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पी चिदंबरम का हारवर्ड विश्‍वविद्यालय में व्‍याख्‍यान

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Wednesday 17 April 2013 12:02:36 PM

p chidambaram

नई दिल्‍ली। केंद्रीय वित्‍त मंत्री पी चिदंबरम ने मंगलवार को हारवर्ड विश्‍वविद्यालय के दक्षिण एशिया संस्‍थान और महिंद्रा मानविकी केंद्र में पूर्व का उदय विश्‍व अर्थव्‍यवस्‍था पर प्रभाव विषय पर अपने विचार रखे। चिदंबरम ने हारवर्ड विश्‍वविद्यालय का धन्‍यवाद देते हुए कहा कि वह इस संस्‍थान में अपने संबोधन से गर्व महसूस कर रहे हैं। चिदंबरम ने कहा कि एक समय के गरीब देशों की आर्थिक प्रगति हमारे समय केंद्र बिंदू में हैं, औद्योगिक क्रांति के डेढ़ सौ साल बाद ब्रिटेन में प्रति व्‍यक्ति आर्थिक उत्‍पादन दुगुना संभव हो पाया, शीघ्र प्रगति करने के बावजूद अमरीका में यह 50 वर्षों में संभव हुआ, जबकि भारत और चीन में पिछले दशक में आर्थिक प्रगति शुरू होने के सिर्फ 16 और 12 वर्षों में अपनी प्रति व्‍यक्ति सकल घरेलू उत्‍पाद को दोगुना कर दिया।
वर्ष 2012 में बाजार विनिमय दरों के आधार पर विकासशील देश विश्‍व जीडीपी में 38 प्रतिशत और विश्‍व प्रगति में 61 प्रतिशत की भागीदारी कर रहे थे, खरीदने की शक्ति की आधार पर विश्‍व विकास में विकासशील देशों की भागीदारी 80 प्रतिशत है। इसमें से चीन की भागीदारी 35 प्रतिशत और भारत की भागीदारी 10 प्रतिशत है, इसलिए यदि आप एक व्‍यापारी हैं और विकास और नये बाजार के लिए जगह तलाश रहे हैं, तो आपको पूर्व की ओर (शायद दक्षिण की ओर) रूख करना होगा।
चिदंबरम ने कहा कि चीन और भारत विश्‍व विकास को आगे बढ़ाने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे। वर्ष 2013 और 14 के दौरान चीन के 8 से 8.5 प्रतिशत और भारत के 6.1 से 6.7 प्रतिशत की दर से बढ़ने की आशा है। वर्ष 2012-।3 में चीन आर्थिक आकार पर अमरीका से पहले ही आगे निकल चुका है। चिदंबरम ने कहा कि विश्‍व को संतुलित आधार अपनाना होगा, जहां औद्योगिक देशों को अधिक बचत करने की जरूरत है, वहीं विकासशील देशों को अधिक खर्च करना होगा। इस प्रकार के तालमेल से जहां औद्योगिक देशों को भारी ऋण को कम करने में मदद मिलेगी वहीं इससे वैश्विक मांग को विकासशील देश पूरा करने में सहायता प्रदान कर सकेंगे।
उन्‍होंने कहा कि तेजी से बदलते समय के साथ बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों को भी विकासशील देशों में लोगों की आकांक्षाओं के अनुरूप बदलाव करने होंगे, मांग में बदलाव के साथ उत्‍पादों को बनाने और निर्णय लेने में स्‍थान की भूमिका भी बहुत महत्‍वपूर्ण होगी। विकासशील देशों की कंपनियां स्‍थानीय ज़रूरतों को बेहतर रूप से समझती हैं। चिदंबरम ने निवेश के क्षेत्र में नये स्‍थानों पर ध्‍यान केंद्रित करने का उदाहरण देते हुए दिल्‍ली मुंबई औद्योगिक कॉरिडोर के बारे में कहा कि जापान के सहयोग से पूरी होने वाली इस योजना में 90 बिलियन अमरीकी डॉलर का निवेश किया जा रहा है। इससे दिल्‍ली को मुंबई के बंदरगाहों से छह राज्‍यों से होकर गुजरने वाली 1483 किलोमीटर लंबी सड़कों से जोड़ा जाएगा। इस योजना में नौ विशाल औद्योगिक क्षेत्र, तेज गति से चलने वाली मालवाहक लाइन, तीन बदंरगाह, छह हवाई अड्डे, 4000 मेगावॉट क्षमता का विद्युत संयंत्र और देश की राजनीतिक और वित्‍तीय राजधानी को जोड़ने वाला छह लेन का इंटरसेक्‍शन मुक्‍त एक्‍सप्रेस वे होगा।
चिदंबरम ने कहा कि जहां पूर्वी देश आर्थिक शक्ति के आधार पर बढ़ रहें हैं, वहीं इन देशों को समस्‍याओं के समाधान के लिए विकसित देशों की आवश्‍यकता है, हमारे विश्‍वविद्यालय तेजी से बढ़ रहे हैं, लेकिन हारवर्ड विश्‍वविद्यालय जैसे प्रसिद्ध संस्‍थान हमारे युवाओं को अध्‍ययन देकर, हमारे शिक्षकों को प्रशिक्षण देकर और एक-दूसरे से विचार-विमर्श बढ़ाकर आपसी समझदारी को आगे बढ़ा सकते हैं। पूर्व की प्रगति को दक्षिण के लिए खतरे के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि यदि व्‍यापक रूप से संसाधनों का प्रबंधन किया जाए तो यह सभी के लिए लाभदायक साबित होगा।

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