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मणिरत्नम की युवा फिल्म निर्माताओं को प्रेरणाएं!

इफ्फी की मास्टरक्लास में सिनेमा और साहित्य के गहरे संबंध पर चर्चा

मणिरत्नम प्राचीन भारतीय इतिहास और पौराणिक कथाओं से प्रभावित

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Saturday 23 November 2024 03:05:48 PM

mani ratnam inspires young filmmakers

पणजी। भारतीय सिनेमा जगत के विख्यात फिल्म निर्माता मणिरत्नम ने 55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में ‘साहित्यिक कृतियों को आकर्षक फिल्मों में बदलना’ विषय पर आयोजित मास्टरक्लास में दर्शकों का मन मोह लिया। एक अन्य प्रसिद्ध भारतीय फिल्म निर्देशक गौतम वी मेनन केसाथ बातचीत में मणिरत्नम ने साहित्य को सिनेमा में ढालने की कला पर गहन चर्चा की तथा फिल्म निर्माताओं और सिनेमा प्रेमियों दोनों केलिए बहुमूल्य सलाह दी। मणिरत्नम ने कहाकि मैं अभीभी दर्शकों में बैठा एक आम इंसान हूं, जो कहानियों को बताने केप्रति उनकी आजीवन जिज्ञासा और जुनून को दर्शाता है। फिल्म निर्माण में माहिर होने के बावजूद उन्होंने कहाकि कई मायनों में मैं अभीभी एक नौसिखिया जैसा महसूस करता हूं।
मणिरत्नम ने सिनेमा और साहित्य केबीच गहरे संबंध पर कहाकि सिनेमा और साहित्य केबीच का ग्राफ जितना करीब होगा, भारतीय सिनेमा उतना ही बेहतर होगा। मणिरत्नम में इस बातपर भी जोर दियाकि फिल्म निर्माताओं को लिखे हुए शब्दों को आकर्षक दृश्य और कहानियों में बदलने की कला को निखारना चाहिए। मणिरत्नम साहित्य को फिल्मों में ढालने की बारीकियों पर चर्चा करते हुए कहते हैंकि फिल्में एक दृश्य माध्यम हैं, जबकि किताबें मुख्य रूपसे कल्पनाशील होती हैं, एक फिल्म निर्माता को पाठक की कल्पना को जीवंत करने में अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए। मणिरत्नम ने कहाकि स्क्रिप्ट में समायोजन की जरूरत हो सकती है, लेकिन इन बदलावों से कहानी का सार बदलने के बजाय कहानी को बेहतर बनना चाहिए। मणिरत्नम ने बतायाकि वह पौराणिक कथाओं और प्राचीन भारतीय इतिहास से प्रभावित हैं, इन चीजों ने उनके दृष्टिकोण को बहुत प्रभावित किया है, इससे उन्हें अपनी फिल्म के पात्रों को अनोखे तरीके से दिखाने में कामयाबी मिली। उन्होंने एक सिनेमाई स्क्रिप्ट में अलंकृत साहित्यिक भाषा को ढालने की चुनौतियों पर टिप्पणी की, साथही यहभी सुनिश्चित कियाकि अभिनेता स्क्रिप्ट केसाथ स्वाभाविक रूपसे अभिनय कर सकें।
फिल्म ‘पोन्नियिन सेलवन’ के बारेमें चर्चा करते हुए, जोकि कल्कि कृष्णमूर्ति के 1955 के इसी नाम के प्रतिष्ठित उपन्यास पर आधारित है, मणिरत्नम ने बतायाकि फिल्म में चोल काल को दर्शाया जाना था, लेकिन तंजावुर में उस काल के सभी अवशेष पहलेही समय केसाथ लुप्त हो चुके थे, चूंकि वह बहुत विस्तृत सेट नहीं बनाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने फिल्म की शूटिंग उत्तर भारत में करने की स्वतंत्रता ली और वहां की वास्तुकला को चोल काल की वास्तुकला जैसा स्वरूप दिया। सिनेमा की सहयोगात्मक प्रकृति को रेखांकित करते हुए मणिरत्नम ने कहाकि एक निर्देशक के रूपमें मेरा काम फिल्म में हर व्यक्ति को एकसाथ लाना है, चाहे वह अभिनेता हो या क्रू मेंबर। मणिरत्नम ने युवा फिल्म निर्माताओं से रचनात्मक स्वतंत्रता को सोच-समझकर उपयोग में लाने का आग्रह किया। उन्होंने युवा फिल्म निर्माताओं से पुस्तक की मूल भावना को संरक्षित करने केसाथ उसे रूपांतरित करने केलिए अपनी अनूठी रचनात्मक शैली देने केलिए भी कहा।

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