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महाकुंभ एकता पवित्रता व ज्ञानोदय का प्रतीक

प्रयागराज में 13 जनवरी से 26 फरवरी तक विशाल समागम की तैयारी

भारतीय सनातन परंपरा में निहित आस्था व भक्ति का महत्वपूर्ण आयोजन

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Wednesday 6 November 2024 12:39:54 PM

maha kumbh is a symbol of unity, purity and enlightenment

प्रयागराज। भारतीय सनातन परंपरा की पौराणिक कथाओं में निहित आस्था और भक्ति की महत्वपूर्ण घटना, जैसी आधुनिकता की आपाधापी से भरी दुनिया में कुछ घटनाएं लाखों लोगों को अपने से महान किसी चीज़ की खोज में एकसाथ लाने की शक्ति रखती हैं और महाकुंभ मेला ऐसी ही एक पवित्र तीर्थयात्रा है। बारह 12 वर्ष के दौरान चार बार मनाया जाने वाला ‘महाकुंभ’ आस्था, भक्ति और शक्ति का अद्वितीय अवतार है, दुनिया का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण आयोजन है, यह उन लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है, जो स्‍वयं को पापों से शुद्ध करने और आध्यात्मिक मुक्ति पाने केलिए पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। जैसे-जैसे तीर्थयात्री 13 जनवरी से 26 फरवरी तक संगम नगरी प्रयागराज की अपनी यात्रा की तैयारी कर रहे हैं, वे न केवल आध्यात्मिक अनुष्ठानों की श्रृंखला में शामिल होंगे, बल्कि ऐसी यात्रा पर भी निकलेंगे, जो भौतिक, सांस्कृतिक और यहां तककि आध्यात्मिक सीमाओं से भी परे है।
महाकुंभ मेला हिंदू पौराणिक कथाओं में गहराई से अंतर्निहित है और यह दुनियाभर में आस्था के सबसे महत्वपूर्ण आयोजनों मेंसे एकका प्रतिनिधित्व करता है। यह पवित्र आयोजन भारत में चार स्थानों-हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज में होता है और इनमें से प्रत्येक नगर पवित्र नदी के किनारे है। इनमें गंगा से लेकर शिप्रा, गोदावरी और प्रयागराज में गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती का संगम है। प्रत्येक कुंभ मेले का समय सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की ज्योतिषीय स्थिति से निर्धारित होता है, जो आध्यात्मिक स्वच्छता और आत्मज्ञान केलिए शुभ अवधि का संकेत माना जाता है। भारतीय पौराणिक कथाओं और संस्कृति की समृद्ध मिट्टी में निहित महाकुंभ मेला आंतरिक शांति, स्वयं से साक्षात्कार और आध्यात्मिक एकता केलिए मानवता की कालातीत खोज का गहरा प्रतिनिधित्व है। कुंभ मेला ऐसा आयोजन है, जिसमें आंतरिक रूपसे खगोल विज्ञान, ज्योतिष, आध्यात्मिकता, अनुष्ठानिक परंपराओं और सामाजिक-सांस्कृतिक रीति-रिवाजों और प्रथाओं का विज्ञान समाहित है। यह इसे ज्ञान में बेहद समृद्ध बनाता है। यह कार्यक्रम बड़ी संख्या में हिंदू आस्थावान तीर्थयात्रियों द्वारा मनाया जाता है। इसमें साधु और नागा साधु जैसे तपस्वी शामिल होते हैं, जो गहन आध्यात्मिक अनुशासन का अभ्यास करते हैं। एकांत से निकलकर साधु मेले में शामिल होने आते हैं।
आध्यात्मिक ज्ञान के साधक और हिंदू धर्म के रोजमर्रा के अभ्यासकर्ता भी मेले में शामिल होते हैं। यह विशाल समागम आस्था, ज्ञान और सांस्कृतिक विरासत के अनूठे संगम का प्रतीक है। महाकुंभ मेला अनुष्ठानों का जीवंत मिश्रण है, जिसके केंद्र में पवित्र स्नान समारोह होता है। यह गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदियों के संगम पर होता है, जिसे त्रिवेणी संगम के नाम से जाना जाता है। लाखों भक्त इस महत्वपूर्ण अनुष्ठान को करने केलिए इकट्ठा होते हैं। ऐसा माना जाता हैकि इन पवित्र जल में डुबकी लगाने से पापों से मुक्ति मिलती है, व्यक्तियों और उनके पूर्वजों दोनों को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति मिलती है और अंततः उन्हें मोक्ष या आध्यात्मिक मुक्ति की ओर मार्गदर्शन मिलता है। इस प्राथमिक अनुष्ठान केसाथ तीर्थयात्री नदी के किनारे पूजा में संलग्न होते हैं और श्रद्धेय साधुओं एवं संतों के नेतृत्व में आध्यात्मिक प्रवचनों में भाग लेते हैं। भक्तों को प्रयागराज महाकुंभ के दौरान किसीभी समय स्नान केलिए प्रोत्साहित किया जाता है, लेकिन पौष पूर्णिमा से शुरू होने वाली कुछ तिथियां विशेष रूपसे स्नान केलिए शुभ होती हैं। इस दिन संतों, उनके अनुयायियों और विभिन्न अखाड़ों के सदस्यों का शानदार जुलूस निकलता है। वे शाही स्नान में भाग लेते हैं, जिसे 'राजयोगी स्नान' भी कहा जाता है। यह महाकुंभ मेले की शुरुआत का प्रतीक होता है। यह परंपरा हैकि आस्थावानों को उन संतों के संचित गुणों और आध्यात्मिक ऊर्जा से अतिरिक्त आशीर्वाद मिलता है, जिन्होंने उनसे पहले स्नान किया है। यह इस सदियों पुराने उत्सव के सांप्रदायिक सार को मजबूत करता है।
कुंभ मेले के दौरान समारोहों की जीवंत श्रृंखला सामने आती है, इनमें से प्रमुख है हाथी की पीठ पर, घोड़ों और रथों पर भव्य प्रदर्शन केसाथ अखाड़ों का पारंपरिक जुलूस जिसे 'पेशवाई' कहा जाता है। इसके साथ-साथ कई सांस्कृतिक कार्यक्रम लाखों तीर्थयात्रियों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं, जो इस राजसी त्योहार को देखने और इसमें भाग लेने केलिए इकट्ठा होते हैं। कुंभ मेले की जड़ें हजारों साल पुरानी हैं, जिसका प्रारंभिक उल्लेख मौर्य और गुप्त काल (चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से छठी शताब्दी ईस्वी) के दौरान मिलता है। प्रारंभ में हालांकि आधुनिक कुंभ मेले जितना बड़ा आयोजन नहीं होता था, लेकिन इसमें पूरे भारतीय उपमहाद्वीप से तीर्थयात्री आते थे। समय बीतने पर हिंदू धर्म के उत्‍कर्ष के साथ-साथ मेले का महत्व बढ़ता गया, गुप्तकाल के शासकों ने प्रतिष्ठित धार्मिक मंडली के रूपमें इसकी स्थिति को और ऊंचा कर दिया। मध्य काल के दौरान कुंभ मेले को विभिन्न शाही राजवंशों से संरक्षण प्राप्त हुआ, जिनमें दक्षिण में चोल और विजयनगर साम्राज्य और उत्तर में दिल्ली सल्तनत और मुगल शामिल थे। यहां तककि अकबर जैसे मुगल सम्राटों ने भी धार्मिक सहिष्णुता की भावना को दर्शाते हुए समारोहों में भाग लिया था। ऐतिहासिक वृत्तांतों से पता चलता हैकि 1565 में अकबर ने नागा साधुओं को मेले में शाही प्रवेश का नेतृत्व करने का सम्मान दिया, जो धार्मिक और सांस्कृतिक आधार पर एकता का प्रतीक था।
औपनिवेशिककाल में ब्रिटिश प्रशासकों ने इस उत्सव को देखा और इसके विशाल पैमाने, इसमें आनेवाली विविध सभाओं से आश्चर्यचकित होकर इसका दस्तावेजीकरण किया। ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासक जेम्स प्रिंसेप जैसी शख्सियतों ने 19वीं सदी में कुंभ मेले का विवरण दिया, जिसमें इसकी अनुष्ठानिक प्रथाओं, विशाल समागम और सामाजिक-धार्मिक गतिशीलता का विवरण दिया गया। इन विवरणों ने कुंभ के विकास और समय केसाथ इसके लचीलेपन में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान की। स्वतंत्रता केबाद महाकुंभ मेले को औरभी अधिक महत्व प्राप्त हुआ, जो राष्ट्रीय एकता और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। यूनेस्को से 2017 में मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूपमें मान्यता प्राप्त कुंभ मेला आधुनिक युग में प्राचीन परंपराओं के अस्तित्व और विकास के प्रमाण के रूपमें खड़ा है। महाकुंभ मेला आध्यात्मिक शुद्धि केलिए सभा से कहीं अधिक है, यह जीवंत सांस्कृतिक उत्सव है। पारंपरिक संगीत, नृत्य, कला और शिल्प कौशल यहां एकत्रित होते हैं, जिससे मेला इंद्रियों केलिए अनूठा बन जाता है। तीर्थयात्री न केवल आध्यात्मिक यात्रा का अनुभव करते हैं, बल्कि आंतरिक शांति और समझ की साझा खोज से एकजुट होकर भारत के विविध सांस्कृतिक परिदृश्य में भी गहराई से उतरते हैं।
कुंभ मेला में अंतर्राष्ट्रीय तीर्थयात्री और आध्यात्मिकता के साधक भी इकट्ठा होते हैं, जो मेले के एकता, सहिष्णुता और उत्कृष्टता के सार्वभौमिक संदेश से आकर्षित होते हैं। जीवंत भीड़ और रंगारंग प्रदर्शनों केबीच मेला याद दिलाता हैकि आध्यात्मिक पूर्ति की लालसा सामान्य धागा है, जो राष्ट्रीयता, भाषा और मान्यताओं से ऊपर उठकर मानवता को बांधती है। वर्ष 2025 का महाकुंभ मेला सिर्फ एक सभा नहीं है, यह स्वयं की ओर एक यात्रा है, अनुष्ठानों और प्रतीकात्मक कृत्यों से परे यह तीर्थयात्रियों को आंतरिक प्रतिबिंब और परमात्मा केसाथ गहरे संबंध का अवसर प्रदान करता है। आधुनिक जीवन की मांगों पर अकसर हावी रहने वाली दुनिया में महाकुंभ मेला एकता, पवित्रता और ज्ञानोदय के प्रतीक के रूपमें खड़ा है। यह कालातीत तीर्थयात्रा शक्तिशाली अनुस्मारक के रूपमें कार्य करती हैकि मानवता के विभिन्न मार्गों के बावजूद हम मूल रूपसे शांति, आत्मबोध और पवित्रता केप्रति स्थायी श्रद्धा की ओर एक साझा यात्रा केलिए एकजुट हैं।

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