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Monday 6 October 2014 01:33:42 AM
नई दिल्ली। सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य सोलहवीं सदी के उन राष्ट्रीय महापुरुषों में से एक थे, जिनकी वीरता ने विदेशी आक्रांताओं और मुगल साम्राज्य के छक्के छुड़ा दिए थे, मात्र 29 दिनों के शासनकाल में उन्होंने हिंदवी स्वराज के लिए अनेक कदम उठाए। सम्राट हेमचंद्र ने चौबीस युद्ध लड़े और बाईस युद्धों में सफ़ल रहे। दिल्ली में कल शाम हुए एक बड़े स्मरणांजलि कार्यक्रम में प्रसिद्ध इतिहासकार और अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रोफेसर सतीश चंद्र मित्तल ने सम्राट हेमचंद्र के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पानीपत में द्वितीय युद्ध में दुर्घटनावश यदि उनकी और उनके हाथी की आँख में तीर न लगा होता तो मुगलिया सल्तनत और विदेशी आक्रांताओं का उसी समय समूल नष्ट हो गया होता।
सम्राट हेमचंद्र का पूरा जीवन एक कुशल शासनकर्ता, सफल रणनीतिकार और वीरता एवं प्रचंड पराक्रम की अनेक प्रेरक घटनाओं से भरा है। हिंदू धर्म की रक्षा और अन्याय के खिलाफ और मानवता की रक्षा के लिए उन्होंने उस समय संघर्ष किया जब चारों ओर से मुस्लिम आक्रांताओं ने भारत को घेरा हुआ था और भारत को लूटने और यहां के राजाओं को गुलाम बनाकर रखने की मारामारी मची हुई थी। सम्राट हेमचंद्र ने बड़ी होशियारी से न केवल मुगलों को अपने इशारों पर नचाया, अपितु तात्कालिक रणनीति के हिसाब से अपने हिंदू धर्म को भी उनसे बचाए रखा, जो मुस्लिम आक्रांताओं के बीच आसान काम नहीं था। इस वीर सपूत का 7 अक्टूबर 1556 ईस्वी को दिल्ली के पुराने किले में सम्राट विक्रमादित्य की उपाधि के साथ राज्यारोहण हुआ।
प्रोफेसर सतीश चंद्र मित्तल और दूसरे वक्ताओं ने दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय सभागार में आयोजित गोष्ठी-एक विस्मृत हिंदू सम्राट महाराजा हेमचंद्र विक्रमादित्य को स्मरणांजलि में सम्राट के जीवन पर प्रकाश डालते हुए ये बातें कहीं। सम्राट हेमचंद्र के बारे में सुनने के लिए बड़ी संख्या में इतिहासकार, राजनीतिज्ञ, छात्र, सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले जानकार और विचारक मौजूद थे। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद पूर्व केंद्रीय मंत्री व प्रख्यात विचारक डॉ सुब्रह्मण्यम् स्वामी ने कहा कि मुगल आक्रांताओं व अंग्रेज़ों ने दुनिया के जिन जिन भी देशों में आक्रमण किए, वहां की लगभग शत्-प्रतिशत् आबादी को इस्लाम या ईसाइयत में परिवर्तित कर दिया। ईरान, ईराक, मिस्र और यूरोप इसके स्पष्ट उदाहरण हैं, किंतु भारत पर 800 वर्ष मुगलों व 200 वर्ष अंग्रेज़ों ने शासन किया, तो भी, हमारी हिंदू जनसंख्या अभी 85% से ज़्यादा है। उन्होंने कहा कि इसके पीछे महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, झाँसी की रानी महारानी लक्ष्मीबाई तथा सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य जैसे रणबांकुरों व धर्मधुरंधर देशभक्तों का बलिदान ही तो है।
डॉ सुब्रह्मण्यम् स्वामी ने अंग्रेज़ों तथा साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित तथाकथित इतिहासकारों को आड़े हाथों लेते हुए यह भी कहा कि ऐसे योद्धाओं के पराक्रमशाली चरित्र को षड्यंत्रपूर्वक पाठ्य पुस्तकों से बाहर रखा गया, जिसे शामिल किए जाने की आज नितांत आवश्यकता है, जिससे देश की युवा पीढ़ी अपने पूर्वजों की शौर्यगाथा तथा उनके महान कार्यों को याद कर अपने भविष्य को सँवार सके। खचा-खच भरे इस सभागार में उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री विनायक देशपांडे ने कहा कि भारत की स्वतंत्रता व हिंदवी स्वराज्य की स्थापना के कर्णधार महापुरुषों के स्मृतिचिह्न व स्मारक बनाए जाने की आज महती आवश्यकता है, यह दिल्ली का दुर्भाग्य है कि इंद्रप्रस्थ की स्थापना करने वाले पांडवों व उनके राजा युधिष्ठिर तक का कोई भी स्मारक दिल्ली में नहीं है, पृथ्वीराज चौहान, बाजीराव पेशवा, सदाशिवराव पेशवा तथा हेमचंद्र विक्रमादित्य जैसे भारत माँ के सपूतों को नमन करने हेतु उनके स्मारक बनाए जाने चाहिएं, जिससे युवा पीढ़ी को देश के पराक्रमशाली व संघर्षपूर्ण गौरव का ज्ञान हो सके।
इतिहास संकलन समिति के राष्ट्रीय संगठन सचिव बालमुकुंद पांडे ने अतिथियों का परिचय कराया। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रोफसर संतोश शुक्ला ने मंच का संचालन किया गया। समिति के प्रांत महामंत्री अरुण पांडे कार्यक्रम के संयोजक थे। कार्यक्रम में प्रसिद्ध इतिहासकार सोहन लाल रामरंग, विहिप के क्षेत्रीय संगठन मंत्री करुणा प्रकाश, प्रांत महामंत्री रामकृष्ण श्रीवास्तव, लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत अकादमी के उप कुलपति प्रोफेसर राम निवास पांडेय, विहिप के मीडिया प्रभारी विनोद बंसल सहित अनेक गणमान्य लोग इस अवसर पर उपस्थित थे। कार्यक्रम में महाराजा हेमचंद्र विक्रमादित्य तथा हिंदू धर्म व देव लोक नामक दो पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।