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नई दिल्ली। भारत ने टीके विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। सूरजकुंड में सोमवार को आयोजित अंतर्राष्ट्रीय टीका संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह में विज्ञान और प्रौद्योगिकी और भूविज्ञान राज्य मंत्री अश्विनी कुमार ने कहा कि भारत दुनिया भर में बनने वाले कुल टीकों का 60 प्रतिशत तैयार करता है और सालाना 60 से 80 प्रतिशत टीके संयुक्त राष्ट्र उससे ख़रीदता है। भारतीय टीका निर्माता विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्युएचओ) से मान्यता प्राप्त है। चालू वर्ष में भारतीय टीका बाजार तकरीबन 90 करोड़ डॉलर के आसपास पहुंच गया और 2017 इससे 4 अरब 60 करोड़ डॉलर की आमदनी करने का लक्ष्य है। वर्ष 2011-12 के दौरान यह 23 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है।
अश्विनी कुमार ने कहा कि टीके को हम कम कीमत वाले जन स्वास्थ्य उत्पाद के रूप में जानते हैं और इसमें रोगों से बचाव या बचाव संबंधी समाधान विकसित करने की क्षमता होती है। दुनिया भर में हर साल तकरीबन 80 लाख बच्चे पांच साल की उम्र से पहले ही बीमारी की वजह से मौत का शिकार हो जाते हैं, ऐसे बच्चों को टीकाकरण के जरिए बचाया जा सकता है। राज्य मंत्री ने कहा कि मध्यम स्तरीय टीका तैयार करने के साथ ही जैव औषधि के शोध और विकास में भारत की क्षमता और सामर्थ्य सराहनीय है। भारत ने स्वदेशी तकनीक की बदौलत नये-नये टीके विकसित किये हैं, जिनका आज विभिन्न बीमारियों जैसे मेनिनगोकोक्कल मेनिनजाईटिस, रोटावायरस, एच वन एन वन और जापानी बी इनसेफेलाइटिस के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। ज्यादातर टीकों का व्यवसायिक रुप से उत्पादन हो रहा है और कुछ व्यवसायिकरण के अंतिम चरण में है। सरकारी निवेश और सहयोग इस उद्यम का अभिन्न हिस्सा है।
वर्ष 2010-2020 को नई ‘खोज का दशक’ बताते हुए अश्विनी कुमार ने कहा कि टीकों के अनुसंधान और विकास और इसके लिए वहन करने योग्य स्वास्थ्य सेवा को गांधीजी के इस उपदेश के अनुरूप आचरण करना चाहिए कि विज्ञान का मानवता के लिए इस्तेमाल हो। इससे देश को तमाम दूसरी तरह की चुनौतियों जैसे भोजन, पोषण, जलवायु और पर्यावरण, ऊर्जा और कम कीमत पर घर जैसी समस्याओं से निपटने में मदद मिलेगी। भारत ने घातक बीमारियों जैसे टीबी, मलेरिया, डेंगू और एचआईवी के लिए नये टीके विकसित किए हैं। डीबीटी के सहयोग से अंतर्राष्ट्रीय अनुवांशिक, अभियांत्रिकी और जैव प्रौद्योगिकी केंद्र में भारतीय वैज्ञानिक मलेरिया और डेंगू पर काम कर रहे हैं। एचआईवी और टीबी जैसी बीमारियों पर काबू पाने के लिए तैयार किये जा रहे टीके को लेकर हमारा शोध और विकास का काम प्रगति पर है। अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य और प्रौद्योगिकी संस्थान, फरीदाबाद और अंतर्राष्ट्रीय एड्स टीका पहल और एचआईवी टीका डिज़ाइन केंद्र की साझेदारी इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
अश्विनी कुमार ने कहा कि गैर संक्रामक बीमारियों और कैंसर के टीके के लिए अभी और बड़े प्रयास करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि टीकों की कम कीमत सरकार और निजी भागीदारी कार्यक्रम तथा भारत और दूसरे विकासशील देशों के औषधि निर्माताओं के बीच जारी प्रतिस्पर्धा से संभव हो पाई है। संगोष्ठी में भारत सहित पूरी दुनिया के 180 से भी अधिक टीका पर शोध करने वाले वैज्ञानिक विशेषज्ञ हिस्सा ले रहे हैं। इसमें सरकारी और निजी दोनों क्षेत्र के वैज्ञानिक शामिल हैं। यह भारत में अपनी तरह की पहली संगोष्ठी है, जिसमें बीमारियों की रोकथाम और उसके इलाज के लिए विभिन्न प्रकार के टीकों को विकसित करने और उस दिशा में शोध से संबंधित विभिन्न प्रौद्योगिकियों पर विचार विमर्श किया जा रहा है।