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नई दिल्ली। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने योजना आयोग के उपाध्यक्ष डॉ मोंटेक सिंह अहलूवालिया की अध्यक्षता में आयोजित 11वीं पंचवर्षीय योजना के अंतिम वर्ष में उत्तराखंड राज्य के लिए 666 करोड़ रुपए की अतिरिक्त सहायता समेत 78 सौ करोड़ रुपए की 2011-12 की वार्षिक योजना को अनुमोदित कराने में सफलता प्राप्त की। यह राशि विगत वर्ष की योजना से 1000 करोड़ रुपए अधिक है। योजना आयोग के उपाध्यक्ष ने उत्तराखंड में निरंतर प्रगति, गुणवत्ता और विकास की गति बनाये रखने की सराहना करते हुए यकीन दिलाया कि केंद्र सरकार के स्तर पर राज्य में बेहतर रेल और हवाई सेवाओं की सुविधाओं के विस्तार की मांग को मंजूर कराने में वह पूरी मदद देंगे। उन्होंने सलाह दी कि उत्तराखंड इन सेवाओं के लिए अपना प्रस्ताव शीघ्रता से आयोग को उपलब्ध कराए। डॉ अहलुवालिया ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में पूरे राष्ट्र में उत्तराखंड के बेहतर कार्य की भी सराहना की।
इससे पहले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने देश के हिमालयी राज्यों की विषम भौगोलिक परिस्थितियों और समस्याओं का विस्तार से उल्लेख करते हुए कहा कि पुराने हिमालयी राज्यों और उत्तर-पूर्व के अशांत राज्यों के मुकाबले उत्तराखंड की आवश्यकताओं को भारत सरकार नजरअंदाज कर रही है जबकि पड़ोसी देश चीन भारतीय सीमा तक रेलवे का विकास कर रहा है। उन्होंने चिंता के साथ कहा कि वर्तमान में बीजिंग से ल्हासा तक रेल मार्ग सृजित हो चुका है और उत्तराखंड की सीमा के सन्निकट तकलाकोट तक इसका विस्तार किया जा रहा है। संघर्ष या युद्ध की स्थिति में सीमा तक सेना एवं सैन्य सामग्री की पहुंच शीघ्रतापूर्वक सुनिश्चित हो सके, इसके लिए ऋषिकेश-कर्णप्रयाग, टनकपुर-बागेश्वर, बागेश्वर-कर्णप्रयाग रेलवे परिपथ के निर्माण कार्य शीघ्र किये जाने की आवश्यकता है।
रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि उत्तराखंड राज्य के विकास एवं राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से शिमला-त्यूणी-लोहाघाट हिमालयन हाइवे का निर्माण भी कराया जाना आवश्यक है। इस प्रकार की संस्तुति हिमालयी राज्यों एवं क्षेत्रों की समस्याओं पर योजना आयोग द्वारा गठित टास्क फोर्स ने भी अपनी रिपोर्ट में की है। उत्तराखंड की चीन एवं नेपाल से क्रमशः 350 किलोमीटर एवं 275 किलोमीटर लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमाएं खुली होने का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री ने राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों के समेकित विकास के लिये बार्डर एरिया डेवलपमेंट प्लान के अंतर्गत राज्य के सभी 26 सीमांत विकासखंडों के विकास के लिए और उन्हें सड़क, विद्युत, दूरसंचार सुविधाओं से जिला मुख्यालय से जोड़ने के लिए यह योजना लागू करने की मांग की।
निशंक ने अनुरोध किया कि उत्तराखंड में सभी केंद्र पोषित योजनाओं का वित्त पोषण पूर्वोत्तर सीमांत के राज्यों की भांति ही 90:10 के अनुपात में किया जाना चाहिए। उग्र और अशांत क्षेत्रों को शांत क्षेत्रों के मुकाबले अधिक महत्व दिये जाने के दोहरे मापदंड से गलत संकेत जाते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड को 2001-02 में विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा दिया गया था, परंतु वित्त पोषण के मामले में इस राज्य की भारी उपेक्षा की जाती है, जिसके परिमार्जन के लिए 2001-02 से 2010-11 तक की अवधि की अवशेष धनराशि 2400 करोड़ रुपए एकमुश्त विशेष पैकेज के रूप में स्वीकृत की जाए। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड भी पूर्वोत्तर राज्यों की भांति विशेष श्रेणी का राज्य है, अतः राज्य में नैनी-सैनी (पिथौरागढ़) चिन्यालीसौड़ (उत्तरकाशी) और गौचर (चमोली), हवाई-अड्डों का विकास भी इसी फार्मूले पर शत-प्रतिशत अवस्थापना अनुदान के माध्यम से किया जाए क्योंकि ये तीनों स्थल संवेदनशील अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर भी स्थित हैं, और इनका सामरिक महत्व भी है।
निशंक ने कहा कि संविधान की सातवीं अनुसूची में रेलवे केंद्रीय सूची का विषय है, इसके बावजूद उत्तराखंड सरकार पर रेलवे परियोजनाओं की लागत में 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी वहन करने पर जोर डाला जा रहा है इसलिए प्रस्तावित मुजफ्फरनगर-रूड़की रेलमार्ग की निर्माण लागत भी शत्-प्रतिशत केंद्र सरकार ही वहन करे। उत्तराखंड में प्राकृतिक विभीषिका को दृष्टिगत रखते हुए क्षतिग्रस्त योजनाओं की शीघ्र पुनर्स्थापना के लिए विशेष सहायता पैकेज दिया जाए।
मुख्यमंत्री ने जोर देकर कहा कि योजना आयोग की पर्यावरण रिपोर्ट में उत्तराखंड को पर्यावरणीय सेवाओं के संरक्षण के लिए देश के सभी राज्यों में प्रथम स्थान पर रखा गया है जिससे इस राज्य के प्रयासों की पुष्टि होती है। इसके विपरीत वन संरक्षण अधिनियम एवं पर्यावरण संरक्षण से संबंधित विभिन्न नियमों का बोझ केवल इसी राज्य की जनता पर अनावश्यक रुप से डाला जा रहा है जिससे विकास कार्य अवरूद्ध हो रहे हैं। उत्तराखंड को प्रदत्त विशेष औद्योगिक पैकेज की अवधि 2013 से घटाकर मार्च 2010 में ही समाप्त करने का उल्लेख भी मुख्यमंत्री ने किया और कहा कि पिछड़ेपन के आधार पर गठित राज्य उत्तराखंड अर्थात समान से असमान की तुलना करना कदापि उचित नहीं है।