन हमें उन घरेलू समस्याओं से प्रभावी तरीके से निपटना होगा जो उठ खड़ी हुई हैं, अगर अर्थव्यवस्था को पूरी क्षमता से बढ़ाना है तो इन समस्याओं का समाधान निकालना जरूरी है। घरेलू समस्याओं से निपटने का पहला उपाय है कि हम अर्थव्यवस्था में आर्थिक संतुलन बहाल करें, पिछले कई वर्षों से हमारा राजकोषीय घाटा बहुत बढ़ गया है, जो स्वीकार्य नहीं है, आंशिक रूप से इसका कारण है, राजकोषीय संप्रेरणा की नीति जिसका अनुपालन अनेक देश कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि जो देश इस नीति पर चल रहे हैं, वे अब इस प्रक्रिया को उलट रहे हैं, हमें भी ऐसा ही करना चाहिए, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय विश्लेषकों को संतुष्ट करना ही काफी नहीं होगा, जरूरत इस बात की है कि हमारी अर्थव्यवस्था में वित्तीय बचत उपलब्ध हो, जो निवेश का समर्थन करे, यह भी जरूरी है कि मुद्रास्फीति को नियंत्रण में लाया जाए, यह एक बड़ी समस्या रही है और हालांकि अब यह नरम पड़ रही है, लेकिन इसे और नीचे लाना जरूरी है। ईंधन सब्सिडी के मामले में सोच-समझकर उपाय किए गए हैं, अब पेट्रोल पूरी तरह नियंत्रण से मुक्त है और दुनिया भर में इसकी कीमतों के घटने बढ़ने के साथ ही कीमतें घट बढ़ रही हैं, डीजल भी पिछले कुछ महीनों से बाजार आधारित मूल्य व्यवस्था के अनुरूप है, एलपीजी पर सब्सिडी कम हुई है, हमें उम्मीद है कि प्रत्यक्ष लाभ अंतरण का आधार मंच के अनुरूप बना देने से दूसरी सब्सिडियों और खासतौर से मिट्टी के तेल पर दी जाने वाली सब्सिडी का रिसाव रोका जा सकेगा। इन सभी उपायों से राजकोषीय समेकन के प्रति हमारा गंभीर रवैया दिखा है और दुनिया भर में इसकी सराहना की गई है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि राजकोषीय घाटे के विस्तार से मौजूदा व्यापार घाटा बढ़ा है और अब यह सकल घरेलू उत्पाद के पांच प्रतिशत के बराबर रहने की उम्मीद है, यह 2.5 प्रतिशत के परंपरागत स्तर का दुगना है, जो परंपरागत रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था में बना रहा है, वर्ष 2013-14 में हम इसमें कुछ कमी की उम्मीद कर सकते हैं, जिससे इस वर्ष के बजट में राजकोषीय घाटा कम करने का लक्ष्य रखा गया है और पेट्रोलियम पदार्थों पर सब्सिडी भी घटाई जाएगी, लेकिन शुरू-शुरू में यह कटौती मामूली होगी, इसीलिए हमें अगले कुछ वर्षों में भुगतान संतुलन में सामान्य घाटे से ज्यादा की योजना बनानी पड़ेगी। उन्होंने कहा कि वृहत आर्थिक संतुलन को बनाए रखना आर्थिक प्रबंधन का एक हिस्सा है और ऐसे माहौल का निर्माण जो निवेश को बढ़ावा दे वह इसका दूसरा हिस्सा है, अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर निवेश दर के साथ मजबूती से जुड़ी होती है, निजी क्षेत्र भारत में निवेश का प्रमुख स्रोत है, लेकिन हमारे सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से के तौर पर 2011-12 में सार्वजनिक और निजी निवेश दोनों में गिरावट आई। निवेश में इस गिरावट को पलटने की आवश्यकता है।
घरेलू स्तर पर निवेश के माहौल में तेजी लाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज जो हम कर सकते हैं, वो है बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं के क्रियान्वयन को प्रभावित करने वाली बाधाओं से निपटना, बहुत सी ऐसी परियोजनाएं हैं, जो नियामक मंजूरी की वजह से अटकी हुई हैं तथा इसके अलावा विद्युत परियोजनाओ के मामलों में ईंधन आपूर्ति समस्याओं की वजह से भी योजनाएं लंबित हैं, बहुत से कारणों की वजह से अंतर सरकारी निर्णय-क्रम में सुस्ती है, इसका एक कारण अधिकारियों द्वारा महत्वपूर्ण निर्णय लेने के संबंध में हिचकिचाहट है। उन्होंने कहा कि पेट्रोलियम क्षेत्र में, सुरक्षा मंजूरी के अभाव की वजह से 40 तेल ब्लॉकों में उत्खनन और उत्पादन गतिविधियों संबंधी 20 बिलियन डॉलर का निवेश अटका हुआ था, सीसीआई ने इसमें परिवर्तन किया है, पांच ब्लॉको के लिए मंजूरी दी जा चुकी है, अगले दो सप्ताह में अन्य 31 ब्लॉकों से संबंधित समस्याओं को सुलझाने की आशा है। बिजली क्षेत्र में, झारखंड के उत्तरी करनपुरा क्षेत्र में 200 मेगावाट परियोजना के एनटीपीसी के प्रस्ताव से संबंधित मुद्दे को सुलझा लिया गया है, 14,000 करोड़ रुपए की लागत वाली यह परियोजना बिजली और कोयला मंत्रालयों के बीच मतभेद के कारण 13 वर्ष से लंबित थी।
उन्होंने उद्योगों से आग्रह किया कि वे पिछड़े समुदायों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लोगों को उपयोगी रोज़गार के अवसर प्रदान करने में विशेष ध्यान दें, अन्य शब्दों में सकारात्मक कार्रवाई केवल कागजी कार्रवाई तक ही सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसमें वास्तविकता होनी चाहिए। प्रधानमंत्री ने विभिन्न क्षेत्रों में हुई प्रगति और भावी योजनाओं का वर्णन किया। उन्होंने कई क्षेत्रों को रेखांकित करते हुए भारतीय उद्योग से आग्रह किया कि वह हमारे संकल्प में विश्वास करें और नकारात्मक अवस्था से प्रभावित न हों, लोकतंत्र होने का एक लाभ यह है कि हमारी त्रुटियों और कमियों को हमेशा जनता के समक्ष रखा जाता है और वास्तव में कई कमियां हैं, भ्रष्टाचार एक समस्या है, नौकरशाह संबंधी जड़ता भी एक समस्या है, गठबंधन प्रबंधन भी आसान नहीं है, लेकिन ये समस्याएं अचानक नहीं उठी हैं, ये पहले भी थीं जब अर्थव्यवस्था प्रतिवर्ष 8 प्रतिशत के दर से बढ़ रही थी, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अर्थव्यवस्था के इतिहास में भारत एक निर्णायक चरण में पहुंचा है, 10 वर्ष में हमारी अर्थव्यवस्था में एक बदलाव आएगा, जिससे हमारे युवाओं के लिए नये रोज़गार के अवसरों का सृजन होगा साथ-साथ ही गरीबी भी काफी निचले स्तर पर आ जाएगी।
मनमोहन सिंह ने कहा कि हम सभी में से प्रत्येक का विश्व के एक बड़े समूह का बहुवादी, उदार और धर्मनिरपेक्ष प्रजातंत्र जैसे भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान है, उस समय जब हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया हमें विचलित करती है तब यह जरूर याद रखना चाहिए कि यह इस तरह का पहला लोकतंत्र है, जहां बहुवादिता की प्रतिबद्धता और इन स्वतंत्रताओं की प्रतिबद्धता का हम लाभ उठाते हैं, जो आधुनिक राष्ट्र में विकसित हुए प्राचीन देश की मजबूत आधारशीला हैं। प्रधानमंत्री ने भारतीय उद्योग से फिर आग्रह किया कि वह अपना विश्वास बनाए रखे और आह्वान किया कि 12वीं पंचवर्षीय योजना में निर्धारित पथ पर अर्थव्यवस्था को वापस लाने में सरकार के प्रयास में सहयोग दें।