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मुद्रा स्फीति को काबू में लाने की कोशिश

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नई दिल्ली। आर्थिक सर्वेक्षण 2011-12 में भारत को टिकाऊ, समावेशी वृद्धि और संपूर्ण विकास की सुदृढ़ स्थिति में लाने की नीतियों का सुझाव दिया गया है। सर्वेक्षण में सरकार द्वारा विभिन्न जोरदार उपायों के साथ मुद्रास्फीति पर नियंत्रण पाने की बात कही गयी है। इन उपायों में आपूर्ति विशेष रूप से खाद्यान और बुनियादी कृषि उत्पादों में सुधार लाने और वित्तीय एवं राजस्व घाटे पर नियंत्रण करने की नीतियां शामिल हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने तौर पर मौद्रिक नीति को चुस्त बनाया है, हालांकि मुद्रास्फीति पर काबू पाने के उपायों का विकास पर कुछ विपरीत प्रभाव पड़ा, लेकिन कोई दीर्घकालिक क्षति अथवा बेरोजगारी मे वृद्धि के कोई संकेत नहीं थे। सर्वेक्षण में कहा गया है कि इस प्रकार सरकार विशेष रूप से समावेशी विकास की और अधिक ध्यान देने की स्थिति में आ गई है। सर्वेक्षण में सिफारिश की गयी है कि सरकार की अब मुख्य चिंता अर्थव्यवस्था की उत्पादकता को बढ़ाना और आय वितरण में सुधार लाना होना चाहिए।
वित्त वर्ष 2011-12 में कृषि उत्पादकता बढ़ाने और आपूर्ति श्रंखला के प्रबंधन में सुधार की दिशा में कई उपाय किए गए जिनके अच्छे परिणाम निकले हैं और खाद्यान मूल्य स्फीति को नियंत्रित करने में सहायता मिले। अक्तूबर 2011 से बचत बैंक ब्याज दरों के विनियंत्रितकरण से थोक भावों के मूल्य सूचकांक की स्फीति दर में कमी आई है। आर्थिक सर्वेक्षण में सुधार दिया गया है कि त्वरित वित्तीय सुदृढीकरण ही मुद्रास्फीति को काबू में रखने और जोरदार विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने का एक मात्र उपाय है। सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि हमारे कर- जीडीपी अनुपात को बढ़ाकर और व्यर्थ के खर्चों में कटौती करके इसे प्राप्त किया जा सकता है। केन्द्र का सकल कर-जीडीपी अनुपात (बीई 2011-12) 10.5 प्रतिशत रहा। सर्वेक्षण के अनुसार हमारा उद्देश्य इसे 2016-17 तक इसे 13 प्रतिशत से आगे ले जाना है। सर्वेक्षण में इस बात पर जोर दिया गया है कि समायोजन का संवेदनशील कार्य उन्मुक्त बाजार पर नहीं छोड़ा जा सकता। इसमे सरकार की भूमिका अनुकूल परिस्थितियां पैदा करने की है।
आर्थिक सर्वेक्षण 2011-12 के अनुसार विकास दर के 2012-13 की दूसरी तिमाही से गति पकड़ने की आशा है। वर्ष 2012-13 में विकास के 7.6 प्रतिशत (+/-0.25) की अपेक्षा है। सर्वेक्षण में यह भी अपेक्षा की गयी है कि 2013-14 में भारत के लिए और सुधार होगा और राष्ट्र यथारूप में विकास पथ पर अग्रसर होगा, जैसा कि वह 2008 की वैश्विक मंदी से पहले था। वर्ष 2011-12 में मंदी के बाद विकास के मुख्य संचालक-सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में बचत और निवेश दरें तेजी से बढ़ेगी और जैसे-जैसे भारत राजकोषीय मजबूती हासिल करेगा, वापस वृद्धि के रूख पर आ जाएंगे और उसके बाद जैसे-जैसे जनसांख्यिकीय लाभ के चलते समग्र आबादी के मुकाबले भारत की कार्यशील आबादी का अनुपात बढ़ेगा, इनमें निरंतर बढ़ोतरी होती रहेगी।
सॉवरेन संबंधी तुलनात्मक रेटिंग सूचकांक (क्रिस) के मामले पर आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत के क्रिस में बढ़ोतरी देखी गयी है जो 2007 के 23.81 से बढ़कर 2012 में 24.52 हो गयी है। क्योंकि क्रिस तुलनात्मक रेटिंग स्कोर है इसका अर्थ यह है कि शेष विश्व की तुलना में भारत की वेटिंग में 2.98 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जिस रूप में क्रिस की रचना हुई, उसके अनुसार विश्व का औसत क्रिस स्कोर हमेशा स्थिर रहेगा, इसलिए यह कोई मामूली वृद्धि नहीं है। बुनियादी क्षेत्र के बारे में आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि योजना आयोग ने 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान निवेश के एक ट्रिलियन डालर के लक्ष्य की बात कही है। इसमें से लगभग आधा निवेश निजी क्षेत्र से जुटाया जाएगा।
आर्थिक सर्वेक्षण में अनुबंधों की आधुनिक अर्थव्यवस्था के केंद्रीय संचालन के रूप में सिफारिश की है, इसमें मूल्य नियंत्रण की तुलना में पारदर्शी मूल्य निर्धारण फार्मूले को लाभप्रद बताया गया है। सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि भूमि अधिग्रहण मामले भारत के विनिर्माण और औद्योगिक क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं। सर्वेक्षण में सिफारिश की गयी है कि मार्किटों के प्रोत्साहन ढांचे को ध्यान में रखते हुए सरकार का उद्देश्य अनुकूल वातावरण तैयार करना, आवश्यक अवसंरचना सुविधाएं और हस्ताक्षेप-हीन सरकारी तंत्र उपलब्ध कराना और तदंतर औद्योगिक क्षेत्र को अपने स्तर पर फलने फूलने देना होना चाहिए।

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