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सीमा पर सुरक्षा और विश्वास के झंडे

सशस्त्र सीमा बल की 48वीं वर्षगाँठ

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सशस्‍त्र सीमा बल/ssb

लखनऊ। सशस्‍त्र सीमा बल, बीस दिसंबर को देश की सीमाओं पर अपनी 48वीं वर्षगाँठ मना रहा है। सीमा बल के लखनऊ ‌शिविर में महानिदेशक अनिल अग्रवाल ने शुक्रवार को सीमा बल के इतिहास, उपलब्धियों, सीमा और उसके आस-पास बसे गांवों में उसकी सामाजिक भूमिका, चुनौतियों और जिम्मेदारियों को मीडिया से साझा किया। महानिदेशक ने कहाकि सीमा बल का ध्यान नेपाल सीमा पर गंभीर अपराधों, घुसपैठियों, ड्रग्स और नकली नोटों के तस्करों, आम नागरिक को सहज गुमराह करने वाले माओवादियों और नक्सलियों पर है, जिन पर नियंत्रण पाने में उसे भारी सफलता मिल रही है। सीमावर्ती गांवों या सीमावर्ती घने जंगलों में रहने वाले वनवासियों को देश की मुख्यधारा से न भटकने देने की जिम्मेदारी भी सीमा बल उठाता है, इसलिए उनका कहना था कि सीमावर्ती लोगों में कभी भारी अविश्वास और असुरक्षा की भावना थी, जिसे सीमा बल ने ग्राम समितियों के सहयोग से विश्वास में बदलने का बड़ा काम किया है, आज ये लोग भारतीय सीमा बल के प्रति आशांवित हैं और सीमा बल भी इनकी, शिक्षा, बीमारी, दुख, सुख-सुविधाओं में इनके साथ खड़ा रहता है। महानिदेशक ने यह स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं किया कि सीमावर्ती भारतीय गावों में सीमा बल और गांववासियों में गंभीर झड़पें भी होती आई हैं, उनका कहना था कि इसके जो कारण हैं, उन पर गंभीरता से कार्रवाई हुई है।
सशस्‍त्र सीमा बल की बीस दिसंबर को स्‍थापना हुई थी। सीमा बल का मुख्य समारोह तो हर साल दिल्‍ली में होता है, मगर देश के राज्यों में सीमा बल के जवानों का जश्न सत्रह दिसंबर से ही शुरू ‌हो जाता है, जहां वे अपने-अपने शिविर में विभिन्न आयोजन करते हैं और सफलताओं एवं जांबाज़ी के करतब दिखाते हैं। एसएसबी महानिदेशक अनिल अग्रवाल ने सीमा बल की वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में ही मीडिया को एसएसबी के लखनऊ ‌शि‌विर में आमंत्रित किया था, जिसमें उन्होंने सीमा बल की सीमा सुरक्षा, सामाजिक गतिविधियों एवं कार्यक्रमों की जानकारियां दीं। महानिदेशक ने मीडिया को नेपाल सीमा के उन दुर्गम स्‍थानों और गांवों का भ्रमण करने का भी आमंत्रण दिया, जहां कभी माओवादियों और नक्सलियों का उत्पात मचता था और आज वहां एसएसबी ने अपने सामाजिक एवं विकास के कार्यक्रम चलाए हुए हैं, जिनके परिणामस्वरूप उन गावों में राष्ट्रवाद, शिक्षा, रोज़गार और विश्वास का वातावरण विकसित हुआ है। उनकी मूलभूत समस्याओं और आवश्यकताओं का प्राथमिकता पर समाधान किया जाता है।
महानिदेशक का कहना है कि सशस्‍त्र सीमा बल अपनी निगरानी चौकियों पर भी मुस्तैदी से खड़ा है। किसी सशस्‍त्र बल के सामने एक साथ इतनी चुनौतियां कम ही दिखाई देती हैं, जैसी सीमा बल के सामने हैं। प्रमुख चुनौ‌ती यही है कि सीमा पर रहने वाले गांव और वनों के भीतर जीवनयापन करने वाले लोग देश की मुख्यधारा में बने रहें और असामाजिक तत्वों और देश-विरोधी ताकतों को उनसे कोई संरक्षण न मिल पाए। अनिल अग्रवाल ने कहा कि माओवादियों पर पूरा नियंत्रण है, नेपाल में इनकी गतिविधियों से यहां कुछ भी होता है, तो हम उससे निपटने को तैयार हैं, हम वन्य प्राणियों और वनों के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, इसमें वन विभाग का पूरा सहयोग मिलता है, दोनो में सहयोग के फलस्वरूप सीमावर्ती वनों में वन्य प्राणियों की हत्या और वनों के विनाश में काफी कमी आई है, यद्यपि हमारे पास मवेशियों के इलाज के लिए कोई नेटवर्क नहीं है, तब भी हमने वनवासियों के मवेशियों की बीमारियों से रक्षा के लिए उनपर पैतीस लाख रूपए खर्च किए हैं। वनवासियों की खान-पान की वस्तुओं, गेंहू-चावल की खरीद फरोख्त को लेकर एसएसबी जवानों को स्पष्ट निर्देश हैं कि इन मा‌मलों में गांव वालों को कतई परेशान न किया जाए।
महानिदेशक अनिल अग्रवाल ने ‌और विस्तार से बताया कि एसएसबी को पहले विशेष सेवा ब्यूरो के नाम जाना जाता था। इसकी स्थापना 1963 में भारत-चीन युद्ध के उपरांत हुई थी। इसके गठन का उद्देश्य था कि सीमावर्ती लोगों को प्रशिक्षण एवं प्रोत्साहन के जरिए इस तरह संगठित किया जाए ताकि सीमावर्ती नागरिक राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल रहें। एसएसबी ने सीमावर्ती नागरिकों का मनोबल बढ़ाने और उनमें राष्ट्र विरोधी तत्वों के प्रति प्रतिरोध की भावना उत्पन्न करने का सराहनीय काम किया है। एसएसबी ने 15 राज्यों-राजस्थान, गुजरात, जम्मू व कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, आसाम, नागालैंड, अरूणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में सेवा, सुरक्षा और बंधुत्व का जो मूल मंत्र फूंका था, वह आज भी जीवंत है।   
जनवरी 2001 में एसएसबी गृह मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में प्रतिष्ठित किया गया। जून 2001 में इसे भारत-नेपाल सीमा के 1751 किलोमीटर लंबे सीमा क्षेत्र की निगरानी की जिम्मेदारी सौंपी गई। भारत-नेपाल की सीमा, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, आसाम, सिक्किम और अरूणाचल प्रदेश राज्यों से सटी हुई है। मार्च 2004 में एसएसबी को भूटान से लगे 669 किलोमीटर लंबे सीमा क्षेत्र की अतिरिक्त जिम्मदारी सौंपी गई। पंद्रह दिसंबर 2003 से एसएसबी को ‘सशस्त्र सीमा बल’ के नाम से जाना जाने लगा। राष्ट्रपति ने 27 मार्च 2004 को एसएसबी को राष्ट्रपति के ध्वज से सम्मानित किया। बल की सेवा को पहचान देते हुए डाक और टेलीग्राफ विभाग ने 28 मार्च 2007 को इसकी 44वीं वर्षगांठ पर विशेष आवरण जारी किया।
एसएसबी, भारत-नेपाल सीमा के राज्य उत्तराखंड (264) उत्तर प्रदेश (599) बिहार (729) पश्चिम बंगाल (100) और सिक्किम (99) किलोमीटर और भारत-भूटान सीमा के राज्य सिक्किम (32) पश्चिम बंगाल (183) आसाम (267) और अरूणाचल प्रदेश (217) किलोमीटर लंबी सीमा की निगरानी करता है। एसएसबी का सीमांत मुख्यालय लखनऊ में है। सीमांत लखनऊ के अधीन दो सेक्टर मुख्यालय हैं, जो लखीमपुर खीरी और गोरखपुर में हैं। लखीमपुर खीरी, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थ नगर एवं महाराजगंज में एसएसबी की सात वाहिनियां और 126 सीमा चौकियां हैं। सीमाओं पर महिलाओं की जांच के लिए अलग से महिला आरक्षी तैनात हैं। एसएसबी का अपना श्वान दस्ता है, जो कि विस्फोटक और मादक द्रव्यों को पकड़ने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित है।
सीमा की चौकस निगरानी हेतु 3 व्यापार एवं आवागमन मार्गों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं और प्रत्येक मार्ग की सतर्क निगरानी की जा रही है, निकट भविष्य में सभी व्यापार और आवागमन मार्गों पर निगरानी कैमरे लगाए जाने का प्रस्ताव है। भारत-नेपाल सीमा खुली है। इस कारण अवांछित तत्वों को पकड़ पाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। अवैध आप्रवासन के अतिरिक्त निषिद्ध मादक द्रव्यों की तस्करी और नकली नोटों के कारोबार से निपटने के लिए एसएसबी ने प्रभावी कदम उठाए हैं। वर्ष 2009 में एसएसबी ने 818 असामाजिक तत्वों को गिरफ्तार कर 9.07 करोड़ रूपये का सामान बरामद किया। वर्ष 2010 में 1169 असामाजिक तत्वों को गिरफ्तार कर 10.87 करोड़ रूपये का सामान जब्त किया। वर्ष 2011 में 4.26 करोड़ रूपये का सामान जब्त कर 382 लोगों को बंदी बनाया गया।
एसएसबी महानिदेशक का कहना है कि सतर्कता रणनीति को ध्यान में रखकर सीमा बल ने अपनी प्राथमिकताओं पर पुनर्विचार किया है। भारत-नेपाल की खुली सीमा के दृष्टिगत दैनिक उपयोग की वस्तुओं की बरामदगी में ऊर्जा नष्ट न करते हुए देश की आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित करने वाले अपराधों आतंकवादियों का प्रवेश, मादक द्रव्यों व हथियारों की तस्करी, जाली मुद्रा का प्रचलन रोकने को ही प्राथमिकता दी जा रही है। अपने सीमाई क्षेत्र की जनता के साथ सौहार्द और मित्रतापूर्ण व्यवहार को और अधिक प्रगाढ़ बनाने के लिए प्रत्येक वाहिनी एवं सीमा चौकी स्तर पर स्थानीय ग्रामीणों के साथ चैपालें, बैठकें आयोजित कर उनकी समस्याओं का निराकरण कर उन्हें जिला और राज्य स्तर तक निदान हेतु भेजा जा रहा है। एसएसबी इस वर्ष 854 चौपालें आयोजित कर चुका है, इन चौपालों से एसएसबी और ग्रामीणों के बीच पारस्परिक सौहार्द उत्पन्न हुआ है और सीमा सुरक्षा प्रबंधन में सहायता मिली है।

  • वाहन चोरी पर नियंत्रण

चुराए गए वाहनों पर निगरानी रखने के लिए भारत-नेपाल सीमा पर एसएसबी ने एक कार्यप्रणाली विकसित की है। एसएसबी लखनऊ सीमांत का कंट्रोल रूम 24 घंटे, 7 दिन कार्य करता है। वाहन चोरी से पीड़ित नागरिक नियंत्रण कक्ष के दूरभाष नंबर 0522-2721881 या मोबाइल नंबर 9415413340 पर संपर्क कर सकते हैं। एसएसबी का प्रयास है कि चोरी गया वाहन किसी भी स्थिति में सीमा पार करके नेपाल न जा सके। इसी प्रकार नक्सली गतिविधियों पर रोकथाम की गई है।  सन् 2007 में एसएसबी ने बिछिया बाजार और उसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में असामाजिक तत्वों के जनता को भ्रमित करने वाले नारों पर ध्यान दिया जैसे-मत देखो सरकार की ओर, हर कुर्सी पर बैठा चोर। जय आजादी। ये सरकार न वो सरकार, बिछिया में जनता सरकार...। इस क्षेत्र में गहराई तक फैला रहे नक्सलवाद के स्वरूप को पहचान लिया गया और यह महसूस किया गया कि नक्सलवादी गरीब और भूमिहीन ग्रामीणों के बीच अपना प्रभाव स्थापित करने में सफल हो चुके हैं। स्थानीय मुद्दों को ज्वलंत बनाकर अशिक्षित गरीब मजदूरों का समर्थन प्राप्त करने का प्रयास किया जा रहा था। गहनता से जांच करने पर यह तथ्य प्रकाश में आया कि क्षेत्र के कई वनग्रामों के नागरिकों की कई मूलभूत समस्याएं थीं। वनग्रामों का राजस्व ग्राम न होना, नागरिकता प्रमाण-पत्र प्राप्त न होना, राशनकार्ड, रोजगार के अवसर और सभी सरकारी विकास योजनाओं के अभाव से यह पूरा क्षेत्र प्रभावित था। पेयजल, प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ्य एवं बिजली की समस्या और भी गंभीर हो गई थी।
इन क्षेत्रों की समस्याओं को दूर करने के लिए एसएसबी ने एक विशिष्ट योजना तैयार की। इस योजना के अंतर्गत इन ग्रामीणों के साथ निकट सामंजस्य स्थापित करना, जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करना और स्थानीय प्रशासन से उनकी रोजमर्रा की समस्याओं का समाधान कराना महत्वपूर्ण बिंदु थे। पिछले तीन वर्ष से अधिक के अंतराल में स्थानीय प्रशासन एवं वन विभाग के सहयोग से किए प्रयासों के फलस्वरूप एसएसबी को इन ग्रामीणों को राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल करने में सफलता प्राप्त हुई है। एसएसबी ने 29 सीमा चौकियों को भौगोलिक परिस्थितियों की चुनौती से निपटते हुए वास्तविक सीमा के निकट स्थापित किया है। वर्ष 2011 में उत्तर प्रदेश से 901 जवानों को एसएसबी में रोजगार दिया गया, जिनमें 46 युवक नक्सल प्रभावित क्षेत्रों से और 617 युवक व युवतियां उत्तर प्रदेश के सीमांत जनपदों से हैं। वर्ष 2012 के दौरान 569 भर्तियां उत्तर प्रदेश से की जानी हैं, जिनमें से 29 नक्सल प्रभावित क्षेत्र और 390 सीमांत जनपदों से की जानी है।
सामाजिक चेतना अभियान के अंतर्गत एक विशिष्ट क्षेत्र को चयनित कर कन्याओं का महत्व, भ्रूण हत्या के विरूद्ध जागरूकता पैदा करना, पारिस्थितिक संतुलन, अशिक्षा के दोष, जाली मुद्रा की जांच, एड्स जागरूकता, नशा उन्मूलन, तम्बाकू सेवन के दुष्प्रभाव, वाद-विवाद प्रतियोगिता, सांस्कृतिक कार्यक्रम, फोटो प्रदर्शनी, निबंध प्रतियोगिता, चलचित्र आदि के आयोजन जन जागृति लाने में सहायक सिद्ध हुए हैं। इस वर्ष 139 गांवों में 13 सामाजिक चेतना अभियानों का आयोजन किया गया। इन अभियानों के अंतर्गत ही स्थानीय मुद्दे और सीमावर्ती लोगों की समस्याओं को सुना गया, जिनका यथासंभव निराकरण भी किया गया है। सामुदायिक कल्याण कार्यक्रम के अंतर्गत निःशुल्क चिकित्सा एवं पशु चिकित्सा कैंप लगाए गए। एसएसबी  ने वर्ष 2010-11 के दौरान 35 लाख रूपए निःशुल्क चिकित्सा, पशु चिकित्सा, शैक्षणिक भ्रमण, सौर ऊर्जा उपकरणों की स्थापना और इंडिया मार्क-2 हैंडपंप में खर्च किये हैं। इसी अवधि में 7.83 लाख रूपये की दवायें ग्रामीणों को निःशुल्क वितरित की गयी हैं। सौर ऊर्जा स्ट्रीट की स्थापना की गई। इस पर वर्तमान वित्तीय वर्ष में 20 लाख रूपये खर्च हुए, सीमा के दूरस्थ गांवों में 140 सौर ऊर्जा स्ट्रीट लाईट लगाने का प्रस्ताव है। चयनित सीमांत गांवों के नागरिकों को शैक्षणिक भ्रमण पर भेजा गया, जिससे उन्हें राष्ट्र के अन्य शहरी क्षेत्रों एवं राष्ट्रीय धरोहरों से परिचय कराया जा सके। गत पांच वर्षो के दौरान सीमांत मुख्यालय ने 9 शैक्षणिक भ्रमणों का आयोजन किया जिसके अंतर्गत सीमावर्ती जनपदों-महराजगंज, सिद्धार्थनगर, लखीमपुरखीरी, बलरामपुर बहराइच से 168 लड़कों एवं 183 लड़कियों को भ्रमण कराया गया। इस भ्रमण के दौरान उन्होंने आगरा, जयपुर, बीकानेर, अजमेर, दिल्ली, लखनऊ, मथुरा और वृन्दावन की यात्राएं कीं। इसी के साथ सीमांत मुख्यालय, लखनऊ ने  20 सीमावर्ती किसानों को बायोटेक पार्क लखनऊ में आधुनिक कृषि तकनीकी में 3 दिनों का प्रशिक्षण दिलाया गया।

  • आधारभूत ढांचे का विकास

सन् 2002 में एसएसबी की तैनाती के बाद सीमांत मुख्यालय लखनऊ ने पलिया, खीरी, नानपारा, भिंगा, श्रावस्ती और बलरामपुर में 110 चौकियों के लिए जमीन सुलभ कराई। आधारभूत ढांचे के लिए 221 करोड़ रूपये की स्वीकृति मिली है और अनेक जगहों पर निर्माण कार्य प्रगति पर है। अगले वित्तीय वर्ष में 127 करोड़ रूपये का प्रस्ताव आधारभूत ढांचे के निर्माण के लिए विचाराधीन है। करीब 29 करोड़ रूपये की लागत से गहन वन क्षेत्र में 66 सीमा चौकियों का निर्माण हो रहा है, साथ ही अगले वर्ष तक 25 मैदानी क्षेत्र की चौकियों को करीब 93 करोड़ की लागत से बनाया जाना प्रस्तावित है। एसएसबी जवान जो सीमांत क्षेत्र में तैनात हैं और अपने बच्चों व परिवार को उचित शिक्षा एवं चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने में असमर्थ हैं, उनके लिए पृथक परिवार आवास परिसर के निर्माण के लिए गृह मंत्रालय से 70 करोड़ 15 लाख रूपये की स्वीकृति मिल चुकी है और जिसके अंतर्गत 415 विभिन्न श्रेणियों के आवास गोमतीनगर विस्तार योजना में बनाए जाएंगे।

  • पेयजल की व्यवस्था

चौकियों के सीमांत क्षेत्र में स्थापित होने के बाद पेयजल का संकट आ खड़ा हुआ था जिससे चौकियों के कार्य करने में बाधा उत्पन्न हुई। इस समस्या से निपटने के लिए एसएसबी ने मध्य प्रदेश से ओडेक्स मशीने मंगाईं। सड़क मार्ग सुलभ न होने की वजह से मशीनों को मुश्किल से वन क्षेत्रों तक पहुँचाया गया। लंबी खुदाई के बाद पानी उपलब्ध हुआ। पेयजल की उपलब्धता से ठीक अंतरराष्ट्रीय सीमा पर चौकियों की स्थापना हो सकी। सभी चौकियों में उचित गुणवत्ता के शुद्ध पेयजल प्रदान किए जाने हेतु प्रयास किए गए। इस संबंध में तकनीकी विशेषज्ञों की सलाह ली गई और 126 चौकियों से जल परीक्षण हेतु नमूने प्राप्त किए गए। पानी की जांच परख के बाद विशेष किस्म के जल शोधक उपकरण खरीदे गए। फिर जवानों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध हुआ। यह चुनौतीपूर्ण कार्य एसएसबी ने अपने बलबूते पर सम्पन्न किया। भारत-नेपाल सीमा पर तैनाती के बाद एसएसबी ने अंतरराष्ट्रीय सीमा पर प्रभावी सीमा प्रबंधन के लिए दूरस्थ सीमावर्ती गांव तक सड़क निर्माण की आवश्यकता को समझते हुए करीब 639.70 किलोमीटर लम्बाई की सड़क परियोजना को सरकार से स्वीकृति कराया है। इस परियोजना पर 1621 करोड़ रूपये की लागत आयेगी।
इंवेंट्री मैनेजमेंट सिस्टम-लखनऊ सीमांत मुख्यालय ने वाहिनी के भण्डारण संबंधी क्रियाकलापों व प्रविष्टियों को इस सॉफ्टवेयर के माध्यम से सम्पूर्ण लेखाजोखा एवं अन्य कार्यालयी आंकड़ों को सुरक्षित व संशोधित किया है। साफ्टवेयर के माध्यम से किसी भी जवान को निर्गमित वस्तुओं का लेखा जोखा सुगमता से उपलब्ध हो जाता है। एसएसबी की सभी वाहिनियों में गत 3 वर्षों से यह साफ्टवेयर व्यवहार में लाया जा रहा है। केंद्रीय पुलिस कैंटीन-इसकी स्थापना 7 मई 2007 को हुई। एसएसबी सीमांत मुख्यालय की मास्टर कैंटीन अपनी सभी 13 सहायक कैंटीनों को सामान की आपूर्ति करती है। उत्तर प्रदेश में एसएसबी पहला केंद्रीय पुलिस बल है, जिसने उत्तर प्रदेश पुलिस को सहायक कैंटीनों को स्थापित करने का प्रशिक्षण उपलब्ध कराया है। सीमांत मुख्यालय के कर्मचारियों के लिए भारतीय स्टेट बैंक के सहयोग से एक विशेष पैकेज की व्यवस्था की गई है, जिसके अंतर्गत कर्मचारियों का वेतन उनके खाते में जमा हो जाता है। उन्हें तुरंत ऋण, दो महीने का अग्रिम वेतन एवं दो एटीएम कार्ड उपलब्ध कराए जाते हैं। वर्तमान में कारपोरेट सेलरी पैकेज का रूपांतरण पैरामिलिट्री सेलरी पैकेज के रूप में कर दिया गया है।

  • पदक

एसएसबी के अधिकारियों व कर्मचारियों को विशिष्ट व समर्पित सेवा के लिए 2 पदमश्री, 1 कीर्ति चक्र, वीरता के लिए 2 राष्ट्रपति विशेष सेवा पुलिस पदक, अति विशिष्ट सेवा के लिए 40 राष्ट्रपति पुलिस पदक, विशिष्ट सेवा के लिए 252 पुलिस पदक, 19 विशेष सेवा पदक, 12 प्रधानमंत्री जीवन रक्षक पदक, 2 असाधारण सुरक्षा सेवा प्रमाण पत्र (मरणोपरांत), 14 सर्वोत्तम सेवा प्रमाण और 24 उत्तम सेवा प्रमाण पत्र मिले हैं। सशस्त्र सीमा बल के 48वें स्थापना दिवस के अवसर पर महानिदेशक ने विशिष्ट सेवा के लिए सीमांत मुख्यालय लखनऊ के 5 अधिकारियों, कर्मचारियों को महानिदेशक डिस्क व प्रशस्ति पत्र प्रदान किए हैं जिनके नाम हैं- अश्विन कुमार सहायक सेनानायक सातवीं वाहिनी बहराइच, सनतोंबा सिंह, उपनिरीक्षक (सामान्य), सातवीं वाहिनी बहराइच, कीर्ति मेपार, सहायक उपनिरीक्षक(मंत्रालयिक) तृतीय वाहिनी खीरी, जगदीश सिंह मुख्य आरक्षी (सामान्य) तृतीय वाहिनी खीरी और उमेश कुमार आरक्षी (सामान्य) चतुर्थ आरक्षित वाहिनी लखनऊ।

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