विशेष संवाददाता
मास्को। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के उत्तराधिकारी दमित्री मेदवेदेव रूस के विघटन के बाद के तीसरे नए और रूस के पहले निर्वाचित राष्ट्रपति घोषित हो गए हैं। वह मई में पदभार संभालेंगे। उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में सत्तर प्रतिशत मत पाकर अपने प्रतिद्वंद्वी और रूस के साम्यवादी नेता गेन्नादी युगानोव पर जबरदस्त जीत हासिल की है। मेदवेदेव ने पुतिन की रिकार्ड मतों से जीत का भी रिकार्ड तोड़ा है। यूं तो मेदवेदेव को ब्लादिमीर पुतिन का ही खास आदमी माना जाता है और वह पुतिन की तरह रूस को लोकतांत्रिक और आर्थिक उदारवाद की तरफ ले जाने के पक्षधर भी हैं, लेकिन पुतिन रूस के नए प्रधानमंत्री बनने का भी ख्वाब देख रहे हैं। अब उसमें नए रूसी राष्ट्रपति दमित्री मेदवेदेव उनका कितना साथ देंगे, कहा नहीं जा सकता।
आज की तारीख में मेदवेदेव पर पुतिन का भारी प्रभाव है। पुतिन वहां की राजनीति में अभी भी ताकतवर बने रहना चाहते हैं, जिसके लिए वह प्रधानमंत्री का पद भी स्वीकार कर सकते हैं। ऐसा करके वह यह कोशिश भी कर सकते हैं कि रूस के प्रधानमंत्री को सबसे ज्यादा अधिकार संपन्न कर दिया जाए ताकि घूम फिर कर सत्ता पुतिन के ही पास लौट आए। यह दोनों ही राजनेता काफी तेज माने जाते हैं। अब समय बताएगा कि रूस के नए राष्ट्रपति दमित्री मेदवेदेव क्या इस योजना को अंजाम देने के लिए तैयार होंगे या नहीं। उनकी भारी जीत से लगता है कि रूसी जनता को मेदवेदेव से उम्मीदें बहुत हैं। वैसे भी रूस के आर्थिक सुधारों में मेदवेदेव को पुतिन का दाहिना हाथ माना जाता रहा है।
सेंटपीटर्स वर्ग में 14 सितंबर 1965 को जन्में मेदवेदेव को रूस की अर्थव्यवस्था में पूंजीपतियों की भूमिका को महत्वपूर्ण बनाने और उन्हें प्रेरित करने के लिए जाना जाता है। उनका देश के अरबपतियों पर काफी अच्छा प्रभाव माना जाता है, जिसका मौजूदा राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने रूस की आर्थिक प्रगति के लिए काफी लाभ उठाया है। इसी बात ने मेदवेदेव को रूस के राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचाया है। रूस के लोगों में उनके राष्ट्रपति चुने जाने से बहुत उम्मीदें जाग गई हैं। और उन्हें लग रहा है कि मेदवेदेव रूस के अब तक के सबसे सफल राष्ट्रपति कहलाएंगे।
मेदवेदेव एक अत्यंत साधारण और मजदूर परिवार में जन्में हैं। उनके पूर्वज रूसी टोपियां बनाने का भी काम करते थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई के लिए सड़कों की सफाई तक का काम किया है। पढ़ाई में वह बचपन से ही बहुत तेज माने जाते थे। उनकी शैक्षणिक योग्यता की जहां तक बात है तो मेदवेदेव ने लेनिनग्राद युनिवर्सिटी से कानून की शिक्षा प्राप्त की है और वह प्राइवेट लॉ में पीएचडी हैं। इसी विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में उन्होंने पढ़ाया है और सिविल लॉ पर किताबें भी लिखी हैं। मेदवेदेव ने पुतिन सरकार में एक गैस कंपनी पैरोम के अध्यक्ष पद पर काम किया है। उन्हें क्रिमलेन के चीफ आफ स्टाफ के रूप में भी कार्य करने का अवसर मिला है। अत्यंत विश्वासपात्र होने के कारण पुतिन ने उन्हें रूस के उप प्रधानमंत्री पद पर भी नियुक्त किया।
मेदवेदेव ने अपनी प्रेमिका स्वेतलाना से शादी की थी। वह बेहद फैशन पसंद मानी जाती हैं। आज उनका एक पुत्र लिलया है। मेदवेदेव जहां फुटबाल के खिलाड़ी और एक अच्छे तैराक हैं, वहीं उनको संगीत भी बहुत पसंद है। उन्हें हार्ड रॉक बैंड ज्यादा पसंद है। उनके पास डीप पर्पल बैंड के सारे विनायल रिकार्ड हैं। पहनावे में जींस उनकी पसंदीदा पैंट है। मेदवेदेव की लेखकों में भी काफी दिलचस्पी है। वे सन् 2000 के राष्ट्रपति चुनाव में पुतिन के चुनाव प्रचार के प्रभारी रहे हैं, जिससे पता चलता है कि वह पुतिन के कितने करीबी हैं। इस चुनाव में वह पुतिन के प्रत्याशी के रूप में प्रसिद्ध हुए हैं।
रूस दुनिया में भारत का सबसे अच्छा दोस्त रहा है। ‘मेरा जूता है जापानी और पतलून इंग्लिश्तानी, सर पर लाल टोपी रूसी फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’ उस समय के गीत की लाइन है, जब भारत के प्रधानमंत्री, खाना नई दिल्ली में खाते थे और पानी मास्को में जाकर पीते थे। भारत के आर्थिक विदेशी और कूटनीतिक मामलों में रूस के सहयोग को कभी भुलाया नहीं जा सकता। सोवियत संघ के जो भी राष्ट्रपति हुए हैं, उन्होंने भारत के लिए हमेशा एक सच्चे दोस्त की तरह से काम किया है। यही कारण है कि अमरीका ने हमेशा भारत से दूरी बनाए रखी और भारतीय उपमहाद्वीप में उसका झुकाव भारत की बजाए पाकिस्तान की तरफ ज्यादा रहा।
सोवियत संघ के विघटन के बाद अब भले ही भारत का रूस से बहुत कम वास्ता बचा है और उसका झुकाव अमरीका की तरफ हुआ है, लेकिन जहां तक रूस का सवाल है तो वह भारत के लिए महत्वपूर्ण था और महत्वपूर्ण रहेगा। यही एक शक्ति है, जिसके कारण भारतीय उपमहाद्वीप में शांति कायम रहती आई है। भारत सरकार भी मानती है कि रूस की उपयोगिता कम नहीं आंकी जा सकती, लेकिन व्यवहार में परिवर्तन जरूर आया है। रूस के नए राष्ट्रपति मेदवेदेव की भारत नीति भी पूर्व के रूसी राष्ट्रपतियों की तरह ही रहने की उम्मीद है, क्योंकि मेदवेदेव का लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भारी यकीन है, और वैसे भी वह मानवता के अत्यंत करीब हैं। देखना होगा कि रूस और भारत की दोस्ती में और क्या-क्या चीजें परवान चढ़ती हैं।