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रिहाई मंच ने सुनी लोगों की आपबीती

यूपी प्रेस क्लब में रिहाई मंच की जन सुनवाई

मंच की बाटला मुठभेड़ कांड की आठवीं बरसी

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Wednesday 21 September 2016 02:31:41 AM

up press club, the rihaee manch of the public hearing

लखनऊ। रिहाई मंच ने आरोप लगाया है कि आज़मगढ़ के मुसलमान लड़कों को गायब करके सरकार की खुफिया एजेंसियां उन्हें आईएसआईएस का आतंकवादी बता रहीं हैं। रिहाई मंच का कहना है कि मुलायम सिंह यादव एवं मायावती के मुख्यमंत्रित्वकाल में ऐसे ही अलकायदा के नाम पर गिरफ्तारियां होती रहीं और अखिलेश यादव सरकार में भी आईएसआईएस के नाम पर बेगुनाहों की बे रोक-टोक गिरफ्तारियां हो रही हैं। बाटला हाउस मुठभेड़ कांड की आठवीं बरसी पर रिहाई मंच ने कल लखनऊ में यूपी प्रेस क्लब में जन सुनवाई की और समाजवादी पार्टी सरकार से उसके चुनावी घोषणा पत्र में वादे के मुताबिक बेगुनाहों की रिहाई करने, अदालत से बरी हुए नौजवानों के खिलाफ सरकार की अपील वापस लेने और उनके पुर्नवास की गांरटी देने की मांग की। इस कार्यक्रम में वे लोग या उनके परिजन शामिल हुए, जो या तो लापता हैं या पुलिस हिरासत में हैं और या उनको आतंकवाद के नाम पर उत्पीड़ित किया जा रहा है।
गौरतलब है कि रिहाई मंच बाटला हाउस मुठभेड़ को फर्जी मानता है और तब से उसकी बरसी मनाता आ रहा है। इस मौके पर यूपी प्रेस क्लब लखनऊ में उसने आतंकवाद के नाम पर पीड़ित लोगों की जन सुनवाई की। रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि आतंकवाद के नाम पर बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को फंसाने के मामलों पर मुलायम सिंह यादव अपनी रैलियों में बोला करते थे और अब मायावती भी बोलने लगी हैं, लेकिन इनके सदन में विपक्ष में रहकर या सत्ता में रहते हुए मुसलमानों की गिरफ्तारियां साफ करती हैं कि ये दोनों भी मुसलमानों को देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा नहीं मानते। मोहम्मद शुऐब ने कहा कि हमारे तथाकथित सेक्युलर दल इस मामले से भागते हैं कि इससे बहुसंख्यक वोटों का ध्रुवीकरण हो जाएगा और सेक्युलर दलों में यह वही डर है, जिसका हमेशा खामियाजा मुसलमानों को भुगतना पड़ा है, आजाद भारत में सबसे ज्यादा मुसलमान सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए हैं या आज आतंकवाद के नाम पर जेलों में सड़ने को मजबूर हैं।
रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि रिहाई मंच का आंदोलन सिर्फ गिरफ्तार लोगों की रिहाई की मांग उठाने तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि उसने अनेक फर्जी मुठभेड़ों और गिरफ्तारियों से लोगों को बचाया है और हम इस लड़ाई को और तेज करेंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि लखनऊ निवासी इजहार की वारंगल में चार लोगों के साथ फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर दी जाती है या बेगुनाह मुस्लिम युवकों की रिहाई के लिए सरकार सुप्रीम कोर्ट नहीं जाती, बल्कि वह यादव सिंह जैसे भ्रष्टाचारी के बचाव के लिए कोर्ट जाती है, मायावती सरकार हो या अखिलेश सरकार दोनों ही सरकारें न्यायालयों से रिहा हुए युवकों के खिलाफ अदालत गई हैं, जिससे साफ होता है कि ये सरकारें उनकी गिरफ्तारियों के पक्ष में हैं। रामपुर से आए जावेद ने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा कि एक पाकिस्तानी लड़की से प्रेम करने पर उसे सालों जेल मे रहना पड़ा, उनके प्रेम पत्रों में जावेद और मोबीना के शॉर्ट नाम जे एम को संदिग्‍ध कोड वर्ड बता दिया गया और ऐसे में जिन दो दोस्तों सरताज और मकसूद ने उनकी मदद की थी उनको भी आईएसआई एजेंट के नाम पर जेल में डाल दिया गया, इसलिए मैं सरकार से मांग करता हूं कि वादे अनुसार मेरा पुर्नवास किया जाए।
गिरफ्तारी से पीड़ित सीतापुर के सैय्यद मुबारक हुसैन ने अपना किस्सा बताया। वह बरेली में फेरी लगाकर शाल बेचता था, सिर्फ गोरे रंग और कद-काठी से कश्मीरी से दिखने के कारण उसको आतंकवाद के झूंठे मामले में चार साल जेल में बिताने पड़े। उसने बयान किया कि जब उसकी मां उससे जेल में मिलने जाती थी तो पुलिस उससे कहती थी कि कश्मीर का प्रमाण पत्र लाओ, पुलिस को यकीन नहीं हुआ कि वो सीतापुर के ही हैं। एक और मुबारक भी काफी डरे-सहमे महसूस करते हैं, क्योंकि उनका रंग भी मुबारक की तरह ही गोरा है। उनका कहना है कि वो 15 अगस्त के आस-पास घर से बाहर नहीं निकलते, क्योंकि उसी दरम्यान उनकी गिरफ्तारी हुई थी। रिहाई मंच के प्रभारी मसीहुद्दीन संजरी बाटला हाउस मुठभेड़ में मारे गए साजिद और आतिफ के गांव के रहने वाले हैं। उनका कहना है कि बाटला हाउस मुठभेड़ कांड के बाद से आजमगढ़ के 9 युवक गायब हैं और हमारा मानना है कि वे खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों के पास हैं, जिनको जरुरतों के मुताबिक समय-समय पर गिरफ्तार करने का दावा किया जाता है।
मसीहुद्दीन संजरी का कहना है कि इंडियन मुजाहिदीन के नाम पर कहा गया कि हाईटेक मुस्लिम युवक इसे संचालित कर रहे हैं, बस इसी नाम पर उनके गांव और आजमगढ़ समेत कर्नाटक के भटकल, केरल के कन्नूर, बिहार के दरभंगा जैसे क्षेत्रों से मुसलमान युवकों की भारी पैमाने पर गिरफ्तारियां हुईं और अब उन लड़कों को आईएसआईएस से जुड़ा बता दिया गया है। उन्होंने कहा कि सरकारी खुफिया एजेंसियां किसी साजिद को कभी अफगानिस्तान, सीरिया तो कभी इराक में मारे जाने का दावा करती हैं तो कभी डॉ शहनवाज, अबू राशिद, खालिद, आरिज, मिर्जा शादाब बेग को आईएसआईएस से जुड़ा बताती हैं। उन्होंने कहा कि आतंकवाद के नाम पर जो खेल खेला जा रहा है, उसने मुस्लिम समुदाय को मानसिक रुप से काफी प्रताड़ना मिल रही है। उन्होंने कहा कि सोचें, जब ऐसी झूंठी खबरें इन लड़कों की मां-बहनें सुनती हैं तो उन पर क्या गुजरती होगी? इसका असर यह है कि छोटा साजिद के पिता, अबू राशिद के माता-पिता, आरिज के पिता, आरिफ बदर के पिता इस घुटन को बर्दाश्त नहीं कर सके और अब वे इस दुनिया में नहीं हैं।
उन्होंने पूछा कि आतंकवादी षडयंत्रों में लोग बेगुनाह कैसे छूट रहे हैं? असली गुनाहगारों को आईबी और सुरक्षा एजेंसियां बचाती हैं, जून 2007 में हूजी के नाम पर गिरफ्तार लोगों की रिहाई इसका एक बड़ा उदाहरण है। अहमदाबाद और लखनऊ धमाकों के आरोपी संजरपुर निवासी आरिफ के परिजन और रिहाई मंच के नेता तारिक शफीक ने कहा कि जब कचहरी धमाकों के बाद हूजी के नाम पर तारिक, खालिद, सज्जादुर्रहमान, अख्तर वानी को गिरफ्तार कर चार्जशीट दाखिल कर दी गई थी तो फिर 19 सितंबर के बाटला हाउस के बाद इंडियन मुजाहिदीन में लखनऊ कोर्ट ब्लास्ट में आरिफ, गोरखपुर में सलमान, सैफ, मिर्जा शादाब बेग का नाम कहां से आ गया? यहां तो पुलिस इस पूरी कार्रवाई में अपने ही दावे के खिलाफ खड़ी हो गई है। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ इसलिए किया जा रहा है कि 20-22 साल के लड़कों को अधिक से अधिक केसों में फंसाकर दशकों तक जेलों में रखकर उनके जीवन के कीमती साल छीन लिए जाएं और उनके परिवार और समुदाय को सवालों के घेरे में रख दिया जाए, इसीलिए एक-एक पर अहमदाबाद, दिल्ली, जयपुर और देश के तमाम धमाकों का आरोप लगाया गया है।
आजमगढ़ के विनोद यादव ने कहा कि बाटला हाउस मुठभेड़ पर सवाल उठाने के कारण उन्हें लखनऊ में अक्टूबर 2008 में यूपी एसटीएफ ने चारबाग रेलवे स्टेशन के पास से उठाया था, एक हफ्ते की गैर कानूनी हिरासत में उनसे आतंकवाद के नाम पर गिरफ्तार बेगुनाहों की लड़ाई लड़ने वालों के बारे में पूछताछ की गई, उनका उत्पीड़न किया गया। रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव ने कहा कि सिमी के नाम पर गिरफ्तारियों का सिलसिला मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में भी जारी रहा। मुलायम सिंह यादव के समय में हुजी के नाम पर इलाहाबाद से वलीउल्लाह समेत 12 से अधिक, तो मायावती की सरकार में आजमगढ़ के तारिक-खालिद समेत 43 से अधिक गिरफ्तारियां की गईं, जबकि अखिलेश सरकार में मौलाना खालिद की हिरासत में हत्या से लेकर 16 युवकों की गिरफ्तारियां हुई हैं। उन्होंने बताया कि 16 दिसंबर को संभल से आसिफ, जफर मसूद को अलकायदा के नाम पर और उसी दिन लखनऊ से अलीम और कुशीनगर से रिजवान को आईएसआईएस के नाम पर उठा लिया गया। उन्होंने कहा कि सिमी, हूजी के नाम पर जो भी गिरफ्तारियां हुईं उनमें से अधिकतर लोग अदालतों से रिहा हुए हैं। उनका कहना है कि आईएम केवल आईबी का कागजी संगठन है, अलकायदा और आईएसआईएस के नाम पर गिरफ्तारियों का सिलसिला मुस्लिम समाज के युवकों को भयभीत कर रहा है, इसके खिलाफ मजबूत लड़ाई लड़ी जाएगी।
रामपुर सीआरपीएफ कैंप पर हमले के आरोप में गिरफ्तार प्रतापगढ़ के कौसर फारूकी के भाई अनवर फारूकी की बातें जनसुनवाई में रखी गईं और इस घटना पर अनेक सवाल उठाए गए, जिसमें हर स्तर पर मायावती सरकार को कठघरे में खड़ा किया गया। इस घटना पर तत्कालीन केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार की नूरा कुश्ती में उनके भाई और जंग बहादुर, शरीफ, गुलाब एवं अन्य 8 साल से जेल में हैं। हाई कोर्ट ने भी कहा है कि मामले की तेज सुनवाई की जाए पर उसका भी कोई असर नहीं हो रहा है। अहमदबाद बम धमाकों के आरोपी आजमगढ़ के हबीब फलाही के भाई मोहम्मद आमिर ने कहा कि 26 जुलाई 2008 में अहमदाबाद और सूरत में धमाकों में थोक के हिसाब से 90 से अधिक आरोपी बनाए गए हैं, जिसमें 2600 से अधिक गवाह हैं, जिससे साफ होता है कि यह मुकद्मे सालों-साल चलेंगे और घर से खींच कर लाए गए 20-22 साल के ये लड़के जेल में बूढ़े हो जाएंगे। उसने बताया कि वह 2012 के चुनाव प्रचार के दौरान अखिलेश यादव से भी मिला था, उन्होंने मदद का वादा भी किया था, मगर यह और हुआ कि अहमदाबाद की जेल में बंद आजमगढ़ के इन लड़कों पर जेल में सुरंग खोदकर भागने का आरोप भी लगा दिया गया है।
जनसुनवाई कार्यक्रम को आजमगढ़ से आए डॉ तलत फिरोज, इनायतउल्लाह खान, रिहाई मंच लखनऊ महासचिव शकील कुरैशी, जमीर अहमद खान ने संबोधित किया। कार्यक्रम का आधार वक्तव्य रिहाई मंच के प्रवक्ता अनिल यादव ने रखा। डॉ अली अहमद कासमी, अमित अंबेडकर, लक्ष्मण प्रसाद, अजय सिंह, राबिन वर्मा, अतहर हुसैन, शम्स तबरेज़, रफत फातिमा, कल्पना पाण्डेय, प्रतीक सरकार, शशांक लाल, जैद अहमद फारुकी, अजय शर्मा, बृज बिहारी, भूरेलाल, यावर अब्बास, सृजन योगी आदियोग, वीरेंद्र गुप्ता, आली से अंचल, जीनत जहां, अजीजुल हसन, मसूद, होमेंद्र, एनए फारुकी, नूर आलम, जियाउद्दीन, सईद अहमद आदि जनसुनवाई कार्यक्रम में शामिल हुए।

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