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Saturday 24 May 2014 02:32:40 PM
पटना। बिहार के लोक जनशक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान कहा करते हैं कि जब बाढ़ आती है तो आपस में बैरी सांप, बिच्छू, चूहे और मेंढक एक जगह बैठ जाते हैं। ठीक वैसे ही इस बार बिहार में देखने को मिला है। भाजपा से डरे लालू यादव, नितीश कुमार रातों-रात आपसी लंबी राजनीतिक दुश्मनी भुलाकर एक हो गए और जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनवाकर सामाजिक न्याय के कसीदे पढ़ रहे हैं। बिहार के इन दोनों राजनीतिज्ञों को अपनी-अपनी सत्ता के दौर में जीतन राम मांझी का सामाजिक न्याय कभी याद नहीं आया, मगर जब इनका बिहार से सूपड़ा साफ हुआ तो नितीश कुमार ने जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया और लगे हाथ लालू यादव ने भी सामाजिक न्याय की इस गंगा में हाथ धो लिए।
जीतन राम मांझी सरकार ने एक विशेष सत्र में भाजपा के वाकआउट के बीच राज्य विधानसभा में विश्वास मत भी हासिल कर लिया। विश्वास प्रस्ताव को सदस्यों ने ध्वनि मत से मंजूरी दी। राज्य विधानसभा में मौजूदा सदस्य संख्या 237 है, जीतन राम मांझी सरकार को 145 विधायकों का समर्थन जुटाने में कोई दिक्कत नहीं हुई। जद (यू) के 117 विधायकों के अलावा, राजद के बारह, कांग्रेस के चार, भाकपा के एक और दो निर्दलीय विधायकों ने मांझी का साथ दिया। भाजपा के 88 विधायक सदन में विश्वास प्रस्ताव को मतदान के लिए रखे जाने से पहले ही वाकआउट कर गए। जीतन राम मांझी 20 मई को बिहार के मुख्यमंत्री बनाए गए थे, जब लोकसभा चुनाव में जद (यू) के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से त्याग-पत्र दे दिया था। नितीश कुमार ने अपने बाकी राजनीतिक सफाए से बचने के लिए अपनी जगह जीतन मांझी का दलित कार्ड खेल दिया, जिसमें लालू यादव को भी समाजिक न्याय का बहाना मिल गया और उन्होंने अपने दल का मांझी सरकार को बिना शर्त समर्थन दे दिया।
जीतन राम मांझी, नितीश मंत्रिमंडल में अनुसूचित जाति, जनजाति मामलों के मंत्री थे। वे मुसहर जाति के हैं, जो महादलितों में आती है। यह संयोग कहा जाएगा कि बिहार में जीतन राम मांझी का राजयोग छप्पर फाड़ कर आया है, वरना बिहार में रामविलास पासवान ने इस राजयोग को हासिल करने के लिए न जाने कितनी बार राजनीतिक समझौते किए हैं। रामविलास पासवान की राज्य में इसी सामाजिक न्याय के नाम पर मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल करने की चिर इच्छा रही है, उन्होंने ऐसे अवसर निर्मित होने की कई कोशिशें की है जैसी जीतन राम मांझी के लिए निर्मित हुई हैं। लालू यादव हों या नितीश कुमार, जगन्नाथ मिश्रा हों या शरद यादव। रामविलास पासवान ने यह अवसर हासिल करने के लिए इनमें से किसकी ओर नहीं देखा? मगर रामविलास पासवान को इस कुर्सी की तरफ नहीं जाने दिया गया। उत्तर प्रदेश में मायावती के राजनीतिक उदय के बाद सभी को भय रहा कि कहीं बिहार भी उत्तर प्रदेश की राह पर न चल दे। एक समय ऐसा भी आया कि रामविलास पासवान ने हाताशा में बिहार में मुस्लिम मुख्यमंत्री का कार्ड चला, लेकिन बिहार की चौकड़ी ने इस कार्ड को भी विफल कर दिया। रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान इस बार लोकसभा चुनाव में एनडीए के साथ न जाते तो इस बार रामविलास पासवान का भी राजनीतिक बनवास पक्का था।
रामविलास पासवान के लिए जीतन राम मांझी का बिहार का मुख्यमंत्री होना किसी भी मायने में अनुकूल नहीं माना जाता है। लोकसभा चुनाव में उन्हें पहली बार इतनी बड़ी विजय मिली है, लेकिन उनका दिल बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी से ही लगा है। बिहार में सारे दुश्मन एक जगह आ जाने से कुछ समय के लिए वहां राजनीतिक एकता दिखाई देगी, किंतु यह एक मजबूरी है, तथापि इसका रामविलास पासावान को लाभ मिलना नहीं लगता। बिहार में इस समय जिस राजनीतिज्ञ के जीवन-मरण का सबसे बड़ा प्रश्न बना है, तो वो लालू यादव हैं, जिनका लोकसभा चुनाव में सफाया हो चुका है। उनके सामने बिहार में केवल यही सुखद स्थिति आई है कि उनको राज्य सरकार की ओर से कुशल क्षेम पूछने भर के लिए जीतन राम मांझी आ गए हैं और वो भी पहले नितीश कुमार की घोड़ा गाड़ी देखेंगे, बाद में लालू यादव को पूछेंगे। बिहार में वह समय भी जल्दी आने वाला है, जब लालू और नितीश में अपना-अपना अस्तित्व बचाने के लिए फिर तलवारें तनेंगी। फिलहाल बिहार में फिलहाल जीतन राम मांझी की सरकार चल पड़ी है।