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Thursday 17 May 2018 02:17:50 PM
नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दिल्ली में एक कार्यक्रम में राष्ट्रीय भू-विज्ञान पुरस्कार प्रदान किए। राष्ट्रपति ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि भारत विश्व में तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और आगामी दशकों में हमारा सकल घरेलू उत्पाद एवं वृहद विकास की प्रक्रियाएं तेजी से बढ़ेंगी। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था में इस बढ़ोतरी के परिणामस्वरूप खनन और खनिज क्षेत्र का विकास होगा। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे हम अधिक शहरों और आवासों तथा व्यवसायिक केंद्रों का निर्माण एवं आधुनिक बुनियादी ढांचा तैयार करेंगे, वैसे-वैसे महत्वपूर्ण संसाधनों का उपयोग बढ़ेगा। राष्ट्रपति ने कहा कि जैसाकि सब जानते हैं वैश्विक मानकों पर भारत में प्रति व्यक्ति संसाधनों और वस्तुओं की खपत अभी भी काफी कम है और इसके बढ़ने की संभावना है, इसके लिए स्थायी पारिस्थिकीय अनुकूल संसाधन पैदा करने के लिए उच्च गुणवत्ता की अनुसंधान पहल और खनन क्षेत्र में प्रौद्योगिकीय नवाचार में सार्थक निवेश की आवश्यकता होगी।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि भारत सरकार ने इन चार वर्ष में खनन क्षेत्र में काफी बड़े सुधार किए हैं है और मौजूदा कानूनों में संशोधन एवं रायल्टी के लिए अधिक न्यायसंगत प्रणाली विकसित करने सहित इन सुधारों के परिणाम नज़र आने लगे हैं। उन्होंने कहा कि कई खनिज ब्लाकों को खोजा जा रहा है, खान मंत्रालय के कदमों से नीलामी के लिए राज्यों में संभावित खनिज ब्लाकों को चिन्हित किया गया है। रामनाथ कोविंद ने कहा कि इन उपायों से हमारे राज्यों की वित्तीय स्थिति सुदृढ़ होगी और वे खनन संसाधनों के लाभ का व्यापक विस्तार कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि अंततः खनिज संसाधनों की खोज और उनके दोहन तथा विकास का लाभ स्थानीय समुदायों को मिलना चाहिए। राष्ट्रपति ने कहा कि हाल के वर्ष में भू-वैज्ञानिक समुदाय से सामाजिक अपेक्षाएं बढ़ी हैं। उन्होंने कहा कि भू-गर्भीय गति विज्ञान की गहरी समझ होने के कारण कृषि उत्पादकता और कृषकों की आय बढ़ाने, स्मार्ट सिटी पहल में आधार प्रदान करने तथा जल की कमी की चुनौती से निपटने में हमारे नागरिकों की मदद करने में भू-वैज्ञानिकों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि भू-वैज्ञानिक अपने ज्ञान और तकनीकी कौशल से देश और लोगों की सेवा करते रहेंगे।
गौरतलब है कि भू-विज्ञान पृथ्वी से सम्बंधित वह विज्ञान है, जिसमें ठोस पृथ्वी का निर्माण करने वाली शैलों और उन प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है, जिनसे शैलों, भूपर्पटी और स्थलरूपों का विकास होता है। इसके अंतर्गत पृथ्वी संबंधी अनेकानेक विषय आ जाते हैं, जैसे-खनिज शास्त्र, तलछट विज्ञान, भूमापन और खनन इंजीनियरिंग इत्यादि। इसके अध्ययन विषयों में से एक मुख्य प्रकरण उन क्रियाओं की विवेचना होती है, जो चिरंतन काल से भूगर्भ में होती चली आ रही हैं एवं जिनके फलस्वरूप भूपृष्ठ का रूप निरंतर परिवर्तित होता रहता है, यद्यपि उसकी गति साधारणतया बहुत ही मंद होती है। अन्य प्रकरणों में पृथ्वी की आयु, भूगर्भ, ज्वालामुखी क्रिया, भू-संचलन, भूकंप और पर्वतनिर्माण, महादेशीय विस्थापन, भौमिकीय काल में जलवायु परिवर्तन तथा हिम युग उल्लेखनीय हैं। भू-विज्ञान में पृथ्वी की उत्पत्ति, उसकी संरचना, उसके संघटन एवं शैलों के इतिहास की विवेचना की जाती है। यह विज्ञान उन प्रक्रमों पर भी प्रकाश डालता है, जिनसे शैलों में परिवर्तन आते रहते हैं, इसमें अभिनव जीवों के साथ प्रागैतिहासिक जीवों का संबंध तथा उनकी उत्पत्ति और उनके विकास का अध्ययन भी सम्मिलित है। इसके अंतर्गत पृथ्वी के संघटक पदार्थों, उनपर क्रियाशील शक्तियों तथा उनसे उत्पन्न संरचनाओं, भूपटल की शैलों के वितरण, पृथ्वी के इतिहास आदि के अध्ययन को शामिल किया जाता है।