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Tuesday 17 May 2022 12:46:16 PM
नई दिल्ली। केंद्रीय शिक्षा और कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने अद्वितीय ज्ञान और प्रज्ञा का प्रतीक-भारतीय ज्ञान परंपरा को शिक्षा व्यवस्था की मुख्यधारा से जोड़ने के उद्देश्य से वैशाख पूर्णिमा पर ‘भारतीय ज्ञान प्रणालियों का परिचय: अवधारणाएं और अमल’ पर एक पाठ्यपुस्तक का विमोचन किया और प्रसन्नता व्यक्त की हैकि लेखकों ने इस पुस्तक में भारतीय ज्ञान प्रणाली को एक अकादमिक स्वरूप प्रदान किया है। धर्मेंद्र प्रधान ने वैश्विक स्तरपर भारतीय ज्ञान, संस्कृति, दर्शन और आध्यात्मिकता के व्यापक प्रभाव के बारेमें बताया। उन्होंने प्राचीन भारतीय सभ्यता के बारेमें बताया और जानकारी दीकि इसने पूरी दुनिया को सकारात्मक रूपसे प्रभावित किया है। वेदों, उपनिषदों और अन्य भारतीय ग्रंथों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहाकि हमारी प्राचीन विरासत अद्भुत कृतियों से भरी हुई है, जिसे संरक्षित, प्रलेखित और प्रचार-प्रसार करने की नितांत आवश्यकता है।
शिक्षा और कौशल विकास मंत्री ने प्राचीन भारत की विज्ञान आधारित प्रथाओं और ज्ञान के विभिन्न उदाहरणों के बारेमें भी बताया, जिन्हें हम आजभी आधुनिक दुनिया में प्रासंगिक पा सकते हैं। उन्होंने कहाकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय शिक्षा प्रणाली में वैकल्पिक ज्ञान प्रणालियों, दर्शन और परिप्रेक्ष्य को प्रतिबिंबित किया जा रहा है। उन्होंने कहाकि वैसे तो हम अपने प्राचीन अतीत की अच्छी चीजों को अपनाते हैं, लेकिन इसके साथ ही हमें अपने समाज में निहित समस्याओं के प्रति भी सचेत रहना चाहिए और एक ऐसे भविष्य का निर्माण करना चाहिए, जो प्राचीन अतीत के विशिष्ट ज्ञान एवं समकालीन मुद्दों केबीच उचित सामंजस्य सुनिश्चित करे। उन्होंने कहाकि समस्त दुनिया की अनगिनत समस्याओं का समाधान भारतीय ज्ञान प्रणाली में निहित है। गौरतलब हैकि यह पुस्तक हाल हीमें एआईसीटीई द्वारा अनिवार्य भारतीय ज्ञान प्रणालियों पर एक आवश्यक पाठ्यक्रम की पेशकश करने की आवश्यकता को पूरा करती है, इसके अलावा नई शिक्षा नीति में भी उच्चशिक्षा से जुड़े पाठ्यक्रम में आईकेएस केबारे में विस्तृत जानकारियां प्रदान करने केलिए एक स्पष्ट दिशा बताई गई है, जिससे आनेवाले दिनों में देश के कई उच्च शिक्षण संस्थानों में इस तरह की पुस्तक अत्यंत आवश्यक हो गई है।
वैसे तो यह पुस्तक मुख्य रूपसे इंजीनियरिंग संस्थानों के उपयोग केलिए लिखी गई है, लेकिन इसमें निहित संरचना और सामग्री स्वयं ही इस तरह की पुस्तक केलिए अन्य विश्वविद्यालय प्रणालियों (लिबरल आर्ट्स, चिकित्सा, विज्ञान और प्रबंधन) की आवश्यकता को आसानी से पूरा करने में मदद करती है। आईकेएस पर हालही में जारी पाठ्यपुस्तक विद्यार्थियों को अतीत केसाथ फिरसे जुड़ने समग्र वैज्ञानिक समझ विकसित करने और बहु-विषयक अनुसंधान एवं नवाचार को आगे बढ़ाने केलिए इसका उपयोग करने का अवसर प्रदान करके विद्यार्थियों को पारंपरिक और आधुनिक शिक्षा प्रणाली केबीच की खाई को पाटने में सक्षम बनाएगी। पाठ्यपुस्तक का पाठ्यक्रम भारतीय प्रबंधन संस्थान बेंगलुरू ने व्यास योग संस्थान बेंगलुरू और चिन्मय विश्व विद्यापीठ एर्नाकुलम के सहयोग से विकसित किया है। यह प्रोफेसर बी महादेवन आईआईएम बेंगलुरू ने लिखी है और एसोसिएट प्रोफेसर विनायक रजत भट्ट चाणक्य विश्वविद्यालय बेंगलुरू एवं चिन्मय विश्व विद्यापीठ एर्नाकुलम में वैदिक ज्ञान प्रणाली स्कूल में कार्यरत नागेंद्र पवन आरएन इसके सह-लेखक हैं।
शिक्षा राज्यमंत्री डॉ सुभाष सरकार ने पारंपरिक भारतीय ज्ञान प्रणालियों के बारेमें सीखने की नितांत आवश्यकता का उल्लेख किया। उन्होंने आयुर्वेद, प्राचीनकाल में जहाजों के निर्माण, विमान संबंधी ज्ञान, सिंधु घाटी शहरों के वास्तुकार और प्राचीन भारत में मौजूद राजनीति विज्ञान के उदाहरणों का हवाला दिया। उन्होंने ‘भारतीय ज्ञान प्रणाली का परिचय’ पर पुस्तक की सराहना की, जिसका उद्देश्य भारतीय ज्ञान प्रणालियों की ज्ञानमीमांसा एवं सत्व शास्त्र को जीवन के सभी क्षेत्रों में लागू करना और इंजीनियरिंग एवं विज्ञान के छात्रों को इनसे कुछ इस तरह से परिचय कराना है, जिससेकि वे इससे जुड़ाव महसूस कर सकें, इसके महत्व को गंभीरता से समझ सकें और इस दिशा में आगे खोज कर सकें। डॉ सुभाष सरकार ने कहाकि किसीभी व्यक्ति के उत्थान केलिए उसकी जड़ें अवश्यही मजबूत होनी चाहिएं और इन जड़ों को संरक्षित करने केलिए पारंपरिक भारतीय ज्ञान प्रणाली के बारे में जानकारियां जरूर होनी चाहिएं।
भारतीय ज्ञान प्रणाली प्रभाग अक्टूबर 2020 में स्थापित एआईसीटीई नई दिल्ली में शिक्षा मंत्रालय के अधीनस्थ एक अभिनव प्रकोष्ठ है। इसका उद्देश्य आईकेएस केसभी पहलुओं पर अंतर-विषयक अनुसंधान को बढ़ावा देना, आगे शोध करने और समाज में व्यापक उपयोग केलिए आईकेएस को संरक्षित करना एवं प्रचार-प्रसार करना और हमारे देश की समृद्ध विरासत, कला एवं साहित्य, कृषि, मूल विज्ञान, इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी, वास्तुकला, प्रबंधन, अर्थशास्त्र इत्यादि के क्षेत्र में पारंपरिक ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए सक्रिय रूपसे संलग्न होना है। कार्यक्रम में प्रोफेसर एडी सहस्रबुद्धे अध्यक्ष एआईसीटीई और लेखक डॉ बी महादेवन आईआईएम बेंगलुरू ने स्वागत भाषण दिया। सचिव उच्चशिक्षा संजय मूर्ति, एआईसीटीई, आईकेएस प्रभाग एवं शिक्षा मंत्रालय के प्रतिनिधियों ने भी कार्यक्रम में भाग लिया। एआईसीटीई के उपाध्यक्ष प्रोफेसर एमपी पूनिया ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।