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Thursday 7 November 2024 04:24:43 PM
नई दिल्ली। पहले एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन के दूसरे दिन नई दिल्ली के द अशोक में वक्ताओं ने एक स्वर में कहाकि तथागत भगवान गौतम बुद्ध की शिक्षाएं दर्शन शास्त्र केसाथ-साथ व्यवहारिक रूपसे एशियाई राष्ट्रों और संस्कृतियों को संकट के समय में स्थिर रखने में मदद करती हैं। एशियाई संस्कृति, परंपरा और मूल्य, इतिहास के हमलों को सहते हुए भी अडिग हैं, जो बुद्ध के अंतर्निहित मूल्यों का प्रमाण है। 'एशिया को मजबूत बनाने में बौद्ध धम्म की भूमिका' विषय पर संस्कृति मंत्रालय और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी) के आयोजित पहले एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन में 32 देशों के 160 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया, इनमें महासंघ के सदस्य, मठवासी परंपराओं के प्रमुख, भिक्षु, भिक्षुणियां, राजनयिक समुदाय के सदस्य, बौद्ध अध्ययन के शिक्षक, विशेषज्ञ और विद्वान सहित लगभग 700 प्रतिभागियों ने इस विषय पर उत्साहपूर्वक चर्चा की। गौरतलब हैकि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने प्रथम एशियाई बौद्ध सम्मेलन का उद्घाटन किया था और गौतम बुद्ध के 'बहुजन हिताय बहुजन सुखाय' की भावना का उल्लेख करते हुए कहा थाकि उनकी करुणा आधारित शिक्षा आजभी विश्व केलिए प्रासंगिक है। यह शिखर सम्मेलन एक्ट ईस्ट नीति की अभिव्यक्ति है, जिसका उद्देश्य एशिया केसाथ बहुआयामी जुड़ाव है।
वियतनाम बौद्ध संघ के उपाध्यक्ष थिच थीएन टैम ने सम्मेलन को ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण आयोजन बताते हुए कहाकि यह बौद्ध विरासत केप्रति भारत की प्रतिबद्धता की पुनः पुष्टि है, जिसकी जड़ें यहां हजारों वर्ष से हैं और जो एशिया में सांस्कृतिक कूटनीति और आध्यात्मिक समझ को आकार दे रही हैं। थिच थीएन टैम ने कहाकि सम्मेलन में वर्तमान समय की वैश्विक चुनौतियों का सामना करने में बौद्ध धम्म की स्थायी प्रासंगिकता को प्रदर्शित किया गया है तथा आध्यात्मिक मार्गदर्शक और सांस्कृतिक सेतु के रूपमें धम्म की शक्ति को रेखांकित किया गया है, जो सीमाओं के पार शांति, करुणा और समझ को बढ़ावा देने में सक्षम है। उन्होंने कहाकि इन चर्चाओं की विविधता और गहराई ने एशियाई राष्ट्रों को एकजुट करने में बौद्ध धम्म की महत्वपूर्ण भूमिका को सुदृढ़ किया है तथा अहिंसा नैतिक अखंडता और सामूहिक कल्याण केप्रति हमारी साझा प्रतिबद्धता को मजबूत किया है। श्रीलंका से अमरपुरा महानिकाय के महानायके वासकादुवे महिंदावांसा महानायके थेरो ने कहाकि विभिन्न परंपराओं के महान गुरु यहां अहिंसा और शांति पर चर्चा करने केलिए एकत्र हुए हैं।
नेपाल से लुम्बिनी विकास ट्रस्ट के उपाध्यक्ष खेंपो चिमेड ने कहाकि इस सभा से पता चलता हैकि बौद्ध मठ एवं संघ में कई विद्वान और जानकार सदस्य हैं, यह समय महान ज्ञान को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने का है, जिसके लिए हिमालय में एक शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने का सुझाव दिया गया। धर्मशाला भारत से ड्रेपुंग लोसेलिंग मठ के क्यबजे योंगज़िन लिंग रिनपोछे ने कहाकि यद्यपि तिब्बतियों को अपनी भूमि छोड़ने केलिए मजबूर किया गया था, लेकिन इसका परिणाम यह हुआकि वे पूरी दुनिया में फैल गए और दुनियाभर में सैकड़ों बौद्ध मठ बन गए। उन्होंने कहाकि अब बहुतसे लोग बौद्ध धर्म के बारेमें जानते हैं। उन्होंने कहाकि हमें तिब्बती संस्कृति और मूल्यों को संरक्षित करना होगा, जैसाकि परमपावन धर्मगुरू दलाई लामा वकालत करते हैं, प्राचीन भारतीय नालंदा परंपरा को पुनर्जीवित करना होगा। क्यबजे योंगज़िन लिंग रिनपोछे ने लोगों का आह्वान कियाकि अपने ज्ञान और विशेषज्ञता केसाथ मजबूत संबंध बनाएं, आध्यात्मिक रूपसे सहयोग करें और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ें।
अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के महासचिव शत्से खेंसुर जंगचुप चोएडेन ने बुद्ध धम्म की जन्मस्थली से विश्व से बौद्ध मूल्यों को बढ़ावा देने का आह्वान किया, जो क्षेत्रीय और वैश्विक सद्भाव केलिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन के समापन पर दिल्ली घोषणापत्र पढ़ते हुए आईबीसी के महानिदेशक अभिजीत हलदर ने कहाकि यहां गहन विचार-विमर्श और साझा आकांक्षाओं का उद्देश्य एक दयालु, सामंजस्यपूर्ण और समावेशी एशिया को बढ़ावा देना है। भविष्य में जिन क्षेत्रों में काम करने की आवश्यकता है, वे हैं-बौद्ध धम्म के सिद्धांत के आधार पर एशियाई देशों केबीच संबंधों को मजबूत करना, बौद्ध साहित्य पर काम करना विशेष रूपसे पाली भाषा पर, जिसमें बुद्ध के मूल शब्द, दर्शन और उसको व्यवहारिक रूप देना शामिल है। बौद्ध समुदाय की आध्यात्मिक निरंतरता और आपसी मेलजोल केलिए पवित्र बौद्ध अवशेषों की प्रदर्शनी को और अधिक प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। समाज के सभी वर्गों विशेषकर युवाओं को शामिल करते हुए एक नए मूल्यआधारित समाज का निर्माण करना, युवाओं को अधिक सक्रिय रूपसे शामिल करने की दिशामें कार्य करना, बौद्ध कला और विरासत की ऐतिहासिक यात्रा को बढ़ावा देना और साझा करना, बौद्ध तीर्थयात्रा और जीवंत विरासत के माध्यम से एशियाई बौद्ध सर्किट को जोड़ना, बुद्ध धम्म के वैज्ञानिक और चिकित्सीय पहलुओं की प्रासंगिकता को पहचानना। आईबीसी के महानिदेशक ने कहाकि बुद्ध धम्म का स्थायी संदेश एक सामंजस्यपूर्ण और समृद्ध भविष्य की ओर एशिया की यात्रा को प्रेरित और समर्थन करना है।