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नई दिल्ली। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के प्राचीन तिब्बती और बौद्ध मठों की मरम्मत और जीर्णोद्घार के लिए कोष उपलब्ध कराये गए हैं। छात्रों को फैलोशिप और छात्रवृति, पुस्तकों की खरीद, छात्रावास भवन का निर्माण, शिक्षकों के वेतन का भुगतान, बौद्ध एवं तिब्बती कला संस्कृति के संरक्षण एवं विकास के लिए वित्तीय सहायता के रूप में दिए गए हैं। पिछले चार वर्ष के दौरान तकरीबन ऐसी 390 परियोजनाओं को केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय की ओर से सहायता राशि उपलब्ध कराई गई है, अब एक संगठन के लिए प्रति वर्ष सहायता राशि को पांच लाख रुपये से बढ़ा कर तीस लाख रुपये कर दिया गया है। विशेषज्ञ सलाहकार समिति उत्कृष्ट विशेषताओं के आधार पर इस योजना के लिये अनुशंसित अधिकतम राशि की सीमा से ज्यादा एक करोड़ रुपये तक कर सकती है, ऐसा योजना को सही तरीके से मजबूती प्रदान करने के लिए किया जाता है, ताकि इस योजना का ज्यादा से ज्यादा असर देखने को मिले।
इसी तरह से सांस्कृतिक विरासत, पुरानी पांडुलिपि के संरक्षण, साहित्य, कला और हस्तशिल्प, पारस्परिक और लोक कला के क्षेत्र में प्रशिक्षण के लिए हिमालय क्षेत्र में पड़ने वाले राज्यों ( जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश) पर शोध और अध्ययन के लिए कोष उपलब्ध कराया जाता है। यह कोष हिमालयन विरासत एवं सांस्कृतिक विकास और संरक्षण योजना के तहत दिया गया है। पिछले चार वर्ष के दौरान केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने ऐसी 54 परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई है। इस योजना के तहत भी किसी संगठन के लिए पांच लाख रुपये की अधिकतम सीमा को बढ़ा कर सालाना दस लाख रुपये कर दिया गया है। विशेषज्ञ सलाहकार समिति को इस योजना के संबंध में तय अधिकतम सीमा से अधिक तीस लाख रुपये तक राशि अनुशंसित करने का अधिकार है। यह अनुशंसा प्रस्ताव की खूबियों के आधार पर की जा सकती है।
बौद्ध/तिब्बती, संस्कृति और कला के साथ ही हिमालयन सांस्कृतिक धरोहर इन दोनों ही योजनाओं के तहत किसी भी संगठन को अधिकतम अनुदान के रूप में कुल खर्च का 75 प्रतिशत राशि ही दी जाएगी। बचे हुई 25 प्रतिशत राशि का भुगतान राज्य सरकार या केंद्र शासित प्रदेश करेगा, अगर ऐसा नहीं होता है तो अनुदान पाने वाला संगठन इसे खुद अपने संसाधनों के इस्तेमाल के जरिए बची हुई राशि जुटायेगा। पूर्वोत्तर राज्यों और सिक्किम के मामलों में इस योजना के लिए केंद्र सरकार 90 प्रतिशत राशि का भुगतान करेगी, जबकि राज्य सरकार महज दस प्रतिशत का भुगतान करेगी।