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एशिया के लोगों की सुरक्षा को ख़तरा

एंटनी ने किया एशियाई सुरक्षा सम्‍मेलन का उद्घाटन

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एशियाई सुरक्षा सम्‍मेलन/asian security conference

नई दिल्ली। रक्षा मंत्री एके एंटनी ने 14वें एशियाई सुरक्षा सम्‍मेलन का सोमवार को उद्घाटन किया। इस सम्‍मेलन का आयोजन रक्षा अध्‍ययन और विश्लेषण संस्‍थान (आईडीएसए) ने किया था। सम्‍मेलन का विषय ‘गैर पारंपरिक सुरक्षा खतरे: आज और कल’ है। तीन दिवसीय सम्‍मेलन में भारत तथा विदेश से विशेषज्ञ हिस्‍सा ले रहे हैं। चीन के तीन विशेषज्ञ इसमें उपस्थित हैं। एशियाई सुरक्षा सम्‍मेलन एक वार्षिक सम्‍मेलन है, जिसे आईएसए 1999 से आयोजित कर रहा है। इस अवसर पर रक्षा मंत्री ने कहा कि सुरक्षा की अवधारणा में विस्‍तार तथा काफी परिवर्तन हुआ है, इसमें आर्थिक प्रगति, जलवायु परिवर्तन तथा सुशासन को भी शामिल किया गया है, राष्‍ट्रों में सौहार्द के लिए ऐसे मुद्दे काफी महत्‍वपूर्ण हैं।
रक्षा मंत्री ने कहा कि आज वैश्विक समुदाय अर्थशास्‍त्र, भूगोल पर आधारित राजनीति, जनसांख्यिकी, प्राकृतिक संसाधन बांटने, जलवायु परिवर्तन तथा सूचना के क्षेत्रों में समान चुनौतियों का सामना कर रहा है। भोजन, पानी, आर्थिक अस्थिरता तथा आतंकवाद, विनाशकारी हथियारों में बढ़ोत्तरी और मादक पदार्थों की तस्‍करी जैसे मूलभूत मुद्दों का प्रभाव विभिन्‍न समाज तथा राष्‍ट्रों की गतिशीलता पर पड़ रहा है। क्षेत्र में तेज़ी से उभरती अर्थव्‍यवस्‍था तथा लोकतांत्रिक राष्‍ट्र के रूप में भारत शांतिपूर्ण, सुरक्षित तथा आर्थिक रूप से स्थिर एशिया के निर्माण के प्रति हमेशा प्रतिबद्ध रहा है तथा रहेगा, हालांकि इन गैर-पारंपरिक चुनौतियों से निपटने के लिए, अपनाए जाने वाले पारंपरिक तरीकों से हटकर देखने की ज़रूरत है।
इस वर्ष सम्‍मेलन का विषय बहुत ही महत्‍वपूर्ण तथा प्रासंगिक है। गैर-पारंपरिक तत्‍वों से सभी राष्‍ट्रों तथा विशेष रूप से एशिया के लोगों की सुरक्षा को खतरा है। विश्‍व की बढ़ती हुई आबादी से मौजूदा प्राकृतिक संसाधनों पर बोझ पड़ रहा है तथा इस संसाधनों के लिए एशिया के विभिन्‍न देशों में संघर्ष हो सकता है। आतंकवाद, मादक पदार्थों की तस्‍करी, मनी लॉन्ड्रिंग तथा अंतरराष्‍ट्रीय अपराध पूरे विश्‍व में चिंता का विषय हैं। आतंकवाद, वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। इस तरह खतरों से निपटने तथा उसे खत्‍म करने के लिए राष्‍ट्रों को सामूहिक तथा अभिनव कदम उठाने चाहिए। सामूहिक विनाशकारी हथियार, परमाणु हथियारों के आगे बढ़ रहे हैं। यह हथियार, जैविक, रसायनिक तथा विकिरण संबंधी हो सकते हैं। इन हथियारों की आपूर्ति के लिए जटिल प्रणाली की ज़रूरत न‍हीं होती। इसलिए हमेशा इनके गलत हाथों में पड़ जाने का खतरा बना रहता है, अत: राष्‍ट्रों को ऐसी चुनौतियां को सामना करने के लिए एक-दूसरे के साथ सहयोग तथा संस्‍थागत संरचना बनाने के वास्‍ते एक व्‍यापक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि प्राकृतिक आपदाएं नियमितता के साथ हो रही हैं। सुनामी से विनाश से हजारों लोगों की मृत्‍यु हुई। भूकंप और बाढ़ ने भी विभिन्‍न राष्‍ट्रों में तबाही मचाई है। ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए हमें साझा संस्‍थागत तंत्र विकसित करने की ज़रूरत है, हमारी नीति में आपदा प्रबंधन की महत्‍वपूर्ण भूमिका है तथा इसे हमारे क्षेत्र के क्षेत्रीय तथा स्‍थानीय स्‍तरों तक ले जाना चाहिए। साइबर सुरक्षा भी चिंता का मुख्‍य विषय है। विश्‍व तथा विभिन्‍न सेवाओं के डिजीटलीकरण से विश्‍व की इंटरनेट तथा सूचना प्रौद्योगिकी पर निर्भरता बढ़ रही है। हालांकि, नेटवर्कों की सुरक्षा चिंता का सबब है, क्‍योंकि हर रोज़ महत्‍वपूर्ण और अत्‍यावश्‍यक डाटा इसके ज़रिए पहुंचता है। साइबर नेटवर्क में किसी तरह की भी सेंध लगने से किसी भी समाज या देश की सुरक्षा को अकथित क्षति पहुंच सकती है। साइबर सुरक्षा पर राष्‍ट्रों को गंभीरता से सोचना चाहिए तथा इसे मज़बूत करने के लिए एक-दूसरे को सहयोग करना चाहिए।

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