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कोलंबो। दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के सदस्य देशों ने कोलंबो में आयोजित सम्मेलन में बच्चों के खिलाफ हिंसा समाप्त करने की प्रतिबद्धता दोहराई। इन देशों ने बच्चों के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने के लिए कार्रवाई करने संबंधी दक्षिण एशियाई देशों के आह्वान को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया। सार्क देशों के प्रतिनिधियों की इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र अध्ययन पर 26-31 मई 2012 के बीच कोलंबो में हुए क्षेत्रीय विचार-विमर्श के बाद बैठक हुई। कोलंबो घोषणा पत्र पर सदस्य देशों ने हस्ताक्षर किये।
सम्मेलन में पाकिस्तान में इस्लामाबाद में बच्चों के खिलाफ हिंसा के बारे में क्षेत्रीय विचार-विमर्श 19-21 मई 2005 के बाद से हुई प्रगति का जायजा लिया गया और 2006 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बच्चों के खिलाफ हिंसा पर संयुक्त राष्ट्र अध्ययन को मंजूरी दी, ताकि बच्चों के खिलाफ हर तरह की हिंसा को खत्म करने के लिए मजबूत उपाय किये जा सकें। एसएआईईवीएसी के तत्वावधान में हुए इस सम्मेलन में सार्क देशों ने बच्चों के अधिकारों के बारे में सरकारों की प्रतिबद्धता को दोहराया।
उन्होंने महिलाओं के प्रति हर तरह के भेदभाव को समाप्त करने सार्क सामाजिक घोषणापत्र, बच्चों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए सार्क क्षेत्रीय प्रबंधन, देह व्यापार के लिए महिलाओं और बच्चों की तस्करी की रोकथाम और उससे निपटने के बारे में सार्क सम्मेलन, एचआईवी/एड्स प्रभावित बच्चों के संरक्षण, उनकी देखभाल और उनकी सहायता के लिए सार्क रूपरेखा तैयार करने, सार्क विकास और सस्त्राब्दि विकास उद्देश्यों के बारे में भी चर्चा की। दक्षिण एशिया के बच्चों के बारे में रावलपिंडी घोषणापत्र (1996) में मंत्रियों की वचनबद्धता और दक्षिण एशिया के बच्चों के बारे में कोलंबो वक्तव्य (2009) और काठमांडू में जून 2010 में हुई एसएआईईवीएसी की मंत्रिस्तरीय बैठक में की गई सिफारिशों को दोहराया।
सार्क देशों के प्रतिनिधियों ने सिविल सोसायटी संगठन, बाल अधिकार विशेषज्ञों, पेशेवरों और शिक्षाविदों के साथ क्षेत्र को बच्चों के खिलाफ हर तरह की हिंसा से मुक्त करने की दिशा में कार्य करने की प्रतिबद्धता दोहरायी और यह कार्रवाई करने का आह्वान किया-कानून, नीतियों और मानकों सहित बच्चों के संरक्षण की राष्ट्रीय और स्थानीय व्यवस्था को मजबूत बनाया जाए, जिससे हर तरह की हिंसा से समय पर निपटा जा सके और ऐसा तंत्र और सेवाएं सुनिश्चित की जाएं, जिन पर सभी बच्चों की पहुंच हो। ऐसी कानून और नीतियां लागू की जाएं जो बच्चों को संभावित नुकसान से बचा सकें और उनकी घर परिवार और स्कूल में हर तरह की हिंसा से रक्षा कर सकें।
बच्चों के प्रति हिंसा, उत्पीड़न और शोषण को समाप्त करने के लिए सामाजिक बदलाव को बढ़ावा दिया जाए। बच्चों के खिलाफ हिंसा के बारे में संयुक्त राष्ट्र अध्ययन की सिफारिशों और एसएआईईवीएसी की कार्य योजना को शामिल करने के लिए एक राष्ट्रीय योजना की समीक्षा की जाए, उसे स्वीकार किया जाए और उसे लागू किया जाए। बच्चों की सुरक्षा के लिए एक तंत्र बनाया जाए और डिजिटल प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जाए। महिला और बाल विकास मंत्रालय में संयुक्त सचिव डॉक्टर विवेक जोशी ने इस सममेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया और बच्चों के खिलाफ हिंसा समापत करने के लिए भारत सरकार के क़दमों की जानकारी दी। उन्होंने यौन अपराधों के खिलाफ बच्चों के संरक्षण संबंधी विधेयक 2012 के बारे में भी विशेष जानकारी दी।
इस बात पर भी आम सहमति थी, कि बच्चों के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने के लिए दक्षिण एशिया में हुई प्रगति के बावजूद बच्चों को गंभीर हिंसा झेलनी पड़ रही है, इसमें बाल श्रम, शारीरिक दंड, यौन शोषण और यौन उत्पीड़न, बच्चों की तस्करी, पलायन और विस्थापन, कारावास, एचआईवी/एड्स संबंधी भेदभाव, विकलांगता, अल्पसंख्यक, अनाथ, बेसहारा बच्चों और बाल विवाह जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।