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शुद्ध पानी कब बनेगा चुनावी मुद्दा?

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लखनऊ। आईरीड भारत ने पीने का शुद्ध पानी और पर्यावरण संरक्षण के सवाल पर राजनैतिक दलों की दिखावी दिलचस्पी को जनजीवन के प्रति उपेक्षा बताते हुए सभी दलों से इस मुद्दे को अपने एजेंडे में प्राथमिकता से लेने की मांग और वकालत की है।
आईरीड के अध्यक्ष चंद्रकुमार छाबड़ा एवं निदेशक डॉ अर्चना ने कहा कि आज़ादी के 63 वर्ष बाद भी गांव तो दूर शहर में भी पीने के शुद्ध पानी की बराबर कमी होती जा रही है। वैज्ञानिकों की वर्ष 2020 तक पानी के लिए हाहाकार मचने और अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए होने कि चेतावनियां सरकार को विचलित करने में नाकाम रही हैं। स्थिति से निपटने के लिए कोई नीति तक विकसित न हो पाना देश का बहुत बड़ा दुर्भाग्य है। उन्होंने राजनीतिक दलों से पूछा है कि पीने का शुद्ध पानी कब बनेगा उनका चुनावी मुद्दा?
चंद्रकुमार छाबड़ा ने कहा कि पर्यावरण संवर्धन के प्रति जागरूकता इतनी कमज़ोर है, कि प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन, सभी नियम कानून ध्वस्त कर रहा है, जिस कारण पूरा परिस्थितिकीय संतुलन बिगड़ चुका है। भीषण बाढ़, गर्मी और सर्दी के मौसम में परिवर्तन ने मौसम का टाइमटेबल ही बदल दिया है। चंद्रकुमार छाबड़ा ने कहा कि राजनैतिक दलों अपने एजेंडे में मानव विकास और अस्तित्व पर हमले वाले मुद्दे पर अपने बेबाक नीति स्पष्ट करनी चाहिए।

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