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Saturday 28 December 2013 10:21:18 AM
नई दिल्ली। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के हीरक जयंती समारोह में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि आयोग अब एक राष्ट्रीय चिंतन स्रोत के रूप में भूमिका निभाए और उन मुद्दों के बारे में एक पेशेवराना और उद्देश्यपूर्ण संवाद स्थापित करे, जिनका हमारे देश में उच्चतर शिक्षा प्रणाली के कुशल प्रबंधन से नजदीक का वास्ता है। उन्होंने कहा कि हाल में शुरु किये गये राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान में राज्यों के उच्चतर शिक्षा संस्थानों के महत्व को मान्यता दी गई है, जो देश में उच्चतर शिक्षा प्राप्त करने वाले अधिकतर छात्रों को लाभ पहुंचा रहे हैं, इस अभियान का उद्देश्य 13वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक 278 नये विश्वविद्यालयों और 388 नये कालेजों की स्थापना करना और 266 कालेजों को मॉडल डिग्री कालेजों में परिवर्तित करना है, इसके साथ ही राज्यों के 268 विश्वविद्यालयों और 8500 कालेजों को बुनियादी सुविधाओं के लिए अनुदान भी दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से उनका बहुत पुराना नाता है, जब वे 1991 में इसके अध्यक्ष थे, इसकी स्थापना 1953 में हुई थी, तब से यह आयोग एक सार्थक सफर तय कर चुका है, उच्चतर शिक्षा के लिए इसके योगदान को व्यापक स्तर पर सराहा गया है, इन 60 वर्षों में देश में उच्चतर शिक्षा प्रणाली में आमूल परिवर्तन आया है, विशेष रूप से पिछले 10 वर्षों में इस परिवर्तन में तेजी आई है और देश में उच्चतर शिक्षा सुविधाओं का अप्रत्याशित रूप से विस्तार हुआ है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग देश में उच्चतर शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय थिंक टैंक की भूमिका निभाए। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में तेजी से हुए परिवर्तनों ने यूजीसी के सामने भी बहुत बड़ी चुनौतियां पैदा की हैं, उच्चतर शिक्षा की एक प्रमुख नियामक संस्था के रुप में यूजीसी ने अब तक बहुत अच्छा कार्य किया है, लेकिन आगे जो कार्य करने हैं, उनके लिए नई सोच और कार्यों को करने के नवीन तरीकों की आवश्यकता है, मेरा सुझाव है कि आयोग को अब एक राष्ट्रीय चिंतन स्रोत के रूप में भूमिका निभानी है और उन मुद्दों के बारे में एक पेशेवराना और उद्देश्यपूर्ण संवाद स्थापित करना है, जिनका हमारे देश में उच्चतर शिक्षा प्रणाली के कुशल प्रबंधन से नजदीक का वास्ता है। उन्होंने कहा कि पिछले 10 वर्ष में कई नये संस्थान स्थापित किए गये हैं, जिनमें 23 नये केंद्रीय विद्यालय, 7 भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम), 9 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), 10 राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी), 5 भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, 4 भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईआईटी) और आयोजना तथा वास्तुशिल्प के 2 स्कूल शामिल हैं। पिछड़े वर्गों के लिए केंद्रीय शिक्षा संस्थानों में सीटों में आरक्षण, शिक्षा की दृष्टि से पिछड़े जिलों में नये डिग्री कालेज खोलना, जिन क्षेत्रों में पालिटेक्निक नहीं है या कम हैं, उन क्षेत्रों में पालिटेक्निक स्थापित करना और समाज के वंचित वर्गों के छात्रों की सहायता करने जैसे उपाय शामिल हैं।
मनमोहन सिंह ने कहा कि उच्चतर शिक्षा प्रणाली को मजबूती प्रदान करने के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी की क्षमता का उपयोग करने के प्रयास किये गए हैं। वर्ष 2009 में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से शिक्षा संबंधी राष्ट्रीय मिशन की शुरूआत की गई थी, इस मिशन के अंतर्गत अब तक लगभग 400 विश्वविद्यालयों और 20,000 कालेजों में हाई-स्पीड ब्रॉड-बैंड कनैक्टीविटी उपलब्ध कराई गयी है। प्रौद्योगिकी की सहायता से शिक्षा के राष्ट्रीय कार्यक्रम के अंतर्गत इंजीनियरी और मानविकी विषयों के लिए वेब और वीडियो पाठयक्रम तैयार किये जा रहे हैं, इन सब प्रयासों के अच्छे परिणाम सामने आये हैं, उदाहरण के लिए उच्चतर शिक्षा में सकल भर्ती अनुपात 2005-06 के 11 प्रतिशत से बढ़कर 2010-11 में लगभग दुगुने स्तर 19.4 प्रतिशत तक पहुंच गया है, इसी अवधि में उच्चतर शिक्षा में महिलाओं का प्रतिशत 9.4 से बढ़कर 17.9 प्रतिशत हो गया है। उन्होंने कहा कि सरकार भविष्य में और अधिक ऊर्जा तथा सार्थकता की भावना के साथ उच्चतर शिक्षा प्रणाली को सुदृढ़ बनाने के वास्ते कार्य के लिए प्रतिबद्ध है, आने वाले वर्षों में हम न केवल शिक्षा के तीनों पहलुओं-विस्तार, उत्कृष्टता और सभी के लिए शिक्षा पर पूरा ध्यान देना जारी रखेंगे, बल्कि इसमें रोजगारपरकता के चौथे पहलू को भी जोड़ना चाहेंगे।
उन्होंने कहा कि हाल में राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (एनएसक्यूएफ) को मिली स्वीकृति से अब देश में तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा को सामान्य शिक्षा के साथ जोड़ने के लिए एक समेकित और एकीकृत योग्यता फ्रेमवर्क बन गया है, यह कौशल विकास को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने के प्रयासों का एक हिस्सा है, ताकि देश की बढ़ती अर्थव्यवस्था की आवश्यकता के लिए प्रशिक्षित कामगार उपलब्ध हों और बड़ी संख्या में उपयोगी रोज़गार के अवसर पैदा हों, जिन लोगों ने अनौपचारिक तरीकों से प्रशिक्षण प्राप्त किया है, वे अब अपने कौशलों को प्रमाणित करवा सकेंगे और नौकरियों में रोज़गार के बेहतर अवसर प्राप्त कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि देश के प्रमुख उच्चतर शिक्षा संस्थानों से निकले छात्रों की उपलब्धियों पर हम उचित रुप से गर्व कर सकते हैं, उन्होंने दुनिया भर में विभिन्न क्षेत्रों में बहुत अच्छा कार्य किया है, फिर भी हमारे प्रमुख संस्थानों की गिनती विश्व के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में नहीं है और उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में कुल मिलाकर गुणवत्ता हमारे लिए एक बड़ी चिंता का विषय है, इससे हम इस मुद्दे पर पहुंचते हैं कि उच्चतर शिक्षा के हमारे संस्थानों में अच्छे अध्यापकों की कमी है, आने वाले वर्षों में शिक्षा के विस्तार की हमारी जो योजना है, उसे देखते हुए इस समस्या के और भी गंभीर हो जाने की संभावना है, मैं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से और उच्चतर शिक्षा प्रणाली से संबद्ध अन्य पक्षधरों से आग्रह करता हूं कि वे गुणवत्ता और अध्यापकों की कमी पर गंभीरता से विचार करें और इसके हल के लिए नये तरीके ढ़ूंढें।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारी विश्वविद्यालय प्रणाली में अनुसंधान पर अधिक जोर देने की आवश्यकता है, विशेष रुप से पीएचडी कार्यक्रमों की गुणवत्ता और संख्या को बढ़ाने की आवश्यकता है, यह समझना महत्वपूर्ण है कि आज के समय में अनुसंधान के लिए अंतर-विषयक परिप्रेक्ष्य जरुरी हैं, इसलिए हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे विश्वविद्यालयों में अंतर-विषयक शोध की संस्कृति पनपे, हमें आज की स्थिति को बदलना होगा, जिसमें अलग-अलग विभाग ज्यादातर द्वीपों की तरह कार्य करते हैं, हमें उन समस्याओं पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए, जिनमें संकाय अंतर-विषयक शोध कर सकें, जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन जैसे राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर विशेष रुप से ध्यान देने के लिए हमें एक बड़ा शोध कार्य भी शुरु करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय और उद्योगों के बीच भी समन्वय को मजबूत बनाने की आवश्यकता है, यह विश्वविद्यालय प्रणाली और भारतीय उद्योगों, दोनों के लिए बहुत लाभदायक होगा, आज हमारे विश्वविद्यालय अनुसंधान के लिए ज्यादातर अनुदानों पर निर्भर करते हैं, उद्योग जगत का सहयोग मिलने पर न केवल अनुसंधान के बेहतर नतीजे सामने आयेंगे, बल्कि उद्योग इन निष्कर्षों का व्यावहारिक रुप से सार्थक उपयोग भी कर सकेंगे, हमारे विश्वविद्यालयों के संकायों के लिए अन्य देशों के विश्वविद्यालय-उद्योग समन्वय का अध्ययन करना भी उपयोगी होगा, ताकि हम श्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय परंपराओं को अपने देश में लागू कर सकें।
उन्होंने कहा कि हालांकि पिछले वर्षों में उच्चतर शिक्षा के लिए मांग काफी बढ़ी है, लेकिन वास्तव में उच्चतर शिक्षा के संस्थानों को केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से वित्तीय सहायता में कमी आई है, इसलिए सुस्थापित मानदंडों के आधार पर उच्चतर शिक्षा के वित्त-पोषण के नये स्वरुप और केंद्र तथा राज्य सरकारों से वित्तीय सहायता की मौजूदा व्यवस्था में सुधार के विषय हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, विशेष रुप से राज्यों के विश्वविद्यालयों पर अधिक ध्यान देने तथा शिक्षण और अनुसंधान की गुणवत्ता में सुधार के लिए उन्हें सहायता देने जरुरत है। उन्होंने कहा कि उच्चतर शिक्षा के हमारे संस्थानों से संबंधित बुनियादी आंकड़ों की सच्चाई और प्रामाणिकता सही नीति नियोजन और आवश्यकता पड़ने पर सहयोग प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण है, इसके लिए यह जरुरी है कि विश्वविद्यालय सूचना प्रबंधन प्रणाली को प्राथमिकता के आधार पर मजबूत बनाया जाए। उन्होंने खुशी जताई कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने विज्ञान, मानविकी और सामाजिक विज्ञानों, प्रौद्योगिकी, ललित कलाओं और संस्कृति के क्षेत्रों में व्यक्तिगत उत्कृष्टता को सम्मान देने के लिए पंडित जवाहर लाल नेहरु के नाम पर पुरस्कार स्थापित किया है।
मानव संसाधान विकास मंत्री डॉ एम एम पल्लम राजू ने इस अवसर पर कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग सीवी रमन, रबींद्रनाथ टैगोर, मदर टेरेसा सहित भारती नोबेल पुरस्कार विजेताओं के नाम पर चेयर स्थापित करेगा। उन्होंने कहा कि सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में समाज के कमजोर तबकों और अल्पसंख्यकों की पहुंच बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करते हुए छात्रवृत्तियां और समान अवसर प्रदान किया है। उन्होंने कहा कि सरकार शोध को बढ़ावा देने के प्रति गंभीर है और इसके लिए और ज्यादा धन आवंटित किये गए हैं। डॉ राजू ने बताया कि सरकार विश्वविद्यालयों को और अधिक स्वायत्तता देना चाहती है। यूजीसी के अध्यक्ष डॉ वेद प्रकाश ने कहा कि आयोग को दूरवर्ती शिक्षा की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी गई है। अच्छे शिक्षकों की कमी से उत्पन्न अवरोध को दूर करने के लिए भी कई कदम उठाए गए हैं, जिनमें इसके लिए शोधवेत्ताओं को शामिल करना और अनुबंध के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति शामिल है