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Thursday 21 March 2013 11:27:21 AM
नई दिल्ली। श्रीलंका के तमिल मुद्दे संबंधी प्रस्ताव पर सरकार का बयान आया है कि वह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में पेश किये जाने वाले प्रस्ताव के मसौदे में संशोधन लाना चाहती है। संसद में प्रस्ताव पारित करने से पहले सरकार इस संशोधन पर राजनीतिक दलों के साथ सलाह मशविरा करेगी। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री ने भी 18 मार्च 2013 को एक पत्र प्रधानमंत्री को लिखकर आग्रह किया था कि वह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में पेश किये जाने से पहले प्रस्ताव में संशोधन प्रस्तुत करे।
श्रीलंका के तमिल मुद्दे संबंधी संकल्प पर केंद्र सरकार ने मीडिया के लिए जारी बयान में पिछले सप्ताहांत से चले घटनाक्रम के बारे में विवरणों को साझा करते हुए कहा है कि डीएमके अध्यक्ष एम करुणानिधि ने श्रीलंका के तमिल मुद्दे पर प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा था, जिसमें संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के विचार के लिए एक प्रस्ताव का हवाला दिया गया था। एके एंटनी, गुलाम नबी आजाद 18 मार्च को चेन्नई गये और वहां जाकर एम करूणानिधि और उनके वरिष्ठ सहयोगियों के साथ विषय वस्तु पर चर्चा की। जैसा कि आप जानते हैं कि एम करूणानिधि ने सरकार से इस प्रस्ताव के मसौदे में संशोधन लाने का आग्रह किया है और कहा है कि ये संशोधन संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में विचार-विमर्श से पहले संसद से पारित किये जाने चाहिएं।
इस घटनाक्रम पर 19 मार्च 2013 को सोनिया गांधी ने कांग्रेस संसदीय पार्टी को संबोधित किया और कहा कि श्रीलंका में तमिलों की दुर्दशा को लेकर वह भी चिंतित हैं, हम उनके समान अधिकारों का समर्थन करते हैं। इंदिरा और राजीव के जमाने से ही उनके समान अधिकारों और समान रूप से उनकी रक्षा के कानून के प्रति अडिग समर्थन रखते हैं। जिस तरह से उन्हें कानूनी और राजनीतिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है, उसे लेकर हम भी परेशान हैं। हमें उन खबरों को सुनकर बहुत दुख हो रहा है, जिनके अनुसार निर्दोष नागरिकों, बच्चों और खासतौर से 2009 में चले संघर्ष के आखिरी दिनों उन पर जुल्म ढाए गए। यही कारण है कि हम श्रीलंका में मानव अधिकारों के उल्लंघन की स्वतंत्र और भरोसेमंद ढंग से जांच की मांग करते हैं।
बयान के अनुसार इसके कुछ ही देर बाद चेन्नई बैठक के नतीजों पर चर्चा के लिए बैठक हुई। फैसला किया गया कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में जाने से पहले प्रस्ताव के मसौदे में संशोधन तैयार किए जाएं। यह भी तय किया गया कि संसद में पारित करने के लिए प्रस्ताव लाने से पहले राजनीतिक दलों से सलाह मशविरा किया जाए। यह बैठक चल ही रही थी कि मीडिया में खबर आई कि एम करूणानिधि ने ऐलान किया है कि डीएमके सरकार से अपने मंत्रियों को बुला लेगी और यूपीए से समर्थन भी वापस ले लेगी। उन्होंने ये भी बयान दिया था कि अगर वर्तमान अधिवेशन खत्म होने से पहले संसद प्रस्ताव पास करती है, तो डीएमके अपने फैसले पर फिर से विचार करेगा। बयान में कहा गया है कि केंद्र सरकार को उन कारणों का पता नहीं है, जिन्हें लेकर डीएमके ने 18 की रात और 19 की सवेरे के बीच अपनी पोजीशन बदली है।
बयान में कहा गया है कि कुछ भी हो, सरकार ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में पेश किये जाने से पहले प्रस्ताव के मसौदे में संशोधन तैयार करने का काम शुरू कर दिया है। यह संशोधन पिछली रात तैयार कर लिए गए। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भारत के स्थाई प्रतिनिधि सलाह मशविरे के लिए दिल्ली में हैं। उन्हें संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की बैठक के दौरान इन संशोधनों को पेश करने के बारे में उपयुक्त निर्देश दे दिए जाएंगे। मीडिया के एक वर्ग ने ऐसी खबरें दी हैं कि भारत-अमरीका के साथ काम कर रहा है, ताकि इस प्रस्ताव के मसौदे के मूल पाठ को कमजोर किया जा सके। यह बिल्कुल झूठ है। इस समाचार का पूरी तरह से खंडन किया जा रहा है। भारत की पोजीशन हमेशा से यह रही है और आगे भी रहेगी कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद को एक जोरदार प्रस्ताव पारित करना चाहिए और श्रीलंका भेजकर उसे इस प्रस्ताव को मंजूर करने के लिए कहना चाहिए, ताकि वह स्वतंत्र और भरोसेमंद छानबीन का सुझाव मान ले।
बयान में कहा गया है कि संसद में पारित किये जाने वाले प्रस्ताव के मुद्दे पर राजनीतिक दलों के साथ सलाह मशविरा शुरू कर दिया गया है। इस मामले पर राय अलग-अलग हैं। सलाह मशविरा जारी है और संभव है कि सरकार किसी निष्कर्ष पर पहुंच जाएं। कोर ग्रुप और अन्य वरिष्ठ मंत्रियों की कई बार बैठक हुई है और स्थिति की समीक्षा की गई है। यहां तक कि जब देर रात ऐसी एक और बैठक चल रही थी कि डीएमके नेताओं ने भारत के राष्ट्रपति से मुलाकात की और समर्थन वापसी का पत्र उन्हें दे दिया।